उदयपुर, "भावनाओं के बिना व्यक्तित्व का पूर्ण विकास संभव नहीं है, क्योंकि वही व्यक्ति को कर्म की ओर प्रेरित करती हैं।" यह प्रेरणादायक विचार नारायण सेवा संस्थान में चल रहे त्रिदिवसीय कार्यक्रम 'अपनों से अपनी बात' के प्रथम दिन अध्यक्ष प्रशांत अग्रवाल ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि जिस व्यक्ति के पास दृढ़ इच्छाशक्ति और संवेदनशीलता होती है, वही समाज में सच्चे सम्मान का अधिकारी बनता है और असंभव को भी संभव बना देता है।
कार्यक्रम में देशभर से जन्मजात विकलांगता और पोलियो से पीड़ित दिव्यांगजन व उनके परिजन शामिल हुए, जो निःशुल्क सर्जरी एवं कृत्रिम हाथ-पांव लगवाने के लिए आए थे। अग्रवाल ने कहा कि जरूरतमंदों की सेवा से व्यक्ति का विकास भी होता है। पीड़ितों, दिव्यांगों और असहायों की सहायता करने से न केवल उन्हें राहत मिलती है, बल्कि सेवा करने वाले के जीवन की अनेक समस्याएं भी स्वतः दूर हो जाती हैं। हमारे शास्त्रों में भी ‘दान’ को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आय का दसवां हिस्सा दीन-दुखियों की सेवा में लगाना चाहिए। जिसने सेवा को अपनी आदत बना लिया, उसके लिए सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचना सहज हो जाता है।
बिहार से आए दिव्यांग रोहित यादव ने साझा किया कि एक सड़क दुर्घटना में उन्होंने अपना एक पांव गंवा दिया था, जिससे वे अवसाद में चले गए थे। लेकिन संस्थान में कृत्रिम पांव लगने के बाद उन्हें नया आत्मबल मिला है और अब वे पुनः अपने परिवार की आर्थिक रीढ़ बन सकेंगे। उन्होंने बताया कि पांव कटने के बाद भी वे लगातार भगवान को याद करते रहे।
सलूम्बर के सुरेंद्र मीणा, जिन्होंने दो वर्ष पूर्व करंट लगने से अपना एक हाथ गंवाया था, ने कहा कि कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने कभी आत्मविश्वास नहीं खोया। उन्होंने कहा, "निराशा भी मृत्यु के समान होती है, इसलिए व्यक्ति को कभी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए।"
झारखंड के निर्मल कुमार, करौली के एस. बीर सिंह, धर्मेंद्र, तथा भरतपुर के अखिल वर्मा ने भी अपनी-अपनी प्रेरणादायक बातें साझा कीं।
कार्यक्रम के अंत में प्रशांत अग्रवाल ने दिव्यांगजनों को मार्गदर्शन देते हुए कहा कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिन परिस्थितियाँ क्यों न हों, हमेशा यह विश्वास रखना चाहिए कि असंभव कुछ भी नहीं है।