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कविता-नशे से नाश

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24 Jun 21
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कविता-नशे से नाश

नशा है मूर्खता 

क्यों इसे अपनाता।

नशेडी की सदा उपेक्षा 

नहीं बचती आकांक्षा।

आर्थिक होती दरिद्रता 

मिट जाती भव्यता।

प्रेमिका से टूटे डोर 

परिवार बीच बसे बैर‌।

बहक जाती भाषा 

बदल जाती परिभाषा‌।

स्वास्थ्य का नाश 

शरीर जिंदा लाश।

नशा है नाश छोड़ो 

जिंदगी की आस जोड़ो।


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