कार्यक्रम में डॉ आर. सी. अग्रवाल उपमहानिदेशक (कृषि शिक्षा) भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली ने दीक्षांत उद्बोधन देते हुए कहा कि भारतीय कृषि विविधतापूर्ण है। इसमें जलवायु, मृदा, भूगर्भीय पारिस्थितिकी व वनस्पति तंत्र सम्मिलित है जो सहस्त्राब्दियों से विकसित प्राकृतिक आवास, फसलों व पशुधन की विविधता तय करता है। भारत फसली पौधों की उत्पत्ति के विश्व के 8 केन्द्रों में से एक है। लगभग 166 फसल प्रजातियां व फसलों की 320 जंगली प्रजातियों की उत्पŸिा यहां हुई।
उन्होंने कहा कि देश में इस समय कुल 76 विश्वविद्यालय और 732 केविके है। आठ वर्ष पूर्व तक 23 प्रतिशत छात्राऐं कृषि शिक्षा ग्रहण कर रही थी जो आज बढ़कर 50 प्रतिशत हो चुकिं है जो कृषि में महिलाओं की भागीदारी के अच्छे संकेत है। वर्ष 2040 तक 9.50 लाख कृषि स्नातकों की आवश्यकता होगी जो आज 50 फीसदी ही है।
डॉ. अग्रवाल ने कहा कि इसके अलावा पशुपालन भारतीय अर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग है। पशु आनुवांशिक संसाधन राष्ट्र की पारम्परिक शक्ति है। आज 221 मिलियन टन दुग्ध उत्पादन के साथ हम विश्व पटल पर प्रथम पायदान पर है। दुग्ध उत्पादन में राजस्थान ने उत्तर प्रदेश को पीछे छोड़ते हुए सर्वाधिक दुग्ध उत्पादन वाले राज्य का गौरव पाया है। उन्होंने खुशी जाहिर की कि एमपीयूएटी ने भी बकरी की तीन प्रजातियों के पंजीकरण में महती भूमिका निभाई है।
डॉ. अग्रवाल ने कहा कि वर्ष 1960 से आरंभ हुए कृषि विश्वविद्यालयों ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के साथ मिलकर कृषि को नई दिशा दी है। हमने फसलों के क्षेत्र में हरित, दुग्ध में श्वेत, मत्स्य में नीली, तिलहन में पीली, उद्यानिकी व मधुमक्खी पालन में स्वर्णिम, अण्डा उत्पादन में रजत, कॉफी में भूरी व ऊन उत्पादन में स्लेटी क्रांतियों से एक इंद्रधनुषी परिक्रमण का निर्माण किया है। भारतवर्ष की 1950-51 से अब तक की यात्रा उत्कृष्ट रही है। इस काल में हमने उत्पादन की दृष्टि से खाद्यान्न्ा में 6.46 उद्यानिकी में 14.36, दुग्ध में 13.06, अण्डे में 76.87 व मत्स्य उत्पादन में 22 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है। यही नहीं 2010 तक हम खाद्यान्न्ा सुरक्षित राष्ट्र की श्रेणी में आ गए।
उन्होंने कहा कि आज हमारी जनसंख्या 142 करोड़ है। अनुमानों के अनुसार 2023 तक भारत की जनसंख्या 150 तथा 2040 तक 159 करोड़ पहुंचने की संभावना है। चिंता इस बात की है कि शहरीकरण औद्योगिकीकरण के कारण ग्रामीण श्रेत्रों में फसली क्षेत्रफल में कभी आ रही है। हम जल की दृष्टिसे भी असमृद्ध देखा है। विश्व के ताने पानी का मात्र 4 प्रतिशत हिस्सा ही हमारे पास है। ऐसे में चुनौतियों को ध्यान में रखकर योजनाएं बनानी होंगी।
कुलपति श्री अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि विगत एक वर्ष में विश्वविद्यालय ने अनुसंधान के अलावा विभिन्न क्षेत्रों में अनेक उपलब्धियां हासिल की है। विराट परिसर श्रेष्ठ अकादमिक स्तर व शैक्षणिक गुणवŸाा के कारण आज यह विश्वविद्यालय की भूमिका अद्वितीय है। डाॅ. कर्नाटक ने बताया कि प्रकृतिक खेती पर आगामी वर्ष से विश्ववि़द्यालय कृषि स्नातक कार्यक्रम का एक कोर्स चलाएगा। साथ ही एक प्रथम डिग्री कार्यक्रम आरंभ करने का भी मथंन चल रहा है।
डाॅ. कर्नाटक ने प्रमुख उपलब्धियां गिनाते हुए कहा कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पहली बार अभिन्न तकनीक विकसित कर विगत एक वर्ष में 12 भारतीय व विदेशी पेटेन्ट हासिल किए। इनमें प्रमुख है बायोचार निर्माण, सौर ऊर्जा चलित आइसक्रीम गाड़ी का निमार्ण, कृषि अवशेषों से हाइड्रोजन युक्त सिनगैस का निमार्ण व स्वचालित सब्जी पौध रोपण तकनीक आदि।
उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय कृषि में ड्रोन के उपयोग में राज्य का प्रथम विश्वविद्यालय है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् द्वारा एपलब्ध विŸा से दो ड्रोन क्रय कर किसानों के खेतों पर छिड़काव हेतु सर्वप्रथम उपयोग में लाना शुरू किया।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् राष्ट्रीय पशु आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो करनाल में बकरी की तीन प्रजातियां सोजत, गूजरी व करौली का पंजीकरण कराया गया जबकी चैथी प्रजाति नैनणा के पंजीकरण की कार्यवाही अंतिम चरण में है।
कुलपति ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय मिलेट् वर्ष में भी विश्वविद्यालय ने राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई है। मिलेट्स पर सचित्र मार्गदर्शन, जागरूकता, रैलियां व कार्यशालाएं आयोजित की गई। विधार्थियों द्वारा मिलेट् केक ने तो राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की। वर्ष भर मिलेट् को भोजन में शामिल में करने व मिलेट् पर किए गए कार्यों के संबंध में एक काॅफी टेबल बुक भी तैयार की गई।
उन्होंने बताया कि अनुसंधान के क्षेत्र में विश्वविद्यालय द्वारा विकसित मक्का की किस्म प्रताप संकर मक्का-6 केा राष्ट्रीय स्तर पर चिन्हित व अनुमोदित किया गया। वर्ष 2022-23 में ज्वार, मूंगफली, चना, अश्वगन्धा, असालिया, ईसबगोल, एवं अफीम फसलों की 8 किस्में यथा प्रताप ज्वार-2510, प्रताप मूंगफली-4, प्रताप चना-2, प्रताप चना-3, प्रताप अश्वगन्धा-1, प्रताप असालिया, प्रताप इसबगोल-1 एवं चेतक अफीम राज्य स्तरीय किस्म रिलीज समिति को अनुमोदन हेतु भेजी गयी है। विभिन्न अनुसंधान परियोजनाओं द्वारा वर्ष 2023 में 76 तकनीकों का विकास कर किसानों के उपयोग के लिए सिफारिश की गई। वर्ष 2022-23 में हमारे प्रक्षेत्रों पर 4105.71 क्विंटल गुणवत्ता बीज का उत्पादन किया गया तथा 7.35 लाख पादप रोपण सामग्री तैयार की। साथ ही मछली के 125 लाख स्पान, 3.20 लाख फ्राई और 1.95 लाख फिंगरलिंग का उत्पादन कर कृषकों को वितरित किये गये।