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विश्व विरासत दिवस पर 18 को होगी ‘विरासत यात्रा’

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16 Apr 24
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विश्व विरासत दिवस पर 18 को होगी ‘विरासत यात्रा’

उदयपुर। विश्व विरासत दिवस के अवसर पर प्रताप गौरव शोध केन्द्र राष्ट्रीय तीर्थ, जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ के संघटक सहित्य संस्थान तथा इतिहास संकलन समिति उदयपुर जिला इकाई के संयुक्त तत्वावधान में ‘विरासत यात्रा’ का आयोजन किया जा रहा है। 

प्रताप गौरव केन्द्र के निदेशक अनुराग सक्सेना व साहित्य संस्थान के निदेशक डॉ. जीवन सिंह खरकवाल ने बताया कि इस यात्रा में आठ विरासत स्थलों का चिह्नित किया गया है। उन स्थानों पर जाकर इतिहासकार और पुराविद् इस विषय में अध्ययनरत विद्यार्थियों और जिज्ञासुओं को इनके महत्व और उनके ऐतिहासिक पहलुओं को समझाएंगे। इन आठ स्थलों में बेड़वास की बावड़ी, झरनों की सराय, उदय निवास, लकड़कोट, झामरकोटड़ा (जामेश्वर महादेव), जीवाश्म उद्यान (झामेश्वर महादेव), अरावली के निर्माण प्रक्रिया का सबसे पुराना प्रमाण और गहड़वाली माता (महाराणा उदय सिंह द्वारा निर्मित गढ़) को शामिल किया गया है।

बेड़वास की बावड़ी

इस बावड़ी को नन्द बावड़ी के नाम से भी जाना जाता है। इसका निर्माण महाराणा राजसिंह के शासन में पंचोली फतहचंद 1668 ईस्वी (वि.सं. 1725) में बेड़वास में करवाया। इस बावड़ी के साथ एक हवेली, सराय, और करीब 7 बीघा में एक बाग भी विकसित किया गया। इस बावड़ी पर लगे अभिलेख को डोलो गजाधर ने 1673 ईस्वी में उकेरा। अभिलेख में बताया गया है कि महाराणा राज सिंह ने 1673 ईस्वी में इस बावड़ी का पानी पिया। साथ बावड़ी को बनवाने वाले पंचोली फतहचंद का सम्मान भी किया। 2018 में इस बावड़ी को साहित्य संस्थान की ओर से स्वयंसेवकों के दल ने विश्व विरासत दिवस के अवसर पर साफ किया था। 

झरनों की सराय

झरनों की सराय का निर्माण महाराणा प्रताप की दादी मां झरना बाई की ओर से करवाया गया था। इसलिए इस सराय का सीधा सम्बंध मेवाड़ राजपरिवार है। सराय एक गढ़ परिसर में निर्मित है और इसके साथ एक बावड़ी भी निर्मित की गई है, जो क्षेत्र के आम लोगों के लिए पेयजल का साधन है। इस परिसर के अवशेषों को बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग व सहित्य संस्थान, जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ (डीम्ड-टू-बी विश्वविद्यालय), उदयपुर ने खोजा था। 

उदय निवास

महाराणा उदयसिंह के नाम पर निर्मित यह अत्यंत आकर्षक महल उदयसागर के दक्षिणी छोर पर स्थित है। यह आहड़ के पुराने टीले पर निर्मित है। साथ ही यह यहां की भौगोलिक परिस्थितियों का भी शानदार उपयोग करता है। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग व सहित्य संस्थान, जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ (डीम्ड-टू-बी विश्वविद्यालय), उदयपुर के सर्वेक्षण दल ने यहां से अहार ताम्रपाषाण कालीन सफेद चित्रित काले व लाल मृदभाण्ड तथा मोटे चमकीले, चिकने भूरे मृदभाण्ड खोजे। 

लकड़कोट

देवड़ा राजपूतों को प्राचीन गढ़ लकड़कोट लकड़वास और भल्लों का गुड़ा गांव के मध्य स्थित अरावली के कटक पर स्थिति है। इस गढ़ का अधिकतम भाग खनन और सड़क निर्माण के दौरान नष्ट हो चुका है, लेकिन इसके पूर्वी ढाल पर बना एक द्वार आज भी दिखाई देता है। 

झामरकोटड़ा (झामेश्वर महादेव)

इस क्षेत्र में चूने की अत्यन्त प्राचीन गुफाएं हैं। इनमें चूने के झरण से निच्युताश्म बने दिखाई देते हैं। यह एक अभूतपूर्व भौगोलिक निर्माण है। वर्ष 1978 में इसे भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने भू-विरासत स्थल घोषित किया है। 

जीवाश्म उद्यान (जीवन का प्राचीनतम प्रमाण) 

झामरकोटड़ा, झामेश्वर महादेव मंदिर के करीब स्थित स्ट्रोमेटोलाइट उद्यान में एशियाई स्ट्रोमेटोलाइट का समृद्ध भण्डार है। यहां पर फॉस्फोराइट विशाल संग्रह है। यह उद्यान 1.8 अरब वर्ष पुराना है जो इस क्षेत्र में जीवन के सबसे पुराने साक्ष्य के प्रमाण देता है। 

सबसे पुरानी अरावली संरचना 

मामादेव में अरावली की सबसे पुरानी चट्टान जगत की ओर जाने वाली पक्की सड़क के बगल में दिखाई देती है। यह लोगों के आकर्षण का केन्द्र है। 

गहड़वाली माता (महाराणा उदय सिंह निर्मित गढ़) 

गहड़वाली माता का मंदिर मेवाड़ की राजधानी उदयपुर शहर से 30 किलोमीटर दूर स्थित है। स्थानीय श्रुति परम्परा में इसे महाराणा उदयसिंह गढ़ बताया जाता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि उदयसिंह उदयपुर से पहले जामरकोटड़ा को ही अपनी राजधानी बनाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने यहां पर गढ़ बनवाया था। यह गढ़ अधिक समय तक नहीं टिका और टूट गया। इसके बाद गहड़वाली माता महाराणा उदयसिंह के सपने में आई। माता ने उदयसिंह को सपने में जामरकोटड़ा से 30 किलोमीटर दूर अपनी राजधानी बनाने का आदेश दिया। इसके बाद उदयसिंह ने किले के स्थान पर गहड़वाली माता का मंदिर बनवाया। 


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