उदयपुर | महाराणा मेवाड चेरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर की ओर से मेवाड के ६५वें एकलिंग दीवान महाराणा अरिसिंह जी द्वितीय की २८३वीं जयंती मनाई गई। महाराणा अरिसिंह जी का जन्म वि.सं.१७९७, भाद्रपद कृष्ण चतुर्दशी (ई.सं. १७४०) को हुआ था। सिटी पेलेस म्यूजियम स्थित राय आंगन में मंत्रोच्चारण के साथ उनके चित्र पर माल्यार्पण व पूजा-अर्चना कर दीप प्रज्जवलित किया गया। सिटी पेलेस भ्रमण पर आने वाले पर्यटकों के लिए चित्र सहित ऐतिहासिक जानकारी प्रदर्शित की गई।
महाराणा मेवाड चेरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर के प्रशासनिक अधिकारी भूपेन्द्र सिंह आउवा ने बताया कि महाराणा राजसिंह द्वितीय के निसन्तान होने के कारण महाराणा जगतसिंह द्वितीय के छोटे पुत्र अरिसिंह की वि. सं. १८१७ चैत्र कृष्ण तेरस (ता. ३ अप्रेल १७६१ ई.सं.) को गद्दीनशीनी हुई।
महाराणा अरिसिंह के समय में होल्कर, सिंधिया व मराठों ने मेवाड पर कई आक्रमण किये। निरन्तर बाहरी आक्रमण एवं पारस्परिक गृह-कलह से मेवाड राज्य को बहुत हानि हुई जिसका मरहटों ने बहुत लाभ उठाया। मेवाड की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए उन्होंने अमरचन्द बडवा को मेवाड का प्रधान मंत्री नियुक्त किया। वि.सं. १८२९ चैत्र कृष्ण एकम को बूंदी के राव अजीतंसह ने अमरगढ में शिकार के समय धोखे से महाराणा पर वार किया जिससे वे वहीं मारे गये। महाराणा का दाहसंस्कार अमरगढ में ही किया गया।
महाराणा ने अपने कार्यकाल में पिछोला झील में बंसी घाट, पीपली घाट (रूप घाट), और अर्सी विलास का निर्माण कराया तथा एकलिंगगढ में तोप की स्थापना करवाई।
सादर प्रकाशनार्थ।