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छात्रों में डाले संस्कारों के बीज - प्रो. सांरगदेवोत

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23 Jan 20
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छात्रों में डाले संस्कारों के बीज - प्रो. सांरगदेवोत

उदयपुर (डॉ. घनश्यामसिंह भीण्डर) / समाज व राष्ट्र के प्रति कर्तव्य निष्ठा, तथा संस्कार के भाव को भावी पीढी में जागृत करना होगा तथा साथ ही विश्वविद्यालयी शिक्षा इस तरह की होनी चाहिए जो युवा समाज, देश एवं राष्ट्र का निर्माण करें तथा बावजी चतुर सिंह जी के बताये अध्यात्मिक, सामाजिक दायित्वों  को अपनाये। बावजी ने जनता के लिए उस गुड़ ज्ञान को सुलभ कराया वे आधुनिक राजस्थानी के महान कवि थे। बावजी ने मानव मित्र, राम चरित्र के नाम से रामायण लिखी इस तरह से करीब दो दर्जन ग्रंथ बावजी के लिखे मिलते है। उक्त विचार कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विवि के प्रशासनिक भवन में मेवाड़ के लोकसंत, कवि, दार्शनिक बावजी चतुर सिंह जी की 140वीं जयंति पर आयोजित समारोह में कही। प्रो. जीवन सिंह खरकवाल ने बताया कि बावजी एक संत, कवि, भक्त योगी थे। बावजी ने गंभीर साहित्यिक ग्रंथों का सरल राजस्थान में अनुवाद किया। उन्होने बताया कि द्वितीय विश्व युद्ध में जब पूरे देश में भटकाव की स्थिति थी उस समय चतुर सिंह जी बावजी का जन्म हुआ। उन्होंने मेवाड को नई राह दिखाने का काम किया। विशेषाधिकारी डॉ. हेमशंकर दाधीच, प्रो. जी.एम. मेहता, डॉ. भवानीपाल सिंह, डॉ. आशीष नन्दवाना, निजी सचिव कृष्णकांत कुमावत, डॉ. घनश्याम सिंह भीण्डर, डॉ. चन्द्रेश छतलानी जितेन्द्र सिंह चौहान, नजमुद्दीन, डॉ. कृष्णपाल सिंह, डॉ. महेश आमेटा, डॉ. कुल शेखर व्यास, ने भी अपने विचार व्यक्त किए।


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