उदयपुर के जल स्रोत स्वच्छ रहे तथा पर्यावरण गुणवत्ता की दृष्टि से उत्तम बने, इस के लिए "जल गुणवत्ता जांच नागरिक अभियान -- जानें अपने पानी को,समझें हमारी वेटलैंडस को, संभाले हमारे जल स्रोतों कों " का रविवार से आगाज हुआ।
अभियान विद्या भवन , कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी, जीओलॉजिकल सर्वे ऑफ़ डेनमार्क एंड ग्रीनलैंड, , डेवलपमेंट अल्टरनेटिव , डी एच आई , झील संरक्षण समिति, पर्यावरण संरक्षण गतिविधि के साझे मे प्रारंभ हुआ है।
उल्लेखनीय है कि डेनमार्क सरकार व भारत सरकार के मध्य शहरी विकास, पेयजल , सीवरेज इत्यादि पर हुए समझौते एवं उदयपुर नगर निगम व डेनमार्क के आरहुस नगर निगम में हुई सहमति के आधार पर समुचित एवं उचित गुणवत्ता के जल की आपूर्ति तथा सीवरेज के प्रभावी निस्तारण के लिए डेनमार्क व भारत मिलकर कार्य कर रहे है। इस के तहत आयड नदी बेसिन मे समग्र जल संसाधन प्रबंधन पर एक विश्वस्तरीय शोध भी चल रहा है।
शोध प्रभारी, विद्या भवन पॉलिटेक्निक के प्राचार्य डॉ अनिल मेहता ने बताया कि शोध का एक प्रमुख आयाम नागरिकों को जल स्रोतों की वैज्ञानिक निगरानी मे सम्मिलित कर उनकी सहभागिता से आयड नदी बेसिन को जल समृद्ध बनाना है। जल गुणवत्ता जांच नागरिक अभियान इसी उद्देश्य से प्रारंभ किया गया है।
रविवार को पिछोला किनारे एक फील्ड लेब बनाई गई। विद्या भवन के रूरल इंस्टिट्यूट व पॉलिटेक्निक तथा सी टी ऐ ई के विद्यार्थियों , वैज्ञानिकों सहित जागरुक नागरिकों ने क्षेत्रवासियों को अभियान से जोड़ते हुए झील जल एवं भूजल का गुणवत्ता मापन किया। क्षेत्र वासी अपने नलकूपों, बावड़ियों का पानी लेकर आये तथा जाँच - मापन से जुड़े।
यह कार्य वैज्ञानिक योगिता दशोरा, विनय कुमार गौतम, एकांशा खंडूजा, तान्या इस्सर एवं जयदेव जोशी के निर्देशन तथा तेज शंकर पालीवाल, नंद किशोर शर्मा, पल्लब दत्ता, कुशल रावल, रमेश चंद्र राजपूत, द्रुपद सिंह, क्रुणाल कोष्ठी , पूर्वा सनाढ्य सहित स्थानीय रहवासियों के सहयोग से किया गया।
शोध प्रभारी डॉ अनिल मेहता ने बताया कि क्षेत्र के नलकूपों, बावड़ियों मे अमोनिया की उपस्थिति है तथा रंगसागर मे घुलनशील ऑक्सीजन तीन पी पी एम से भी कम मिली। मेहता ने कहा कि आम नागरिकों की विज्ञानीय समझ व सहभागिता बढ़ाते हुए जल गुणवत्ता सुधार पर कार्य करने की जरूरत है।
झील व सड़कों से पॉलीथीन कचरा हटाया, बनाई इको ब्रिक
पर्यावरण संरक्षण गतिविधि से जुड़े नाहर सिंह की पहल पर विद्यार्थियों व युवाओं ने चांदपोल गेट, नवीन पार्किंग इत्यादि बड़े क्षेत्र मे यत्र तत्र बिखरी पॉलीथीन को एकत्रित किया। इस सारी पॉलीथीन को पानी की एक लीटर की प्लास्टिक बोतल मे ठूँस ठूँस कर भर दिया । आम जन को बताया गया कि वे इस तरह अपने घर मे आने वाली पॉलीथीन को बोतल मे बंद कर " इको ब्रिक " बनाकर पॉलीथीन को झीलों मे जाने से रोक सकते हैं। एक बोतल मे घर मे आने वाला लगभग दो महीने का पॉलीथीन भरा जा सकता है। इसके साथ ही पिछोला के अमरकुण्ड पर श्रमदान मे शराब,पानी, कोल्ड ड्रिंक की बोतलें, घरेलू कचरा व भारी मात्रा में जलीय खरपतवार को बाहर निकाला गया।