GMCH STORIES

रहोगी तुम वही... से स़्त्री के बदलते स्वरूप और पुरूष के दोहरे चरित्र को किया उजागर

( Read 1290 Times)

28 Mar 24
Share |
Print This Page
रहोगी तुम वही... से स़्त्री के बदलते स्वरूप और पुरूष के दोहरे चरित्र को किया उजागर

उदयपुर। मौलिक ऑर्गनाइजेशन ऑफ क्रियेटिव एंड परफोर्मिंग आर्ट और यूजीसी महिला अध्ययन केंद्र, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर के तत्वाधान में विश्व रंगमंच दिवस पर पं. दीनदयाल उपाध्याय सभागार में लघु नाटक रहोगी तुम वही....का मंचन किया गया। स़्त्री के बदलते स्वरूप और उसे स्वीकार नहीं कर पाने वाले पुरूष के दोहरे चरित्र को उजागर करती इस नाट्य प्रस्तुति ने दर्शकों के अंतर्मन को झंकझोर सा दिया।
यह रही विषय वस्तु
रहोगी तुम वही नाटक में समाज में महिलाओं के द्वंद्व को भारतीय पुरुष के नजरिए से दिखाया गया। नाटक में पुरुष के दोहरे चरित्र और दोगले सिद्धान्तों को सीधी-सादी भाषा मे किसी भी घर मे होने वाले संवाद व स्थितियों के माध्यम से उजागर किया गया। इसमें पति का एकालाप, जाहिर तौर पर पत्नी से मुखातिब है। पति के पास पत्नी से शिकायतों का अन्तहीन भन्डार है, जिन्हें वह मुखर हो कर पत्नी पर जाहिर कर रहा है। रोजमर्रा की आम बातें हैं उसे पत्नी के हर रूप से शिकायत है और ये रूप अनेक हैं। वह उन्हें स्वीकारना नहीं चाहता। इसलिए कहे चले जा रहा है कि रहोगी तुम वही, यानी हर हाल, मेरे अयोग्य। निहितार्थ, न मैं बदल सकता हूँ, न तुम्हारे बदलते स्वरूप को सहन कर सकता हूँ, इसलिए रहोगी तुम वही, मुझ से पृथक। पत्नी के पास कहने को बहुत कुछ है पर लेखक को उससे कुछ कहलाने की जरूरत नहीं हैय अनकहा ज्यादा मारक ढंग से दर्शकों तक पहुँच रहा है।
जतिन के अभिनय ने किया प्रभावित
नाटक का मुख्य आकर्षण मौलिक संस्था के युवा रंगकर्मी जतिन भारवानी का जींवत अभिनय रहा। ऐसे पति की भूमिका जो हमेशा अपनी पत्नी की कमियां ढूँढ़ कर उसे प्रताड़ित करता रहता है, के चरित्र को जतिन ने बखूबी निभाया। नाटक के निर्देशक शिवराज सोनवाल की परिकल्पना और निर्देशन ने सूझ-बूझ व रंगमंचीय कौशलता के साथ नाटक के संवाद को उसकी अस्मिता और मूल संवेदनाओं को प्रभावी रूप से प्रस्तुत किया। उपस्थित दर्शकों ने अभिनय, निर्देशन और नाटक के माध्यम से दिए गए संदेश की सराहना कर कलाकारों को भविष्य के लिए शुभकामनाएं दीं। मौलिक संस्था के अध्यक्ष महेश आमेटा ने रंगमंच दिवस के बारे में जानकारी और शुभकामनाएं दी। नाटक की लेखिका सुधा अरोरा ने निर्देशक एवम् कलाकारों को इस प्रयास के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने लिखा कि यह कहानी पुरुष के लगातार बोलने और औरत के चुप रहने की कहानी नहीं है। इसमें हर संवाद के बीच ‘रींडिंग बिटवीन द लाइन्स’ की पर्याप्त गुंजाइश है। यह कहानी स्त्री के बदलने की और पुरुष के स्वभाव की यथास्थिति की कहानी है। ‘रहोगी तुम वही’ शीर्षक में भी एक व्यंग्य अंतरनिहित है कि ‘रहोगी तुम वही’ के विशेषण के बावजूद स्त्री तो बदल रही है, पुरुष अब तक सामंती है। जरूरत तो उसके बदलनेे की है। वह कब बदलेगा? यह सवाल चिरंतन है। अंत में महिला अध्ययन केंद्र की ओर से डॉ. गरिमा मिश्रा ने विश्व रंगमंच दिवस की शुभकामना देने के साथ सभी प्रतिभागियों, अतिथियों एवम् दर्शकों को धन्यवाद ज्ञापित किया।
इनका भी रहा योगदान
नाटक में संगीत संचालन रेणुका जाजोट ने किया। मंच सज्जा की जिम्मेदारी तमन्ना गोयल ने संभाली। निर्माण प्रबंधक शिबली खान, रूप सज्जा गुनीशा मकोल, मंच सामग्री कुलदीप, कॉस्टयूम तन्वी बिजारनिया तथा कैमरा एवं वीडियोग्राफी में शुभम् शर्मा ने सहयोग किया।
 


Source :
This Article/News is also avaliable in following categories : Udaipur News
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like