विश्व पर्यटन की दृष्टि से पहाड़ी किलों और महलों की व्यापकता, मनोहारी भौगोलिक स्थिति, इतिहास और गाथाएँ न केवल हमारे अपने देश वरन दुनियाभर के विदेशी सैलानियों को राजस्थान आने के लिए किसी सम्मोहन से कम नहीं हैं। राजस्थान देश का एक ऐसा रंगीला प्रांत है जो इतिहास में न केवल त्याग, बलिदान और शौर्य की कहानियों के लिये प्रसिद्ध है, बल्कि यहाँ की कला, संस्कृति और सभ्यता के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर एक विशिष्ट पहचान रखता है। अपने ऐतिहासिक, पुरातात्त्विक एवं स्थापत्य महत्व के दर्शनीय स्थलों के कारण राजस्थान देशी विदेशी पर्यटकों के लिये आकर्षण का प्रमुख केन्द्र बन गया है। पैलेस ऑन व्हील्स जैसी शाही रेल देश-विदेश के सैलानियों को राजस्थान की यात्रा आठ दिनों में पूरा करा देती है। राजस्थान की कला-संस्कृति और पर्यटन की गूंज यूरोप और अमेरिका तक सुनाई देती है। भारतीय सिनेमा में खूब चमकता है राजस्थान।
राजस्थान की बहुरंगी संस्कृति और पर्यटन के ऐसे ही महत्वपूर्ण आयामों को छूती है डॉ. प्रभात कुमार सिंघल और डॉ. शशि जैन की संयुक्त पुस्तक " धरोहरों की धरती राजस्थान का पर्यटन सफर" का प्रकाशन 2025 में साहित्यागार, जयपुर द्वारा किया गया है।
राजस्थान की धरती कुछ ऐसी है कि यहाँ जन्म लेकर वीरों ने न केवल इसका गौरव बढ़ाया है बल्कि साहित्य, संस्कृति एवं कला के क्षेत्रों में इसकी श्रीवृद्धि में अपना योगदान दिया है। पृथ्वीराज चौहान, राणाकुम्भा, महाराणा प्रताप, दुर्गादास तथा सवाई जयसिंह आदि इसी रणभूमि की संतानें हैं। भामाशाह की निःस्वार्थ सेवा, पद्मिनी के जौहर और पन्नाधाय के त्याग से दुनिया परिचित है। साहित्य सृजन और चिंतन परम्परा को महाकवि चन्द्र वरदायी, सूर्यमल्ल, कृष्णभक्त मीरा और संत दादू ने जीवित रखा है। राजस्थान के शौर्य का वर्णन करते हुस प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने लिखा है, "राजस्थान में ऐसा कोई राज्य नहीं जिसकी अपनी थर्मोपोली न हो और कोई ऐसा नगर नहीं जिसने अपने लियोनिडास पैदा नहीं किया हो।" राजस्थान की भूमि पर ही खानवाह का इतिहास प्रसिद्ध युद्ध लड़ा गया जिसने भारत के इतिहास को पलट कर रख दिया। इसी राज्य ने मालदेव, चन्द्रसेन और महाराणा प्रताप जैसे वीर दिये हैं जिन्होंने ने सदैव मुगलों से लोहा लेकर प्रदेश की रक्षा की। मालदेव को पराजित कर शेरशाह सूरी यह कहने को मजबूर हुआ, "खैर हुई वरना मुठ्ठी भर बाजरे के लिये मैं हिन्दुस्तान की सल्तनत खो देता।"
राजस्थान की कला, संस्कृति सर पर्यटन की विशेषताओं को 19 अध्यायों में लिपिबद्ध किया गया है। सर्वश्रेष्ठ अवकाश स्थल उदयपुर
किसी भी हिल स्टेशन से कम नहीं है माउंट आबू ,हनीमून कपल्स के लिए नया डेस्टिनेशन बन रहा जैसलमेर का रेगिस्तान, विश्व का एकमात्र गुलाबी नगर जयपुर, विश्व विख्यात ख्वाजा साहब की दरगाह और पुष्कर हैं अजमेर की शान, ऐतिहासिक वैभव की गाथा सुनाते जोधपुर के भव्य किले और महल, मरू भूमि का कमल बाड़मेर, मरूस्थल का कोहिनूर बीकानेर ,बाँधों की क्रीड़ा स्थली रणथम्भौर, विश्व प्रसिद्ध दुर्ग चित्तौड़गढ़ , शांति, प्रकृति के साथ शिल्प का चमत्कार रणकपुर का मंदिर, ओपन आर्ट गैलेरी हैं शेखावाटी की भव्य हवेलियाँ, कुम्भलगढ़ में लीजिए लंबी जिप लाइन से आकाश में उड़ने का मजा, बाघों के साथ झीलों एवं मनोरम घाटियों से श्रृंगारित अलवर, नैसर्गिक सुषमा से लुभाता बाँसवाड़ा पुरातत्व का धनी हाडौती , मध्यकालीन वैभव की नगरी नागौर एवं प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का केंद्र श्रीगंगानगर शीर्षक अपने आप में इन शहरों का पर्यटकीय महत्व बताते हैं। विश्व के संदर्भ में राजस्थान की प्रमुख विशेषताओं पर पृथक से अध्याय है। विशेषता यह है कि सभी पर्यटक स्थलों पर पहुंचने के परिवहन माध्यम, ठहरने के होटल, स्थानीय भोजन, खरीददारी की वस्तुएं, मनोरंजन सुविधाएं आदि की विस्तृत जानकारी दी गई है। राजस्थान के बारे में एक तरह से कंप्लीट गाइड बुक है।
लेखकीय में डॉ. सिंघल।लिखते हैं, " पर्यटन के क्षेत्र में भारत एक गुलदस्ते की तरह है जिसमें विभिन्न रंगों के फूल सजे रहते है। इसी गुलदान का एक फूल है इंद्रधनुषी राजस्थान। हमें गर्व है कि वैश्विक पर्यटन की दृष्टि से राजस्थान आज भारत में पाँचवें स्थान पर है। के लिए अपनी अलग पहचान बनाता है। राज्य में कई स्थानों पर हॉर्स सफारी, एलिफेंट सफारी और जीप सफारी तथा एडवेंचर स्पोर्ट्स का भी अपना मजा है। भारत आने वाले पर्यटकों के लिए 'गोल्डन ट्रायंगल' का हिस्सा होने से भारत आने वाला हर तीसरा पर्यटक राजस्थान आता है। यह देश का प्रथम राज्य है जहाँ 35 वर्ष पूर्व 4 मार्च, 1989 को पर्यटन को उद्योग का दर्जा प्राप्त हुआ था, जिसके परिणाम स्वरूप पर्यटन के क्षेत्र में कई विरासत हेरिटेज होटल्स में तब्दील हो गई, आलीशान होटल्स, रिजॉर्ट, कैफेटेरिया, रेस्टोरेंट, भोजनालय, आथित्य, हस्तशिल्प शोरूम, टूर एंड ट्रेवल्स कंपनी, पर्यटक स्थल के आस-पास फूड स्ट्रीट वेंडर्स, परिवहन आदि क्षेत्रों में पर्यटन सुविधाओं का कल्पनातीत विकास हुआ और लाखों लोगों को पर्यटन आधारित रोजगार सुलभ हुआ। राजस्थान में आधारभूत ढाँचे के तीव्र विकास ने भी पर्यटन को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लग्जरी होटल्स और रिसोर्ट में आते ही पर्यटकों को लोक संगीत के साथ राजस्थानी परंपरा से स्वागत, कोल्ड ड्रिंक, हॉट ड्रिंक एवं हल्के अल्पाहार से आथित्य परंपरा का निर्वाहन करते हैं जिससे, 'पधारों म्हारे देस' के ध्येय वाक्य की झलक देखने को मिलती है।
पर्यटन विकास के लिए कुछ क्षेत्रों को मिलाकर पर्यटन सर्किट विकसित करने से पर्यटन को पंख लगे हैं। देश के अन्य क्षेत्रों की भांति राजस्थान में भी धार्मिक पर्यटन के क्षेत्र में खाटू श्याम जी, सालासर बालाजी, जीण माता, गोविंददेव जी, मोतीडूंगरी के गणेशजी, खोले के हनुमानजी, त्रिनेत्र गणेशजी, महावीरजी, मेंहदीपुर बालाजी, कैलादेवी, ब्रह्माजी, ख्वाजा साहब की दरगाह, श्रीनाथजी, सांवलिया सेठ, इकलिंगजी, केशरिया जी, रणकपुर और देलवाड़ा के जैन मंदिर, त्रिपुरा सुंदरी, बड़े मथुराधीशजी आदि प्रमुख धार्मिक स्थल हैं जिनसे श्रद्धा और आस्था की गंगा बहती है। ये आस्था धाम और तीर्थ विश्वव्यापी ख्याति लिए हैं। प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालुओं के साथ-साथ देश-विदेश के सैलानी भी बड़ी संख्या में इन्हें देखने आते हैं। पहाड़ियों पर बने मंदिरों पर पहुँचने के लिए कई जगह रोपवे की सुविधा का विकास किया जा चुका हैं और कई जगह यह सुविधा उपलब्ध होगी। यूँ तो चप्पे-चप्पे पर राजस्थान में पर्यटकों के लिए आकर्षण की कमी नहीं परंतु यहाँ की रंग-बिरंगी संस्कृति, उत्सव, मेले, वेशभूषा, विविध हस्तशिल्प, लज्जतदार खानपान सभी कुछ सैलानियों के लिए किसी सौगात से कम नहीं है। "