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महाराणा जगतसिंह प्रथम की ४१६वीं जयन्ती मनाई

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18 Sep 23
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महाराणा जगतसिंह प्रथम की ४१६वीं जयन्ती मनाई

उदयपुर | मेवाड के ५७वें एकलिंग दीवान महाराणा जगतसिंह जी प्रथम की ४१६वीं जयंती महाराणा मेवाड चेरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर की ओर से मनाई गई। महाराणा जगतसिंह का जन्म वि.सं.१६६४, भाद्रपद शुक्ल तृतीया (वर्ष १६०७) को हुआ था। सिटी पेलेस म्यूजियम स्थित राय आंगन में उनके चित्र पर माल्यार्पण व पूजा-अर्चना कर मंत्रोच्चारण के साथ दीप प्रज्जवलित किया गया तथा आने वाले पर्यटकों के लिए उनकी ऐतिहासिक जानकारी प्रदर्शित की गई। 
महाराणा मेवाड चेरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर के प्रशासनिक अधिकारी भूपेन्द्र सिंह आउवा ने बताया कि उनकी वि. संवत् १६८४ के फाल्गुन (ई.सं. १६२८ मार्च) गद्दीनशीनी सम्पन्न हुई और राज्याभिषेक का उत्सव चैत्रादि वि.सं. १६८५ वैशाख सुदि ५ (ई.सं. १६२८ ता. २८ अप्रेल) को हुआ था महाराणा जगतसिंह एक महत्वाकांक्षी व्यक्तित्व के धनी थे, अपने राज्य के लाभ के लिए अनुकूल अवसरों को बदलने में विश्वास रखते थे।
महाराणा जगतसिंह बडे ही दानी थे। वो ब्राह्मणों, चारणों, आदि को दान दिया करते थे। वो प्रतिवर्ष अपने जन्मदिन पर बडे-बडे दान करते थे, जिनमें सोने-चांदी के अलावा कल्पवृक्ष, सप्तसागर, रत्नधेनु और विश्वचक्र प्रमुख है। उन्होंने श्री एकलिंगनाथ जी मन्दिर में सोने का ध्वजस्तम्भ और शिखर भी स्थापित करवाया। उदयपुर में श्री जगन्नाथराय जी (जगदीश मन्दिर) मन्दिर का निर्माण करवाया। और एक ऐतिहासिक शिलालेख उत्कीर्ण कर लगवाया। उनके शासनकाल में कई सारे निर्माण हुए जिनमें जगमन्दिर (पिछोला झील में) शामिल है जो महाराणा कर्णसिंह द्वारा शुरू किया गया था लेकिन महाराणा जगतसिंह प्रथम के शासनकाल में इसे पूर्ण किया गया। पीछोला झील में मोहन मन्दिर और राजमहल के पास कँवरपदा महल बनवाये। राजमहल में त्रिपोलिया के पास पायगा पोल पर महाराणा द्वारा किये गये तुलादान के उपलक्ष में ८ तोरण लगे हुए है।
अपने धर्म पर पूर्णरूप से दृढ होने के कारण उन्होंने अपने पूर्वजों को संचित की हुई सम्पत्ति को दान-पुण्यादि में खूब खर्च किया और लोगों में वे बडे दानी कहलाये तथा उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली तथा प्रजा में उनका बहुत आदर रहा। उनका कद मझोला, आंखें बडी, पेशानी चौडी और चेहरा हंसमुख था। वे स्वभाव से मिलनसार थे। महाराणा उत्तम नस्ल के घोडे रखने के शौकीन थे।
सादर प्रकाशनार्थ।


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