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गलती हो तो झुक जाइए, गुस्सा आए तो रुक जाइए सदा लाभ रहेंगेरू श्री ललितप्रभ

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05 Jul 23
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गलती हो तो झुक जाइए, गुस्सा आए तो रुक जाइए सदा लाभ रहेंगेरू श्री ललितप्रभ

 राष्ट्रसंत ललितप्रभ महाराज ने कहा कि हमारा जीवन प्रकृति और परमात्मा का प्रसाद है। हमें इसे विषाद में नहीं जीना चाहिए। माँ के पेट से एक जीवन और शरीर का जन्म होता है लेकिन एक श्रेष्ठ जीवन का मालिक बनना विवेक, स्वभाव, सोच, शब्द और संस्कारों पर निर्भर करता है। जैसा व्यक्ति का स्वभाव होता है, वैसा दूसरों पर प्रभाव प्रड़ता है। जो लोग अपने फ्यूचर को बेहतरीन देखना चाहते हैं उन्हें आज ही अपने नेचर को सुधार लेना चाहिए। गलती हो तो झुक जाइए और गुस्सा आए तो रुक जाइए आप सदा लाभ में रहेंगे।
राष्ट्रसंत ललितप्रभ महाराज यहाँ नगर निगम के टाउन हॉल मैदान में स्वभाव को सुन्दर बनाने के प्रभावी उपाय विषय पर विशेष प्रवचन दे रहे थे। उन्होंने जब मैदान में उपस्थित श्रद्धालुओं से जानना चाहा कि गुस्सा किस किसको आता है, तो एक साथ हजारों हाथ उठ गये और सबने कहा कि यह हमारी कमजोरी है आप ही उचित मार्ग दिखाएँ। संतप्रवर ने कहा कि किसी भी व्यक्ति का सरल स्वभाव उसकी कमजोरी नहीं बल्कि उत्तम संस्कारों का प्रभाव होता है। हमें क्रोध में नहीं बोध में जीना चाहिए। क्रोध हमारा केरियर चौपट करता है, संबंधों में खटास घोलता है, स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाता है, पल भर का क्रोध भी हमारे पूरे भविष्य को खराब कर सकता है। उन्होंने कहा कि हमारी छोटी सी जिंदगी में हमें बेवजह की सिरपच्चियाँ नहीं पालनी चाहिए इसे आनंद और मिठास के साथ जीना चाहिए। कभी कोई बात बिगड़ भी जाए तो हमें न तो गांठ बांधनी चाहिए और न ही बोलचाल या आना-जाना बंद करना चाहिए। संतप्रवर ने मैदान में बैठ श्रद्धालुओं को प्रेरणा दी कि अगर वे जवान हैं तो गुस्से को मंद कर दें और बुढ़े हैं तो गुस्सा करना बंद दें।
राष्ट्र-संत ने कहा कि हमें केवल शक्ति नहीं अपितु सहनशक्ति भी बढ़ानी चाहिए। परिवार में प्रेम हो या समाज में एकता यह तभी बने रहते हैं जब हम सहन शक्ति वाले होते हैं। जिसके पास शक्ति होती है वो सिकंदर होता है पर जिसके पास सहन शक्ति होती है वह तीर्थंकर होता है। उन्होंने जिंदगी को सात दिन में बाँटते हुए कहा - हम सोमवार को जनमते हैं, मंगलवार को स्कूल जाते हैं, बुधवार को शादी करते हैं, तो किसी गुरुवार को बच्चे पैदा हो जाते हैं, शुक्रवार को बुढ़े हो जाते है, शनिवार को बीमार पड़ जाते हैं देखते देखते किसी रविवार को राम-राम सत हो जाते हैं। सात दिन में बंधी इस छोटी सी जिंदगी में आखिर हम कितनी माथाफोडिय़ाँ करेंगे।
संतप्रवर ने कहा कि अगर सोमवार को गुस्सा आए तो यह समझ कर मत कीजिएगा कि सप्ताह का पहला दिन है इसे क्यों बिगाड़ा जाए, मंगलवार को भी गुस्सा न करें भला मंगल के दिन कौनसा अमंगल। बुधवार का गुस्सा कहीं युद्ध न बन जाए इसलिए इस दिन बिल्कुल न करें गुरुवार तो गुरु का वार है शुक्रवार तो शुकराना अदा करने का वार है। शनिवार को तो गुस्सा न ही करें कहीं शनि हावी न हो जाए और रविवार को तो खुद चला कर कह दें  - गुस्से जी! आज तुम्हारी छुट्टी।
संतप्रवर ने कहा कि गुस्सैल व्यक्ति को तो घर के लोग भी नापसंद करते हैं और शांत प्रकृति के व्यक्ति की तो पड़ौसी भी प्रशंसा करते हैं। उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि अगर आप मधुर और शांत प्रकृति के हैं तो घर के लोग रात को नौ बजे आपके आने की प्रतीक्षा करेंगे और अगर आप गुस्सैल और उग्र नेचर के है तो घर के लोग सुबह नौ बजे आपके घर से जाने की प्रतीक्षा करेंगे। उन्होंनेे कहा कि शांतिपूर्वक रहिए, शांतिपूर्वक ही सोचिए और जीवन का हर काम शांतिपूर्वक ही कीजिए। $गलती होना हमारी प्रकृति है, न मानना हमारी विकृति है और सॉरी कहकर समाधान निकालना यही हमारी संस्कृति है। उन्होंने हँसी-हँसी में जीवन का पाठ पढ़ाते हुए कहा कि कभी गुस्से में आकर आपकी पत्नी आपको जानवर कह दें, तो  बुरा मत मानिएगा, मुस्करा कर जवाब दीजिएगा तू मेरी जान मैं तेरा वर दोनों मिले तभी हुए जानवर। यह है मुस्कान से क्रोध को समाप्त करने का सरल तरीका। हँस कर बात करो जमाने से, क्योंकि उम्र बढ़ती है मुस्कुराने से।
राष्ट्र-संत ने कहा कि वह आदमी दुनिया का सबसे अमीर व्यक्ति है जिसका शरीर स्वस्थ है, वाणी में मधुरता है, व्यवहार में शालीनता है, चित्त में शहनशीलता है और हृदय में प्रसन्नता है। उबलते हुए पानी में तो चेहरा भी नहीं दिखता वैसे ही क्रोध में तिलमिलाया हुआ व्यक्ति अपने विवेक को नहीं पा सकता। संतप्रवर ने कहा कि अपने दिल को बड़ा रखिए, दिमाग को ठंडा रखिए, और वाणी में मधुरता रखिए दुनिया में कोई आपसे नाराज नहीं होगा।
संतप्रवर ने कहा कि कभी किसी का अपमान न करें, कोई अपमान कर दे तो बुरा न मानें और बुरा लग भी जाए तो बदले की भावना पैदा न करें नहीं तो हर जीवन में महाभारत पैदा हो जाएगी। संसार का सबसे सुखी आदमी वही है जो प्रतिकूलता में भी मुस्करा लेता है। हमें कभी भी अहंकार जताने के लिए और किसी को नीचा दिखाने के लिए गुस्सा नहीं करना चाहिए क्योंकि तूफान में कश्तियाँ और अहंकार में बड़ी-बड़ी हस्तियाँ डूब जाती है। उन्होंने मैदान में दो का सिक्का किसी श्रोता से उछलवाया और दो हजार का नोट भी, पर सिक्के में आवाज आई और दो हजार के नोट में किसी प्रकार की ध्वनी नहीं आई। संतप्रवर सबको प्रेरणा देते हुए कहा कि अगर हम ज्यादा चिल्लाएंगे तो हमारी औकात चिल्लर की हो जाएगी और शांत रहेंगे तो दो हजारे नोट की हो जाएगी।
संतप्रवर ने जब कहा कि जिन लोगों को ज्यादा गुस्सा आए वे खड़े होकर मंच की ओर आएं तो अनेक लोगों में एक 80 साल के वयोवृद्ध व्यक्ति भी आगे आए और उन्होंने कहा कि मुझे अपनी धर्मपत्नी पर बेहद गुस्सा आता है, उनकी पत्नी ने भी आगे आकर कहा कि ये बहुत अच्छे आदमी है पर क्रोध ही इनकी कमजोरी है, 80 साल के दादाजी ने सजल नयनों के साथ राष्ट्र-संत के सामने अपनी पत्नी के हाथ में हाथ देकर शपथ लेते हुए कहा कि आज मैं जीवन का पाठ समझ गया हूँ अब से मैं अपनी पत्नी पर कभी गुस्सा नहीं करूंगा। माहौल इतना भावपूर्ण हो गया कि उस वयोवृद्ध दंपति के साथ हजारों लोंगो की आँखें सजल हो गई और सब लोगों ने खड़े होकर संकल्प लिया कि हम आज के बाद गुस्सा नहीं करेंगे।
समारोह का शुभारंभ देवस्थान विभाग के अतिरिक्त आयुक्त श्री यतीन गांधी, सुखराज साहु, हंसराज चौधरी, राज लोढ़ा, कालुलाल जैन आदि ने दीपप्रज्वलन के साथ किया। समिति के सहसंयोजक अनिल नाहर ने बताया कि बुधवार को संतप्रवर सोच को कैसे बनाएँ पॉजिटिव और पावरफुल विषय पर अपना विशेष प्रवचन देंगे।


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