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’मेवाड में धातु : कांस्य से स्टील तक‘ तीन दिवसीय कार्यशाला का हुआ समापन

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19 Dec 22
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’मेवाड में धातु : कांस्य से स्टील तक‘ तीन दिवसीय कार्यशाला का हुआ समापन

उदयपुर। महाराणा मेवाड चैरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर द्वारा मेवाड की प्राचीन धातु कला एवं खनन से लेकर वर्तमान की धातु स्टील तक के सफर में मेवाड की समृद्ध खदान ’जावर‘ भ्रमण के साथ ही आज तीन दिवसीय कार्यशाला का समापन हुआ।
समापन अवसर पर महाराणा मेवाड चैरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी भूपेन्द्र सिंह आउवा ने बताया कि मेवाड में मांडलगढ, जहाजपुर, बडी सादडी आदि से लोहा प्राप्त होता था। लेकिन वीगोद की खानों से लोहा अच्छा एवं अधिक निकलता था, वहां के लोहे से बने बर्तन लोग ज्यादा खरीदते थे। इसी तरह जावर की खानों से चाँदी एवं सीसा निकलता था। २ हजार वर्ष पूर्व जावर में धातु प्राप्त करने के तरीके यूरोप के विकसित तरीकों के समान और समृद्ध थी। जावर में धातु प्राप्त करने की उन भट्टियों के अवशेष आज भी देखें जा सकते है। कहीं कहीं पुराने मकानों के अवशेषों में उनके प्रमाण उपलब्ध होते है। प्राचीन समय में जावर बहुत समय समृद्ध नगर रहा जहाँ कीला (महल) पूरा महत्व का है। 
सिटी पैलेस म्यूजियम की कंसलटेंट कंजर्वेटर डॉ. वंदना सिंह ने सिटी पैलेस म्यूजियम में संग्रहित हथियारों एवं सुरक्षा कवच में उपयोग में ली गई धातु, उसकी कला, उनके उपयोग एवं उनके रख-रखाव संबंधी विषयों पर आवश्यक जानकारी प्रस्तुत की। साथ ही डॉ. वंदना सिंह ने मेवाड में पारंपरिक धातु शिल्प कौशल के पुनरुद्धार पर सविस्तार अपने विचारों से अवगत कराया और ब्लेड बनाने की प्रक्रिया पर प्रदर्शन प्रस्तुत किया।
सिटी पैलेस म्युजियम, उदयपुर के एसोसिएट क्यूरेटर डॉ. हंसमुख सेठ ने मेवाड में हथियारों के पुरातात्विक स्रोत पर व्याख्यान प्रस्तुत किया। संयुक्त राज्य अमेरिका के जॉर्डन लामोथे ने भारतीय हथियारों पर सोने एवं चाँदी के अलंकरण की समृद्ध कला की दमिश्क तकनीक पर प्रकाश डाला। कार्यशाला में पारंपरिक हथियारों के संरक्षण और संरक्षण के लिए इस्तेमाल की जाने वाली भारतीय वैज्ञानिक तकनीक का लाइव प्रदर्शन दिखाया गया। साथ ही कोफ्तगरी आर्टिस्ट राहुल चौहान एवं संदीप चौहान ने कोफ्तगरी कार्य के कई प्रदर्शन दिखा सबको उत्साहित कर दिया। 
कार्यालय के समापन दिवस पर सभी प्रतिभागियों को जस्ते के उद्भव स्थल जावर का भ्रमण करवाया गया। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के डॉ. अरविन्द कुमार ने सभी को प्राचीन जस्ते के खनन व प्रगलन के स्थानों को दिखाया तथा जावर में चाँदी के खनन प्रगलन संबंधी ऐतिहासिक प्रमाणों से अवगत करवाया। संपूर्ण विश्व को जस्ते का ज्ञान देने वाले स्थल को देखकर सभी प्रतिभागियों में स्वयं को गौरवान्वित महसूस किया।
अंत में फाउण्डेशन की ओर से डॉ. सेठ ने सभी का आभार-धन्यवाद प्रस्तुत किया।

 


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