उदयपुर, । हुमड़ भवन में आयोजित प्रात:कालीन धर्मसभा में आचार्य सुनीलसागरजी महाराज ने कहा कि मोक्ष मार्ग में ज्ञान की उच्चता काम आती है, त्याग तपस्या और आत्मबोध काम आता है। धन सम्पदा की उच्चता तो संसार में काम आती है। कोई भी कितना ही धन सम्पदा वाला हो लेकिन उसमें आत्मबोध का ज्ञान नहीं है तो वह कभी मोक्षमार्गी नहीं बन सकता है। मोक्ष मार्गी होने के लिए ज्ञान, और सम्यगदृष्टि ही काम आती है। परिग्रह दो प्रकार के होते हैं बाह्य परिग्रह और भीतरी परिग्रह। मिथ्यात्वता, अहंकार, अज्ञानता यह बाहरी परिग्रहों की श्रेणी में आते हैं। आपमें मिथ्यात्वता, अहंकार और अज्ञानता है और आप इसे छोड़ते नहीं हो इसका मतलब आपने इनका परिग्रह कर रखा है। भीतरी परिग्रहों में वो सारे विकार जो आपके भीतर से उठते हैं जैसे क्रोध, मान, माया, लोभ आदि वह भी नहीं छोड़ सकते हो इसका मतलब भीतर भी आपने इनका परिग्रह कर रखा है। जब तक आप इन्हें छोड़ेंगे नहीं आत्मबोध नहीं होगा और आप मोक्ष मार्गी नहीं बन पाओगे।आचार्यश्री ने कहा कि बाह्य परिग्रह 10 प्रकार के होते हैं और भीतर के 14 प्रकार के। बाह्य परिग्रहों से ज्यादा दुखदायी भीतर के परिग्रह होते हैं। अन्तरआत्मा मध्यमवर्गीय होती है और परमात्मा उच्चवर्गीय होते हैं। आप चाहे कितनी ही ध्यान आराधना और तपस्या कर लो लेकिन जब तक आपको आत्मबोध नहीं होगा, आप आत्म चिन्तन नहीं करेंगे तब तक आपका कल्याण नहीं हो सकता है। बरसात के दिनों में कपड़े अक्सर गीले रहते हैं, वो सूखते नहीं है क्योंकि सूर्य की गर्मी नहीं होती है। सूर्य काले घने बादलों की ओट में छुपा रहता है। बिना सूर्य की तपन से कपड़े सुखाना मुश्किल होता है। जिस तरह से गीले कपड़े सुखाने के लिए सूर्य की तपन जरूरी होती है उसी तरह से मनुष्य के अज्ञान का गीलापन दूर करने के लिए ज्ञान की तपन देना जरूरी है। ज्ञान की तपन से अज्ञान रूपी गीलापन सूख जाता है। हमेशा ज्ञान की बातों को अपने दिल में नहीं दीमाग में उतारना चाहिये। कानों से हम जो हम सुनते हैं वह बात दिल में तो उतर जाती है लेकिन दीमाग तक नहीं पहुंचती है और जब दीमाग तक पहुंची ही नहीं है तो उसे स्वीकारेंगे कैसे। इसलिए अच्छी बातों को कानों से सुनो, दिल में उतारो, दिल के जरिये दीमाग में बैठाओ और चिन्तन- मनन करने के बाद उसे स्वीकार करने का साहस करो तभी मोक्ष और कल्याण का मार्ग प्रशस्त होगा।
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