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जा के कह दो चाँद से...

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04 Mar 24
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डॉ. सुशील कुसुमाकर

जा के कह दो चाँद से...

जा के कह दो चाँद से तुम, अब तो आ जाये ज़मीं पे।
जा के कह दो चाँद से तुम, अब तो आ जाये ज़मीं पे।। 
राह उसकी तकते-तकते,
इन्तज़ार उसका करते-करते,
साल गुज़रे, सदियाँ गुज़रीं
पर, चाँद न आया ज़मीं पे। 
जा के कह दो चाँद से तुम, अब तो आ जाये ज़मीं पे।। 
हर बरस चाँद मुझसे, ये कहता रहा 
मैं आऊँगा ज़मीं पे 
औ बिखेरूँगा चाँदनी ज़मीं पे। 
चाँद ने उस रात मुझसे, 
ये वादा किया
तुम बुलाओ जब मुझे, मैं आऊँगा ज़मीं पे।
पर, चाँद झूठा, अब तलक न आया ज़मीं पे।
जा के कह दो चाँद से तुम, अब तो आ जाये ज़मीं पे।। 
सदियों पहले इस ज़मीं पे
राम आये, कृष्ण आये
सदियों पहले इस ज़मीं पे
पीर-ओ-पैग़म्बर भी आये,
पर, मग़रूर चाँद, आज भी बैठा है आसमाँ पे।
जा के कह दो चाँद से तुम, अब तो आ जाये ज़मीं पे।।   
चाँद बैठा आसमाँ से, हँस रहा जो देख के 
ज़मीं के अँधेरे पे,
चाँद बैठा आसमाँ पे, इतरा रहा जिनके दम से 
वो सब फ़ना हो जायेंगे, 
सहर जब आ जायेगी ज़मीं पे।   
जा के कह दो चाँद से तुम, अब तो आ जाये ज़मीं पे।।
जा के कह दो चाँद से तुम, अब तो आ जाये ज़मीं पे।।
 


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