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महाराणा रत्नसिंह द्वितीय की ५२७वीं जयन्ती मनाई

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14 Apr 23
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महाराणा रत्नसिंह द्वितीय की ५२७वीं जयन्ती मनाई

उदयपुर । मेवाड के ५१वें एकलिंग दीवान महाराणा रत्नसिंह की ५२७वीं जयंती महाराणा मेवाड चेरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर की ओर से मनाई गई। महाराणा का जन्म वैशाख कृष्ण अष्टमी, विक्रम संवत १५५३ (१४९६ ई.) को हुआ था।
महाराणा मेवाड चेरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर के प्रशासनिक अधिकारी भूपेन्द्र सिंह आउवा ने बताया कि महाराणा सांगा के देहावसान के पश्चात कुँवर रत्नसिंह की गद्दीनशीनी सम्पन्न हुई। महाराणा रत्नसिंह के दो छोटे भाई विक्रमादित्य एवं उदयसिंह थे, जिन्हें महाराणा सांगा ने रणथम्भौर की जागीर देकर बूंदी के सूरजमल को अपने छोटे पुत्रों का संरक्षक बनाया।
महाराणा सांगा के देहान्त के पश्चात् मेवाड की मालवे पर धाक कम पडने लगी। जिससे मांडू का सुल्तान महमूद मेवाड से अपने हिस्सों को पुनः लेना चाहता था। इस पर महाराणा ने मालवे पर चढाई कर संभल को लूटता हुआ सारंगपुर तक जा पहुँचा तब महमूद उज्जैन से मांडू लौट गया।
महाराणा के मेवाड लौटते समय गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने महाराणा से भेंट कर ३० हाथी कितने ही घोडे भेंट किए और १५०० जरदोजी खिलअते उनके साथियों को भेंट की।
महाराणा रत्नसिंह का देहावसान शिकार खेलते समय बूंदी के हाडा सूरजमल के हाथों हुई, जहाँ दोनों के ही प्राण निकल गये। पाटण में राणा का दाह संस्कार हुआ। यह घटना वि.स. १५८८ में हुई।
फाउण्डेशन आज १४ अप्रेल को महाराणा संग्राम सिंह प्रथम (राणा सांगा) की ५४१व जयन्ती मनाएगा।
 


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