उदयपुर । भारतवर्ष में गत १४५० वर्ष से मेवाड का सूर्यवंशी राजपरिवार हिन्दू धर्म, संस्कृति और सभ्यता का ध्वजवाहक बना हुआ है। ६ जून १९२१ को जन्मे महाराणा भगवत सिंह जी इस गौरवशाली परम्परा के ७५वें प्रतिनिधि थे। महाराणा भगवत सिंह जी मेवाड की १००वीं जयन्ती पर महाराणा मेवाड चेरिटेबल फाउण्डेशन उदयपुर की और से पूजा-अर्चना सम्पन्न की गई।
महाराणा की शिक्षा राजकुमारों की शिक्षा के लिए प्रसिद्ध मेयो कॉलेज में हुई थी। वे मेधावी छात्र, ओजस्वी वक्ता और शास्त्रीय संगीत के जानकार तो थे ही साथ ही विभिन्न खेलों और घुडसवारी में सदा आगे रहते थे। राजस्थान टीम के सदस्य के रूप में उन्होंने अनेक क्रिकेट मैच खेले। उन्होंने उस समय की प्रतिष्ठित आई.सी.एस. की प्राथमिक परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके पश्चात् वे उत्तर पश्चिम सीमा प्रान्त के डेरा इस्माइल खां में गाइड रेजिमेंट में भी रहे।
महाराणा भूपाल सिंह जी के निधन के बाद सन् १९५५ में वे गद्दी पर बैठे। उनकी रूचि धार्मिक व सामाजिक कार्यों में बहुत थी। उन्होंने अपनी निजी सम्पत्ति से ११ लाख रुपये देकर महाराणा मेवाड चैरिटेबल फाउण्डेशन ट्रस्ट की स्थापना की, इसके अलावा भी उन्होंने अपनी निजी सम्पत्ति से लाखों रुपये का अनुदान देकर विद्यादान ट्रस्ट, महाराणा मेवाड हिस्टोरिकल पब्लिकेशन्स ट्रस्ट, महाराणा कुम्भा संगीत कला ट्रस्ट आदि के साथ ही अन्य कई छोटे-बडे ट्रस्टों की स्थापना की। आपने विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट उपलब्धि अर्जित करने वाले लोगों के लिए पुरस्कारों की स्थापना की, जिनमें हल्दीघाटी, हारित राशि, महाराणा मेवाड, महाराणा कुम्भा, महाराणा सज्जन सिंह, डागर घराना पुरस्कार व मेधावी छात्रों के लिये भामाशाह, महाराणा राजसिंह व महाराणा फतह सिंह पुरस्कार की स्थापना के साथ ही छात्रवृत्तियों का भी प्रबन्ध किया। देश की स्वतन्त्रता के साथ ही राजतंत्र समाप्त हो गया था फिर भी जनता के मन में उनके प्रति राजा जैसा ही सम्मान था।