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20 साल पुरानी समान ईपिक नंबरों से जुड़ी समस्या का समाधान

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14 May 25
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उदयपुर, मतदाता सूची को स्वच्छ और अद्यतन बनाए रखने के अपने प्रयास में, भारत निर्वाचन आयोग  ने लगभग 20 साल पुरानी उस समस्या का समाधान कर लिया है, जिसमें विभिन्न निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारियों द्वारा एक जैसी श्रेणियों का उपयोग करने के कारण कुछ वास्तविक मतदाताओं को गलती से समान ईपिक नंबर जारी हो गए थे। यह समस्या 2005 से चली आ रही थी।

लंबे समय से लंबित समस्या को हल करने के लिए, देश के सभी 36 राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन अधिकारी और भारत के सभी 4123 विधानसभा क्षेत्रों के ईआरओ ने 10.50 लाख मतदान केंद्रों पर मौजूद 99 करोड़ से अधिक मतदाताओं के पूरे डाटाबेस की जांच की। औसतन, प्रत्येक मतदान केंद्र में लगभग 1000 मतदाता होते हैं। जांच के दौरान समान ईपिक नंबरों की संख्या अत्यंत न्यूनतम पाई गई। औसतन प्रत्येक 4 मतदान केंद्रों में केवल 1 ऐसा मामला सामने आया। फील्ड स्तर पर सत्यापन के दौरान यह पाया गया कि समान ईपिक नंबरों वाले मतदाता वास्तव में विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों और अलग-अलग मतदान केंद्रों के वास्तविक मतदाता थे। ऐसे सभी मतदाताओं को अब नए नंबरों के साथ नए ईपिक कार्ड जारी कर दिए गए हैं।

गौरतलब है कि इस समस्या की उत्पत्ति 2005 में हुई थी, जब विभिन्न राज्य/केंद्र शासित प्रदेश विधानसभा क्षेत्रवार विभिन्न अल्फ़ान्यूमेरिक श्रृंखलाओं का विकेंद्रीकृत तरीके से उपयोग कर रहे थे। 2008 में निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण के बाद इन श्रृंखलाओं को फिर से बदला गया। इस दौरान कुछ विधानसभा क्षेत्रों ने या तो पुरानी श्रृंखला का उपयोग करना जारी रखा या टाइपिंग त्रुटियों के कारण किसी अन्य क्षेत्र को आवंटित श्रृंखला का उपयोग कर लिया। प्रत्येक मतदाता का नाम उस मतदान केंद्र की मतदाता सूची में दर्ज होता है जहाँ वह सामान्य रूप से निवास करता है। समान ईपिक नंबर होना किसी व्यक्ति को किसी अन्य मतदान केंद्र पर मतदान करने में सक्षम नहीं बनाता। अतः समान ईपिक नंबर की समस्या से किसी भी चुनाव के परिणामों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है।


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