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“कोई यदि हमारे साथ दुष्टता का व्यवहार करे तो हमें उसी प्रकार उससे पेश आना चाहिये। : डॉ. सुखदा सोलंकी”

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19 Feb 19
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“कोई यदि हमारे साथ दुष्टता का व्यवहार करे तो हमें उसी  प्रकार उससे पेश आना चाहिये। : डॉ. सुखदा सोलंकी”

 हम आर्यसमाज धामावाला देहरादून से वर्ष 1970 में जुड़े हैं। जब भी समय मिलता है हम आर्यसमाज के सत्संगों में जाते हैं। आर्यसमाज के सभी अधिकारी एवं सदस्य भी हमारे सर्वथा अनुकूल है। हम भाग्यशाली है कि हमें आर्यसमाज में जाकर प्रसन्नता एवं सन्तोष मिलता है। विगत 49 वर्षों में आर्यसमाज के अनेक विद्वान सदस्य परलोकगामी हो गये। अनेकों से हमारे गहरे सम्बन्ध थे। आज भी सत्संग में बताया गया कि श्री कुन्दन सिंह रावत जी का दिनांक 14 फरवरी, 2019 को देहावसान हो गया। श्री रावत से भी हमारे मित्रतापूर्ण सम्बन्ध रहे हैं। जब भी हम मिलते थे, एक दूसरे को देखकर प्रसन्न होते थे। हम श्री रावत को अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि प्रस्तुत करते हैं।

 

आज आर्यसमाज के सत्संग का आरम्भ सन्ध्या, यज्ञ, भजन, सामूहिक प्रार्थना एवं सत्यार्थप्रकाश के पाठ से हुआ। आज का मुख्य प्रवचन डा. श्रीमती सुखदा सोलंकी जी का हुआ। डा. सोलंकी देहरादून के डीएवी महाविद्यालय में संस्कृत विभाग में प्रोफेसर हैं। आप आर्यसमाजी हैं और आपकी शिक्षा-दीक्षा नरेला स्थित आर्यसमाज के कन्या गुरुकुल में हुई है। हम जब आज आर्यसमाज पहुंचे तो बहिन जी का व्याख्यान चल रहा था। अपने व्याख्यान ने बहिन जी ने तीन दिन पहले पुलवामा, कश्मीर में घटी हिंसक घटनाओं की चर्चा करते हुए उसमें शहीद 40 सीआरपीएफ के शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने कहा कि मृत्यु मनुष्य के अपने हाथ में नहीं होती। महर्षि दयानन्द को मृत्यु से कुछ समय पहले अपनी मृत्यु का आभाष हो गया था। मृत्यु से पूर्व उन्होंने ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना व उपासना की थी और अपने प्राणों को बाहर छोड़ दिया था। बहिन जी ने स्वामी दयानन्द जी के अन्तिम दिनों के सेवक आत्मानन्द जी की कुछ बातों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि स्वामी जी ने आत्मानन्द जी से कुछ मांगने को कहा तो वह बोले थे कि उन्हें स्वामी जी से कुछ नहीं चाहिये। आत्मानन्द जी ने कहा था कि उन्होंने स्वामी जी की जो कुछ सेवा की है वह उनका परम सौभाग्य था। विदुषी बहिन जी ने कहा कि आत्मानन्द जी ने स्वामी जी से पूछा था कि उनका उद्धार कैसे होगा? इसका उत्तर देते हुए स्वामी जी ने बताया था कि वेदों को पढ़ने, पढ़ाने, सुनने, सुनाने तथा प्रचार करने से सबका कल्याण होता है। बहिन जी ने हिन्दी कवि मैथिलीशरण गुप्त जी की एक कविता की पंक्तियों का पाठ भी सुनाया जिसका भाव था कि हम कौन हैं और क्या हो गये, इन बातों पर विचार करें और इनका सत्य उत्तर जानें और अपना सुधार करें। डॉ. सुखदा सोलंकी जी ने कहा कि हमारे अन्दर बुरे संस्कार कहां से आ जाते हैं? उन्होंने कहा कि हमें इस प्रश्न के उत्तर पर विचार करना चाहिये। हमें अपनी सभी बुराईयों को दूर करना चाहिये। बहिन जी ने समाज की स्थिति का चित्रण किया और कश्मीर में कल शहीद हुए हुतात्मा श्री चित्रेश बिष्ट का उल्लेख कर उन्हें अपनी श्रद्धांजलि प्रस्तुत दी।

 

                डॉ. सुखदा सोलंकी जी ने कहा कि किसी भी प्राणी का मन, वचन व कर्म से बुरा न करना वैदिक संस्कृति है। इसके साथ उन्होंने यह भी कहा कि यदि कोई हमारे प्रति दुष्टता का व्यवहार करता है तो हमें भी उससे उसी प्रकार दुष्टता से पेश आना चाहिये। इस संदर्भ में डॉ. सुखदा सोलंकी जी ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के वचनों को प्रस्तुत किया जिसमें उन्होंने पाकिस्तान को चेतावनी देते हुए कहा था कि हम किसी को छेड़ते नहीं है और यदि कोई हमें छेड़े तो हम उसे छोड़ते नहीं है। विदुषी आचार्या ने मनुस्मृति के श्लोक ‘एतद्देशस्य प्रसुतत्य सकाशाद अग्रजन्मः स्वं स्वं चरित्रेन शिक्षरेन पृथिव्यां सर्वमानवाः’ का भी उल्लेख किया और कहा कि विश्व के देशों के लोग हमारे देश में उच्च आदर्शों व चरित्र की शिक्षा लेने आते थे। बहिन जी ने विदेशी आक्रमणकारी सिकन्दर और भारत के एक साधु के बीच हुए संवाद को भी प्रस्तुत कर कहा कि हमारे साधु ने सिकन्दर के साथ जाने से मना कर दिया था और कहा था कि उनके जीवित शरीर को कोई भारत से बाहर नहीं ले जा सकता। उन्होंने किसी व्यक्ति द्वारा सुकरात से किये एक प्रश्न का उल्लेख किया जिसमें पूछा गया था कि उनका देश इतना विकृत कैसे हो गया? इसका उत्तर है कि अच्छी सन्तानों को पैदा न करने वा उनके अभाव से देश में विकृतियां आती हैं। अच्छी सन्तान पैदा करने के लिये सुकरात ने कहा था कि इसके लिये वर्षों तक तपस्या करनी होती है। अपने भीतर सात्विक भावों को जागृत करना होता है। उन्होंने कहा था कि अच्छी सन्तान तभी उत्पन्न होती है जब माता-पिता शुभ विचार तथा आस्तिक भावनाओं वाले हों।

 

                डॉ. सुखदा सोलंकी जी ने कहा कि हमारा देश सुसंस्कारों वाला था। देश में आयी विकृतियों के लिये उन्होंने प्राचीन काल के आचार्यों सहित माता-पिता, देश व समाज को भी उत्तरदायी बताया। बहिन जी ने कहा कि सन्तान में अच्छाईयां और बुराईंया प्रायः अपने माता-पिता से भी आती हैं। उन्होंने कहा कि विष खाकर मनुष्य एक बार मरता है और विषयों का चिन्तन करने से उसे बार बार मरना पड़ता है और धर्म व संस्कृति नष्ट व विलुप्त हो जाती है। बहिन जी ने युवक-युवतियों द्वारा मोबाइल फोन के अधिक प्रयोग वा दुरुपयोग पर भी दुःख व्यक्त किया। विदिषी आचार्या ने अपने महाविद्यालय के छात्रों की दुष्प्रवृत्तियों की चर्चा भी की। बहिन जी ने अपने व्याख्यान में अपने महाविद्यालय में कश्मीर के पुलवामा में शहीद सैनिकों की श्रद्धांजलि व शोक सभा में एक छात्र नेता द्वारा कश्मीर छात्रों की शहीदों के प्रति अभद्र टिप्पणी की जानकारी दी। विद्यालय के छात्रों ने विद्यालय प्रशासन से मांग की कि कश्मीर के छात्रों के प्रवेश देते समय उनकी पुलिस द्वारा बारीकी से जांच कराई जानी चाहिये। बहिन जी ने इस पर सहमति व्यक्त की और कहा कि यद्यपि जांच होती है परन्तु इसे और अधिक सूक्ष्मता से किया जाना चाहिये जिससे देश व समाज विरोधी लोगों को महाविद्यालय व विद्यालयों में प्रवेश न मिले। डॉ. सुखदा सोलंकी ने किसी भी देशवासी द्वारा की जाने वाली देश विरोधी दुष्प्रवृत्तियों के लिये कठोर दण्ड देने की बात कही। उन्होंने वैदिक शास्त्रों का उल्लेख कर कहा कि दण्ड से ही प्रजा को अनुशासित किया जा सकता है। उन्होंने शास्त्रों व अरब देशों का उदाहरण देते हुए कहा कि मनुष्य जिस अंग से अपराध करे उसका छेदन किया जाना चाहिये। ऐसा करने से सामाजिक अपराध समाप्त हो सकते हैं। बहिन जी ने समय-समय पर कशमीर पूर्व राजनेता महबूबा मुफ्ती के देश विरोधी व आतंकवादी समर्थक बयानों के लिये दुःख जताया।

 

                डॉ. सुखदा सोलंकी जी ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति दुष्कर्म करता है तो उसे कठोरतम वा मृत्यु दण्ड देना चाहिये। इस विषय के शास्त्रीय विधानों के उद्धरण भी बहिन जी ने श्रोताओं के सम्मुख प्रस्तुत किये। बहिन जी ने कहा कि हम अपनी रक्षा करें और साथ ही समाज व देश का भी संरक्षण करें। बहिन जी ने बताया कि वह गुरुकुल में पढ़ी हैं,। वहां उन्हें लाठी, तलवार, भाले आदि चलाना सिखाया गया था। इसका उद्देश्य आत्म रक्षा होता है जिससे विपरीत परिस्थितियां उत्पन्न होने पर मनुष्य अपनी रक्षा कर सके। उन्होंने कहा कि युवक युवतियों का लाठी व तलवार आदि का प्रशिक्षण देना आज भी प्रासंगिक है। अपने व्याख्यान को विराम देते हुए बहिन डॉ. सुखदा सोलंकी ने कहा कि हम ईश्वर से स्वाध्याय व स्तुति-प्रार्थना-उपासना आदि के माध्यम से जुडे़। हम ईश्वर के जितना समीप होंगे उतना अधिक हमें ईश्वर से संरक्षण प्राप्त होगा। अन्त में उन्होंने पुलवामा, कश्मीर के शहीदों को पुनः श्रद्धांजलि दी।

 

                आर्यसमाज धामावाला, देहरादून के युवा मंत्री श्री नवीन भट्ट ने विदुषी डॉ. सुखदा सोलंकी जी के व्याख्यान की प्रशंसा की और उनका धन्यवाद किया। सत्संग का समापन डीआरडीओ के सेवानिवृत वैज्ञानिक एवं आर्यसमाज के प्रधान डॉ. महेश कुमार शर्मा जी ने कराया। आज का वेद विचार बताते हुए उन्होंने कहा कि मनुष्य जिस बात की ईश्वर से प्रार्थना करता है, उस प्रार्थना के अनुरूप ही उसे व्यवहार करना चाहिये और वैसे ही भावों को अपने जीवन में उतारना चाहिये। प्रधान जी प्रत्येक सप्ताह ऋषि जीवन का एक संक्षिप्त प्रेरक प्रसंग भी सुनाते हैं। इसके अन्तर्गत उन्होंने कहा कि ऋषि दयानन्द दिनांक 12 मार्च, सन् 1867 को कुम्भ मेले में पधारे थे। उन्होंने हरिद्वार से कुछ दूरी पर आठ-दस छप्पर का डेला डाला था और वहां पाखण्ड मर्दिनी वा पाखण्ड खण्डिनी पताका को गाड़ा था। प्रधान जी ने कहा कि कुम्भ में आये जो यात्री उधर से गुजरते थे वह उसे देखते थे और ऋषि के उपदेशों का श्रवण करते थे। ऋषि दयानन्द के उपदेशों का विषय मूर्तिपूजा, तीर्थ-स्थान, व्रत, उपवास, अवतारवाद, फलित ज्योतिष, सामाजिक असमानता आदि का खण्डन होता था। ऋषि ने मेले में भडुआ भागवत की प्रतियां भी बटवाईं थीं। उनके एक शिष्य माधव जी ने उनसे हर की पैड़ी जाकर स्नान करने की बात कही तो ऋषि ने उन्हें वहां न जाने की सलाह दी थी। उन्होंने कहा था कि हर की पैड़ी पर स्नान करने से कोई लाभ नहीं होता। स्वामी जी ने कहा था कि हर की पौड़ी को हाड़ की पौड़ी कहना अधिक उचित है। हर की पौड़ी पर स्नान करने का जो महत्व बताया जाता है वह भी काल्पनिक है। उससे कोई लाभ नहीं होता। प्रधान डॉ. महेश कुमार शर्मा जी ने हर की पैड़ी से पहले खड़खड़ी श्मशान घाट का उल्लेख किया और कहा कि वहां से हर की पौड़ी पर मृत्य के शरीर के मांस व हड्डियों के अवशेषों सहित चिता की लकड़िया, मृतक के वस्त्र, राख, कोयले, फूल आदि बहकर आते हैं। वह जल अशुद्ध होता है एवं उसका आचमन व स्नान करना उचित नहीं होता। शर्मा जी ने कहा कि वहां जो लोग स्नान करते हैं वह बड़ी विडम्बना है। प्रधान डॉ. शर्मा जी ने 3 मार्च को मनाये जाने वाले ऋषि-बोधोत्सव की सूचना देने के साथ सबको परिवार सहित आर्यसमाज में आने का आमंत्रण दिया। डॉ. शर्मा ने आर्यसमाज के पुराने सदस्य श्री कुन्दन सिंह रावत जी की 14-2-2019 को मृत्यु का दुःखद समाचार भी दिया और शान्ति यज्ञ की सूचना दी। श्री शर्मा जी ने बताया कि श्री रावत प्रत्येक सप्ताह अपनी साइकिल से सत्संग में आते थे। आर्यसमाज की ओर से भी पुलवामा के शहीदों को खड़े होकर श्रद्धांजलि दी गई। श्री श्रद्धानन्द बाल वनिता आश्रम, देहरादून की एक कन्या ने संगठन सूक्त का पाठ कराया और पुरोहित पं. विद्यापति शास्त्री जी ने शान्तिपाठ के मन्त्र का पाठ किया। सभी सदस्यों ने भी पुरोहित जी की आवाज में अपनी आवाज मिलाकर शान्तिपाठ किया। इसी के साथ आज का सत्संग समाप्त हुआ। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

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देहरादून-248001

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