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जाने नवलखा महल के बारे में .......

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22 Feb 23
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जाने नवलखा महल के बारे में .......

नवलखा महल, उदयपुर आज से लगभग १५० वर्ष पूर्व सज्जन निवास बाग के अन्दर महाराणा सज्जन सिह जी ने निर्मित करवाया था। प्रायः अतिथि गृह के रूप में वे इसे प्रयुक्त किया करते थे।
जब उनके निवेदन पर १० अगस्त १८८२ के दिन उस समय के महान् समाज सुधारक, धर्म संशोधक, वेदों के विद्वान्् महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती महाराज पधारे तो इसी नवलखा महल में लगभग साढे छः मास तक विराजे थे और यहीं पर उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश जैसे कालजयी ग्रन्थ का प्रणयन सम्पूर्ण किया था। यहीं पर रहते हुए २७ फरवरी १८८३ को उन्होंने अपनी उत्तराधिकारिणी सभा श्रीमती परोपकारिणी सभा का गठन किया और उसकी रजिस्ट्री करा*। इसके अतिरिक्त इस साढे छः मास के प्रवास काल में महाराणा सज्जन सिह जी प्रतिदिन अपने राव, उमरावों के साथ उनसे सत्संग करने आते थे, राजधर्म की शिक्षा प्राप्त करते थे और किस प्रकार से राज्य कार्य में और प्रजा के मध्य में सुधार के कार्यों को किया जाए, भारतीय संस्कृति के जो मूल तत्व हैं उनको स्थापित किया जाए, इस निमित्त उपदेश ग्रहण करते थे। ज्ञात यह होता है कि महाराज जी जीवन में, उनकी दिनचर्या में, उनकी सोच में आमूलचूल परिवर्तन हो चुका था। ऋषि दयानन्द के विचारों का जादू उनके मन पर छा गया था। वह दिन दूर न था जबकि उनके नेतृत्व में मेवाड की एक अलग प्रकार की पहचान होती, परन्तु विधाता को कुछ और मंजूर था। उधर गुरु स्वामी दयानन्द जल्दी ही निर्वाण को प्राप्त हो गए और उसके लगभग १ वर्ष के पश्चात् उनके प्रिय शिष्य, परोपकारिणी सभा के प्रथम प्रधान-महाराणा सज्जनसिंह जी, स्वामी जी महाराज जिनके लिए ’यादवार्य कुल कमल दिवाकर‘ विशेषण का प्रयोग करते थे, वे भी काल के गर्त में विलीन हो गए।
परन्तु इस सबसे न तो इस स्थल का ऐतिहासिक महत्व कम हुआ और न ही सत्यार्थ प्रकाश जैसे महान् ग्रन्थ की जन्मस्थली होने के कारण यह जो आध्यात्मिक ऊर्जा का केन्द्र बना था इसकी विस्मृति आर्यों को हु*। अतः सदैव आर्यों की अभिलाषा रही कि यह प्रिय स्थल उन्हें मिले और वे इसे एक ऐसे स्मारक के रूप में विकसित करें जहाँ से वैदिक शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार हो सके, महर्षि दयानन्द के मन्तव्यों को दिग्दिगंत में गुंजायमान किया जा सके। १९८२ में उदयपुर में सत्यार्थ प्रकाश शताब्दी का आयोजन हुआ। उस समय पर यह अभिलाषा और बलवती हु*। परन्तु सफलता १९९२ में मिली। इस सफलता का श्रेय जहाँ राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री माननीय भैरों सिह जी शेखावत को जाता है, वहीं शेखावत जी का मानस बनाने के पीछे दो व्यक्तियों का नाम उल्लेखनीय है- एक न्यास के संस्थापक अध्यक्ष पूज्य स्वामी तत्वबोध जी सरस्वती महाराज और दूसरे स्वामी सुमेधानन्द जी सरस्वती जो उस समय में राजस्थान आर्य प्रतिनिधि सभा के मंत्री हुआ करते थे। १९९२ के पश्चात् इस स्थल को सजाने-संवारने के प्रयत्न होते रहे। एक ओर इस जर्जर भवन को मजबूत बनाने के प्रयास होते रहे, वहीं नाना प्रकार की गतिविधियाँ जिससे सामान्यजन में वैदिक शिक्षाओं का प्रसार हो सके पूज्य स्वामी तत्त्वबोध जी सरस्वती के नेतृत्व में की जाती रही। इसी उद्देश्य से यहाँ एक सुन्दर चित्रदीर्घा का निर्माण किया गया जिसमें ५६ ऑयल पेंटिग्स के माध्यम से महर्षि दयानन्द जी के सम्पूर्ण जीवन की प्रमुख घटनाओं को दर्शाया गया। पर्यटक इसे देखने आने लगे। इससे यह विश्वास जागृत हुआ कि इसी रूप में अगर प्रकल्प को विकसित किया जाए तो उदयपुर आने वाले लोगों को यहाँ आकर भारत के उस गौरवशाली अतीत का साक्षात् हो सकता है जो कालक्रम में और शासकों की उपेक्षा के कारण विस्मृति के गर्त में चला गया है। सन् २००४ में स्वामी तत्वबोध जी इस नश्वर संसार को छोडकर चले गए। उनके पश्चात् इस को गति देने में कैप्टन देवरत्न जी आर्य और उनके पश्चात् पद्मभूषण महाशय धर्मपाल जी आर्य ने दिशानिर्देश प्रदान किए और यह यात्रा सुचारू रूप से अपने गन्तव्य की ओर बढती रही।
वर्तमान में अनेक नवाचारों का सृजन किया गया है और आशा की ग* कि पर्यटकों के मध्य अत्यन्त आकर्षण का केन्द्र बन यह नवलखा महल हजारों लाखों दर्शकों को जहाँ एक ओर भारत के गौरवपूर्ण इतिहास का परिचय करा सकेगा, जहाँ भारत माता को स्वतंत्र कराने के लिए जिन सपूतों ने अल्पायु में अपना जीवन न्योछावर कर दिया परन्तु इस देश ने उनको भुला दिया, उनके जीवन को आज के नवयुवकों के समक्ष ला सकेगा, वहीं मानव सही अर्थों में मानव बन सके इसके लिए महर्षि दयानन्द ने जिस संस्कार विधि का निर्देश किया उसको साकार और जीवन्त रूप में यहाँ दिखा करके लोगों को प्रेरित कर सकेगा कि वह अपने जीवन को उस रास्ते की ओर ले जाने का प्रयास कर सकें जिस मार्ग पर चलकर अभ्युदय और निःश्रेयस की प्राप्ति हो सकती है। प्रसन्नता की बात यह है कि इसके निर्माण काल में ही पर्यटकों की संख्या बढने लगी और उनकी प्रतिक्रिया जो अत्यन्त सकारात्मक थी उसने न्यास के इस निश्चय को दृढीभूत किया कि इस कार्य को और सुन्दरता से आगे बढाना चाहिए। उदयपुर के गणमान्य लोग जिनमें हर वर्ग के लोग सम्मिलित हैं उनको भी यहाँ निमंत्रित किया गया और उन्होंने भी अपनी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन किया।
आज यह प्रकल्प सम्पूर्ण रुप से तैयार होकर के जनता जनार्दन के समक्ष उपस्थित है। इसका नामकरण नवलखा महल सांस्कृतिक केन्द्र ;छडब्ब्द्ध के रूप में किया गया है। २६ फरवरी २०२३ को प्रातः १०.०० बजे इसका लोकार्पण गुजरात राज्य के यशस्वी राज्यपाल और आर्य जगत् के सुप्रसिद्ध विद्वान् माननीय आचार्य देवव्रत जी के कर कमलों द्वारा होगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसिद्ध दानवीर उद्योगपति जेबीएम ग्रुप के चेयरमैन माननीय सुरेन्द्र कुमार जी आर्य के द्वारा की जाएगी। आर्य जी जहाँ अनेक योजनाओं को अपने अर्थ सहयोग से संबल प्रदान कर रहे हैं वही गरीब परन्तु उत्कृष्ट छात्रों को प्रतिभा विकास संस्थान के माध्यम से सिविल सर्विस की परीक्षाएँ देने हेतु तैयार करने के लिए विपुल धनराशि का दान कर रहे हैं।
सिक्किम के पूर्व राज्यपाल बाबू गंगाप्रसाद जी के साथ ही आर्य जगत्् के तपोनिष्ठ सन्त, विद्वान् और शीर्ष आर्य नेतृत्व भी उपस्थित होगा। राजस्थान सरकार के जल संसाधन मंत्री माननीय महेन्द्रजीत सिंह मालवीय एवं सहकारिता मंत्री माननीय उदयलाल आंजना, नगर निगम-उदयपुर के महापौर श्री गोविन्द सिंह टांक, सीकर के सांसद स्वामी सुमेधानन्द जी, बागपत सांसद एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. सत्यपाल सिंह, डीएवी प्रबन्धकर्त्तृ सभा के मैनेजिंग डायरेक्टर पद्मश्री पूनम सूरी जी, जेवीएम ग्रुप के चेयरमेन श्री एस.के.आर्य जी, आर्य समाज की सर्वोच्च संस्था के प्रधान श्री सुरेश चन्द्र जी आर्य, बंगाल आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रधान माननीय दीनदयाल जी गुप्त, अमेरिका आर्य प्रतिनिधि सभा के पूर्व प्रधान डॉ. रमेश गुप्ता एवं अन्य गणमान्यजन भी कार्यक्रम में सम्मिलित हगे जिनकी साक्षी में यह भव्य लोकार्पण होगा। 
कार्यक्रम के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए कार्यक्रम के संयोजक और न्यास के संयुक्त मंत्री डॉ. अमृतलाल तापडया ने बताया कि संपूर्ण लोकार्पण कार्यक्रम दो दिन के अंदर तीन सत्रों में सम्पन्न होगा। उन्होंने बताया कि महर्षि दयानन्द जी की द्वि जन्म शताब्दी होने के कारण आगामी दो वर्ष आर्य समाज के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। अतः आर्य समाज के सर्वोच्च अधिकारियों ने निर्णय किया है कि इन पूरे दो वर्षों में प्रेरक कार्यक्रमों की श्रंखला पूरे विश्व में चलाई जाये। इसका शुभारम्भ १२ फरवरी २०२३ को दिल्ली में इन्दिरा गांधी इन्टरनेशनल स्टेडियम में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा किया जा चुका है। यह कार्यक्रम भी उसी श्रृंखला की एक कडी है। आर्य जगत् के सुख्यात विद्वान् आचार्य वेदप्रकाश श्रोत्रिय, आचार्य वागीश जी, डॉ. रघुवीर वेदालंकार, आचार्य वेदप्रिय शास्त्री, आचार्य बलवीर जी, आचार्य अग्निव्रत जी आदि अनेक विद्वान् यहां पधार रहे हैं। 
न्यास के मंत्री श्री भवानीदास आर्य ने महोत्सव पर  की जाने वाली व्यवस्थाओं का विवरण देते हुए बताया कि गुलाब बाग के आसपास ही ९ होटलों व ७ धर्मशालाओं में बाहर से आने वाले अतिथिजनों की ठहरने की व्यवस्था की गई है। एक सहस्र से ऊपर लोगों के आने की संभावना है। जहां लोकार्पण नवलखा महल में होगा। वहीं सभी कार्यक्रम गुलाब बाग स्थित हाथीवाले पार्क में बनाये जा रहे मुख्य पाण्डाल में होंगे। 
न्यास के जनसम्फ सचिव श्री विनोद राठौड ने बताया कि पूर्व नगर विधायक माननीय श्री गुलाब चन्द जी कटारिया का न्यास के हर कार्य में सहयोग रहा है। इस एनएमसीसी की रूपरेखा भी उन्हीं के सहयोग से आरम्भ हुई यह भी सुखद संयोग है। माननीय श्री गुलाब जी भाई साहब ने विधायक निधि से साढे दस लाख रु. की धनराशि डोम बनाने के लिए दी जो कि वस्तुतः प्रथम आहूति थी। उधर भवन की मजबूती को स्मार्ट सिटी ने लगभग पैंतालीस लाख रु. लगाकर सुनिश्चित कर दिया था। इसके बाद प्रभु कृपा से संयोग बनते गए और आज एनएमसीसी के रूप में यह स्थल उदयपुर के पर्यटन क्षेत्र में अपना नाम दर्ज कराते हुए शान से खडा है और हजारों पर्यटक, विद्यार्थी इसे देखकर अभिभूत हो रहे हैं। इसके निर्माण काल के समय में भी ये लोग आते रहे और गद्गद् होकर के इसकी प्रशंसा करते रहे। इससे न्यास को जो सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त हुई। अपने कार्य के प्रति दृढ विश्वास पैदा हुआ। इस सपने को साकार करने में अपनी भूमिका निभाई। 
पर्यटन स्थल प्रायः यद्यपि सौन्दर्य के साथ प्रेरणा की बात भी करते हैं परन्तु नवलखा महल सांस्कृतिक केन्द्र का विकास इस रूप में किया गया है कि जीवन के हर तत्व का दर्शन यहाँ आने वाला कर सकता है। आज के भौतिक चकाचौंध के साये में जो वातावरण निर्मित हो रहा है वह स्वस्थ नहीं कहा जा सकता। ऐसे समय में अत्यन्त आवश्यक प्रतीत होता है कि आने वाली पीढी को भारत के उस स्वरूप का दर्शन कराया जाये। उन साधनों का वर्णन उनके समक्ष प्रस्तुत किया जाये जिन पर चलकर यह देश विश्वगुरु के पद पर आसीन था और यह बात भी उनके मानस में सम्प्रेषित करने का प्रयास किया जाये कि पुनः अगर उसी पथ का अवलम्बन किया जाये तो कोई कारण नहीं है कि हम अपनी पूर्व स्थिति को प्राप्त कर सकें जिसमें पूरे समाज में, पूरे देश में सर्वत्र समरसता ही दर्शित होती थी और विषमता की खाई के दर्शन भी नहीं होते थे। आशा करते हैं कि प्रेस के साथी इन विचारों को जन-जन तक पहुँचाने में न्यास की सहायता करेंगे। 
 


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