उदयपुर। सूरजपोल दादाबाड़ी स्थित वासूपूज्य मंदिर में पंचान्हिका महोत्सव के दूसरे दिन सोमवार को साध्वी वीरलप्रभाश्रीजी म.सा.,साध्वीश्री विपुल प्रभाश्रीजी म.सा एवं साध्वी कृतार्थ प्रभाश्री के सानिध्य में भगवान के 18 अभिषेक किए गए।
अध्यक्ष राज लोढ़ा एवं सचिव दलपत दोशी ने बताया कि शहर की धन्य धरा पर श्रेणी तप के निमित पंचान्हिका महोत्सव के तहत दूसरे दिन भगवान की संगीतमयी पूजा के साथ 18 अभिषेक किये गये। 18 अभिषेक के क्रम में हर अभिषेक में अलग-अलग श्रावकों ने भाग लिया। अभिषेक के दौरान विधिकारक पंकज भाई चोपड़ा खाचरोद ने मंत्र उच्चारण कर अभिषेक करवाया। इस दौरान उपस्थित श्रावकों ने भगवान के समक्ष भक्ति नृत्य किये और चंवर ढुलाई की। इस दौरान भजन भाव की भी प्रस्तुतियां हुई जिससे मंदिर में पूर्ण भक्ति भाव का माहौल बना रहा।
उन्हांेने बताया कि आठ अभिषेक के बाद साध्वी वृन्दांे ने भगवान की पूजा आराधना की। इस दौरान उन्होंने भगवान से संघ में उनके या संघ द्वारा कोई भी हुई भूल चुक अथवा हुई गलती के लिए प्रभु से क्षमा याचना की।
अभिषेक के दौरान विधि कारक पंकज भाई ने अठारह अभिषेक का महत्व बताते हुए कहा कि हर श्रावक श्राविकाओं को साल में एक बार 18 अभिषेक का लाभ लेना ही चाहिए। कई सिद्ध आत्माओं ने परमात्मा के समक्ष 18 अभिषेक कर मोक्ष की प्राप्ति की है। जीवन में 18 अभिषेक का लाभ लेने से चरित्र उत्तम बनता है, कर्मों की निर्जरा होती है। भगवान के 18 अभिषेक करने के दौरान हमारे जीवन की गलतियां भूल और चूक की क्षमा मांगनी चाहिए ताकि परमात्मा आपको आपके सभी पाप कर्मों से मुक्ति दे सके और मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ सके। 18 अभिषेक करने से औषधि और फूलों की तरह आपका जीवन और चरित्र सुगंधित होता है। इससे पापांे का क्षय होता है और परमात्मा प्रसन्न होते हैं। 18 अभिषेक करने से जीवन में सबसे बड़े पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इससे अभिमान खत्म होता है। इस दौरान उन्होंने कथा के कई दृष्टांतों के माध्यम से श्रावकों को 18 अभिषेक की पूजा आराधना का महत्व बताया। भगवान के अठारहवा एवं अंतिम अभिषेक केसर कस्तूरी से संपन्न हुआ।