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सांसारिक सुख स्थाई नहीं होता,स्थाई सुख तो प्रभु और धर्म आराधना में हीःविरलप्रभाश्री

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04 Nov 25
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सांसारिक सुख स्थाई नहीं होता,स्थाई सुख तो प्रभु और धर्म आराधना में हीःविरलप्रभाश्री


उदयपुर। सूरजपोल दादाबाड़ी स्थित वासूपूज्य मंदिर में पंचान्हिका महोत्सव के तीसरे दिन मंगलवार को प.पु.सा. श्री वीरलप्रभाश्रीजी म.सा., प.पु.सा. श्री विपुल प्रभाश्री जी म.सा एवं प.पु.सा. कृतार्थ प्रभाश्रीजी म.सा. की निश्रा में चातुर्मासिक चैदस मनाई गई तथा विशेष प्रवचन हुए।
प्रातकालीन धर्म सभा में श्री विपुल प्रभाश्रीजी ने कहा कि चातुर्मास आत्मा का पोषण करने का पर्व होता है। इसमें श्रावकों को परमात्मा की आराधना करके अपने पापों से मुक्ति पाने का अवसर मिलता है। उन्होंने चातुर्मासिक चैदस का महत्व बताते हुए कहा कि  आज के दिन प्रतिक्रमण करने का बहुत ही महत्व है। जो श्रावक श्राविकाएं पूरे चातुर्मासकाल के दौरान अगर किसी कारणवश या अज्ञानता वश प्रतिक्रमण नहीं कर पाए तो आज के दिन प्रतिक्रमण कर लेने से भी वही पुण्य फल की प्राप्ति होती है जो कि चातुर्मास कल के दौरान होती है। उन्होंने कहा कि जो श्रावक श्राविकाएं प्रतिक्रमण नहीं करते हैं उन्हें श्रावक श्राविकाएं कहलाने का भी अधिकार नहीं होता है। श्रावक श्राविकाएं वही कहलाती है जो प्रतिक्रमण करते हैं। जीवन में इतने तो धर्म आराधना और पुण्य कर्म करने ही चाहिए कि जीवन के अंतिम समय में जाते-जाते हमें सम्यक प्राप्त हो जाए और यही सम्यक मोक्ष प्राप्ति का साधन है। जीवन को सुखी एवं सफल बनाना है तो प्रमाद पैदा करने वाले भोजन से हमेशा दूर रहना चाहिए। व्यक्ति जिसके प्रति अपना राग रखेगा उसे अगले जन्म में भी वही प्राप्ति होगी। सांसारिक सुख स्थाई नहीं होता है। स्थाई सुख तो प्रभु आराधना और धर्म आराधना में ही है। संसार में अस्थाई सुख की प्राप्ति के लिए मनुष्य पदार्थ प्रताप की दौड़ में लगा रहता है जबकि अगर स्थाई सुख की प्राप्ति करनी है तो पदार्थ की दौड़ नहीं पुण्य की दौड़ लगाना चाहिए। जो कुछ भी आपके पास है वह आपके पुण्योदय के कारण है। जिस दिन आपके पुण्य की वैल्यू जीरो हो जाएगी उस दिन सब कुछ होते हुए भी आप दुनिया में अकेले रह जाओगे। कई भव पार करने के बाद हमें मनुष्य जीवन मिला है, इसे सांसारिक अस्थाई सुखों को प्राप्त करने में ही नहीं गंवाना चाहिए बल्कि स्थाई सुख प्राप्त करने के लिए प्रभु की आराधना में लगाना चाहिए। जो अपने पास है वह पर्याप्त है। व्यक्ति को कभी भी दूसरों का सुख देखकर स्वयं दुखी नहीं होना चाहिए।
धर्म सभा में सभी ने चातुर्मासकाल के दौरान अगर कोई भूल चूक हुई हो तो उसके लिए मिच्छामी दुक्कडम करके एक दूसरे से क्षमा याचना की।  धर्मसभा में बाहर से आए अतिथियों का पगड़ी और माला पहनाकर अभिनंदन किया गया।


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