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एमपीयूएटी में राजस्व उत्पादन की रणनीति विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन

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18 Oct 19
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एमपीयूएटी में राजस्व उत्पादन की रणनीति विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन

 महाराणा प्रताप कृषि एंव प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के संघटक अभियान्त्रिकी महाविद्यालय द्वारा एमपीयूएटी में राजस्व उत्पादन की रणनीति विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।
कार्यशाला का आयोजन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् की राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना की संस्थागत विकास परियोजना के अन्तर्गत किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथी एमपीयूएटी के पूर्व कुलपति एवं पूर्व उपमहानिदेशक कृषि शिक्षा डाॅ. एस.एल. मेहता ने बताया कि कृषि विश्वविद्यालयों की स्थापना लेण्ड ग्रान्ट योजना के अन्तर्गत की गयी थी। जिसमे 50 प्रतिशत फण्डिंग केन्द्र से 35-40 प्रतिशत राज्य सरकार से और 10-15 प्रतिशत स्वयं द्वारा अर्जित आय से की जानी चाहिए थी। परन्तु कालांतर मे व्यास समीति ने इसे 30 प्रतिशत तक बढ़ाया था। इसलिए कृषि विश्वविद्यालयों के समक्ष स्वंम द्वारा अर्जित आय के स्त्रोतों से राजस्व अर्जन एक बड़ी चुनौती है परन्तु विशेष कार्य योजना से इसे प्राप्त करना संभव है। उन्होने बताया कि तकनीकी हस्तातंरण, प्रशिक्षण कार्यक्रम, गुणवत्ता युक्त, बीज उत्पादन, प्लांटिग मटेरियल के विक्रय, क्षमता वर्धन, विशिष्ट उत्पादों की मार्केटिंग, इको टूरिज्म, पेटेन्ट, फार्म की आय वृद्धि, बाह्य निधि से वित्त पोषित अनुसंधान परियोजनाओं के निर्माण, अनुभवात्मक प्रशिक्षण इत्यादि से हम इस लक्ष्य को प्राप्त कर सकते है। विशिष्ट अतिथी राजस्थान पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय (राजूवास) के पूर्व कुलपति प्रो. ए.के. गहलोत ने बताया कि कृषि एवं वेटेरेनिटी विश्वविद्यालयों में अनेक परियोजनाओं, कृषि विज्ञान एंव अनुसंधान केन्द्रों पर उपलब्ध फार्म, राष्ट्रीय अन्तराष्ट्रीय सस्थाओं के साथ पार्टनरशिप और क्षमता वर्धन कर अपनी संस्था के लिए आय मे वृद्धि कर सकते हैं। उन्होने राजस्व वृद्धि को किसी संस्था के विकास के लिए अतिआवश्यक बताया। विशेष आमन्त्रित वक्ता पूर्व अनुसंधान निदेशक डाॅ. जी.एस. आमेटा ने फार्म इन्कम बढ़ाने की बात कही। कार्यशाला में डाॅ. पी.एस. मालीवाल ने आय वृद्धि की रणनीति बनाने के लिए विश्वविद्यालय की विभिन्न गतिविधियों मे सुधार की बात कही।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे एमपीयूएटी के  कुलपति प्रो. नरेन्द्र सिंह राठौड़ ने बताया कि किसी भी संस्था के लिए उसकी एलुमिनाई एक बड़ी शक्ति होती है। उन्होने बताया कि हाल ही मे आईआईटी मे पूर्व छात्र परिषद् ने संस्था की पूर्ण फण्डिंग का वादा कर एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। उन्होने बताया कि इस कार्यशाला का मुख्य उद्ेश्य इस बात पर मंथन करना है कि विश्वविद्यालय के विभिन्न वैज्ञानिक किस प्रकार अपने अपने क्षेत्र मे कार्य कर विश्वविद्यालय की आय वृद्धि मे योगदान कर सकते हैं। उन्होने बीज उत्पादन लघु एंव दीर्घकालीन प्रशिक्षण कार्यक्रम, सेल्फ फाईनेन्स कार्यक्रमो के संचालन, उचित प्रंबधन, उर्जा की बचत, जैविक कृषि, मात्स्यकी, पशुपालन, फार्म मशीनरी टेस्टिंग, अभियान्त्रिकी इत्यादि क्षेत्रों मे क्षमता वर्धन व राजस्व अर्जन के सुझाव भी दिए। कार्यशाला के अंत मे सभी महाविद्यालयों व कृषि अनुसंधान केन्द्रों व कृषि विज्ञान केन्द्रों से आए कृषि वैज्ञानिकों ने एक सामूहिक चर्चा मे भाग लेकर अपनी शंकाओ का समाधान भी किया। कार्यक्रम के आयोजन सचिव डाॅ. पी.के. सिंह ने बताया कि कार्यशाला में विश्वविद्यालय की कुलसचिव श्रीमति कविता पाठक एवं वित्तनियन्त्रक श्री संजय सिंह, सीटीएई के अधिष्ठता एवं आईडीपी के नोडल अधिकारी डाॅ. अजय कुमार शर्मा ने भी सम्बोन्धित किया। डाॅ. सिंह ने बताया कि कार्यशाला मे विश्वविद्यालय के 70 वैज्ञानिकों, विभागाध्यक्षों तथा प्राध्यापकों ने भाग लिया। कार्यशाला का संचालन कम्प्युटर साईन्स विभाग की सहायक प्राध्यापक डाॅ. कल्पना जैन ने किया।


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