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“ऋषि बोधोत्सव कैसे मनाओगे? : स्वामी श्रद्धानन्द”

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17 Nov 18
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“ऋषि बोधोत्सव कैसे मनाओगे? : स्वामी श्रद्धानन्द” आगामी ऋषि बोधोत्सव का पर्व मार्च 2019 में पड़ रहा है। इस अवसर के लिये मन और मस्तिष्क को प्रभावित करने वाला उपर्युक्त शीर्षक से लिखा व प्रकाशित स्वामी श्रद्धानन्द जी महाराज का एक लेख हम प्रस्तुत कर रहे हैं।
क्या इस बार व्याख्यान सुन और चार आने भेंट चढ़ा कर पल्ला छुड़ाओगे। ऋषि ने तुम्हें सीधा मार्ग दिखाया था, उस पर चलने की कभी तुम्हारी बारी भी आयेगी वा नहीं?
ऋषि दयानन्द ने जन्म दिवस से मृत्यु पर्यन्त ब्रह्मचारी रहकर दिखा दिया। क्या तम्हें ब्रह्मचर्य के पालन का बोध अभी हुआ वा नहीं? यदि विद्यार्थी और अविवाहित हो, तो क्या वीर्य का संयम करके पवित्र पद का अध्ययन करते हो? यदि गृहस्थ हो तो ऋतुगामी होने का दावा कर सकते हो, वा प्रामाणिक व्यभिचार में ही लिप्त हो? यदि अध्यापक हो तो कहीं अब्रह्मचारी रहकर तो ब्रह्मचारियों के पथदर्शक नहीं बन रहे?
प्रकृति पूजा का अनौचित्य समझ कर ऋषि दयानन्द ने उस का खण्डन किया और ईश्वर पूजा परमात्म देव में निमग्न होकर ही उन्होंने इस असार संसार को त्याग दिया। क्या तुम नियम-पूर्वक दोनों काल प्रेम से सन्ध्या करते हो वा केवल ख्ण्डन में ही अपने कर्तव्य की इतिश्री कर देते हो? क्या तुम्हारी सन्ध्या तोते की रटन्त ही है वा कभी उस समय की हुई प्रतिज्ञाओं पर अमल भी शुरू किया है? क्या सदा कड़े खण्डन द्वारा सर्व साधारण को धर्म के शत्रु ही बनाते रहोगे वा उपासना द्वारा पवित्र होकर गिरे से गिरे व्यक्तियों को उठा कर धर्म की ओर खींचने में कृतकार्य होना चाहोगे?
क्या तुम्हारा धर्म-भाव और सिद्धान्त-प्रेम अन्यों की निर्बलताओं को जगत् प्रसिद्ध करने में ही व्यय होगा, वा तुम कभी अपने सदाचार को ऊंचे ले जाकर निर्बलों को ऊपर उठाने का भी प्रयत्न करोगे?
ऋषि ने योगाभ्यास से अलंकृत होकर वेदों का धर्म बताया, परन्तु विनय भाव इतना कि अपनी भूल सुधारने के लिए हर दम तय्यारी जाहिर की। क्या तुम सिद्धान्ती होने के अभिमान को छोड़ कर कभी दूसरे की सुनने को भी तय्यार होगे?
माना कि तुम अपनी अपूर्व तर्क शक्ति से सब कुछ सिद्ध कर सकते हो, परन्तु क्या तुमने कभी सोचा है कि जिस ऋषि के ग्रन्थों से भाव चुराकर तुमने तर्क का महल खड़ा किया है उसने कोरे तर्क को अपने कार्यक्रम में क्या स्थान दिया था?
आर्य सन्तान! आओ! आज से फिर अपने जीवन पर गहरी दृष्टि डालो और समझलो कि जिस सत्य की प्राप्ति के लिए मूलशंकर के हृदय में इस रात्रि को उत्कट इच्छा उत्पन्न हुई उसकी तलाश में उसने शारीरिक कष्टों की कुछ भी परवाह नहीं की, और जंगल और बियाबान पहाड़ और मैदान--सब की खाक छानने और जन-जन से विनय भाव के साथ, उसी का पता लगाते हुए अन्त को सत्य स्वरूप में ही लीन हो गए। चारों आश्रमों में ब्रह्चर्य पालन करते, गुण कर्मानुसार वर्णों की व्यवस्था स्थापन करते, उपासना से हृदय को सत्यग्राही और प्राणिमात्र के लिए कल्याणकारी बनाते हुए जो आर्य पुरुष कल्याण मार्ग में चलने का आज शुभ संकल्प करेंगे, उनका मैं (स्वामी श्रद्धानन्द) भी ऋणी हूंगा। शमित्यो३म्।
स्वामी श्रद्धानन्द जी महाराज का यह लेख आर्य प्रतिनिधि सभा, पंजाब के साप्ताहिक मुख पत्र ‘आर्य ज्योति’ में ‘अमृत-कलश’ के नाम से प्रकाशित ऋषि बोधोत्सव विशेष अंक दिनांक 6-13 फरवरी, 1972 में प्रकाशित हुआ था। इस पत्रिका में यह लेख ‘‘आर्य” पत्र के माघ 1982 (फरवरी, 1926) से उद्धृत किया गया है। हम समझते हैं कि सभी आर्यबन्धुओं को आगामी ऋषि बोधोत्सव 4 मार्च, 2019 सहित यदा-कदा इस लेख पर विचार व चिन्तन करते रहना चाहिये। इसी लिये हमने यह लेख उद्धृत किया है। हम आशा करते हैं कि हमारे सभी मित्र इस लेख को पढ़कर लाभान्वित होंगे। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
पताः 196 चुक्खूवाला-2
देहरादून-248001
फोनः09412985121

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