भोग और उपभोग में अंतर समझें - नीलांजना श्रीजी
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01 Aug 17
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उदयपुर। वासुपूज्य स्थित दादावाडी में साध्वी नीलांजना श्रीजी ने कहा कि परमात्मा ने संसार को दो भागों में बांटा है भोग और उपभोग। आप संसार की वस्तुओं को भोग रहे हो या उनका उपभोग कर रहे हो। कीचड विष्ठा अपने दिमाग में भर रखा है। जिसका एक बार प्रयोग हो वह भोग और जिसका बार बार प्रयोग किया जाए वो उपभोग।
साध्वी श्री ने कहा कि अगर सुबह सुबह एक ग्लास दूध पियो तब तक सुख मिलता है लेकिन पत्नी की मनुहार पर बिना इच्छा के एक ग्लास और पी लो तो...। पहली ग्लास पीने में १० मिनट लगे। दूसरी में ३० मिनट लगे। पहले में सुख मिला, दूसरी में जैसे तैसे पी लिया। सुख कहाँ है? यही सोचने की जरूरत है। शरीर से संबंधित जितनी भी वस्तुएं हों, जिनसे सुख मिलता है, वो भोग और उपभोग की परिभाषा में आती हैं। ये सुख देते नही लेकिन सुख का आभास होता है।
आनंद इंद्रियों का विषय नही है। आनंद तो आत्मा का विषय है। परमात्मा के दर्शन से, जिनवाणी सुनने से, स्वाध्याय से जो आनंद मिलता है, वो आनंद है। आनंद की धारा में जब व्यक्ति नहाता है तो वो शांति तक पहुंचता है और शांति से समाधि मिलती है। जहां समाधि है वहां मोक्ष है।
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