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गद्य विधा से साहित्य को समृद्ध करने में डॉ.मनीषा शर्मा अपूर्व योगदान

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20 Aug 23
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गद्य विधा से साहित्य को समृद्ध करने में डॉ.मनीषा शर्मा अपूर्व योगदान

कोटा के साहित्यिक जगत में उत्साहवर्धक माहौल है और साहित्य की सभी विधाओं पर सृजन कर साहित्यकार राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय फलक पर अपनी पहचान बना रहे हैं। खूब लिखा जा रहा है, खूब प्रकाशन हो रहा है। साहित्यिक गतिविधियां भी आयोजित होती रहती हैं। ऐसे माहौल में डॉ.मनीषा शर्मा भी किसी से पीछे नहीं हैं और गद्य विधा से साहित्य को समृद्ध करने में अपूर्व योगदान कर रही हैं। आपने हिंदी की गद्य विधा में विभिन्न साहित्यिक शोध आलेख लिख कर,राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनका प्रस्तुतिकरण कर, साहित्यकारों की रचनाओं की समीक्षा कर , समसामयिक विषयों पर आलेख लिख कर,

शोध कार्य और यात्रा संस्मरण लेखन द्वारा हिंदी साहित्य को समृद्ध करने की दिशा में सक्रिय हैं। 

    समीक्षक के रूप में इन्होंने  हाड़ौती के साहित्यकारों के काव्य संग्रह और कथा साहित्य पर समीक्षा की है। डॉ. दया कृष्ण विजय के काव्य संग्रह, आर. सी.शर्मा के काव्य संग्रह अहिल्याकरण, विजय जोशी के काव्य संग्रह और कहानी संग्रह से लेकर आईएएस टीकम अंजाना हो या विश्वामित्र दाधीच का वेदवती उपन्यास अथवा स्नेह लता शर्मा के काव्य संग्रह पत्थरों के भीतर नदी बहती है,श्याम कुमार पोकरा के उपन्यास जोगणिया माता आदि की समीक्षा के साथ-साथ अपने निजी लेखन में रत है।

 सृजन 

 आपकी अब तक दो पुस्तकें "डॉ. जगदीश गुप्त काव्य सिद्वान्त और सृजन" 2003 में और "सामयिक संचेतना और नासिरा शर्मा" 2010 में प्रकाशित हुई हैं। आपने अज्ञेय, विवेकानंद, फणीश्वरनाथ रेणु, मीरा, कबीर, विभिन्न कालों और उपन्यास में नारी स्थिति, आधुनिक हिंदी साहित्य की दशा और दिशा जैसे कई महत्वपूर्ण विषयों पर विशेष रूप से विभिन्न प्रकार से कलम चलाई है।

हाड़ौती अंचल की गीत परंपरा विषय पर शोध आलेख केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा द्वारा प्रकाशित पत्रिका भाषा विमर्श में प्रकाशित हुआ। अब तक इनके लगभग 25 संपादित पुस्तकों में विभिन्न विषयों पर साहित्यिक आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। आकाशवाणी कोटा से भी समय-समय पर विभिन्न ज्वलंत विषयों पर इनकी वार्ताऐं प्रसारित होती रही हैं। पत्रिकाओं में आलेख 

 इनके 100 से अधिक शोध आलेख विभिन्न शोध पत्रिकाओं इंद्रप्रस्त भारती, पांचवां स्तंभ, सदा नीरा, मधुमति, साक्षात्कार, साहित्य प्रभा, त्रेमासिका परिवर्तन, समवेत, बोहल शोध मंजूषा, समसामयिक विमर्श, सृजन कुंज, इंटरनेशनल जर्नल ऑफ इनोवेटिव सोशल साइंस एंड ह्यूमैनिटीज रिसर्च एवम् विभिन्न संपादित पुस्तकों में प्रकाशित हो चुके हैं। 

 प्रमुख आलेखों में अद्वितीय यह क्षण, मेरी तीर्थ यात्रा , विवेकानन्द का शैक्षिक चिन्तन ,इक्कीसवीं सदी के प्रथम दशक के उपन्यासों में स्त्री विमर्श, मेरी उत्कल और बंग प्रदेश यात्रा, प्रथम दशक की हिन्दी कहानी,गेपरनाथ की घाटी में रोमांचकारी रात ,हिन्दी नाटकों में अभिव्यक्त सामाजिक  सरोकार विशेष संदर्भ - डॉ. लक्ष्मीनारायण लाल , हाशिए पर जीवन जीती तीसरी दुनिया का सच, मृदुला सिन्हा के निबन्धों में स्त्री विमर्श , भक्तिकालीन काव्य और नारी विमर्श मिट्टी की गंध के रचनाकार फणीश्वर नाथ रेणु ,मीरा  के काव्य में भक्ति भावना  एवं संत साहित्य में लोकमंगल की भावना, रश्मिरथी में राष्ट्रीय चेतना शामिल हैं।

संगोष्ठियों में सहभागिता

आपने देश के राजस्थान सहित मध्यप्रदेश, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात राज्यों में विभिन्न स्थानों पर आयोजित 150 से अधिक अन्तर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय संगोष्ठियों एवं कार्यशालाओं में सहभागिता कर पत्र वाचन किया है। अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में उपन्यास के प्रतिमान, स्वातंत्र्योत्तर साहित्य में अभिव्यक्त निःशक्त चेतना , प्रथम दशक की कहानी और महिला कहानीकार - समकालीन विमर्श: सामाजिक, सांस्कृतिक परिदृश्य, भक्ति आन्दोलन और कबीर - भक्तिकालीन कविता,  प्रवासी रचनाकार और उनका रचनाकर्म विशेष संदर्भ - सूरीनाम साहित्यकार और मूल संवेदना -  प्रवासी हिन्दी साहित्य: दशा और दिशा,भ्रमरगीत परम्परा में नारी चेतना - जगन्नाथ दास रत्नाकर रचित उद्वव शतक के विशेष संदर्भ में ,  आधुनिक युग में रामकथा का बदलता हुआ स्वरूप - सीता मिथिला की योद्धा उपन्यास के विशेष सन्दर्भ में,  स्वंतत्रता आन्दोलन में नाटककार जयशंकर प्रसाद की भूमिका , सांस्कृतिक चेतना और मातृभाषा,   वैश्वीकरण का भारतीय परिवार व्यवस्था पर प्रभाव ,साहित्य और मानव मूल्य आदि विषयों पर अपने आलेख एवं शोध पत्र प्रस्तुत किए।

    आपने राष्ट्रीय संगोष्ठियों और कार्यशालाओं में विभिन्न स्थानों पर भाग ले कर 21 वीं  सदी के प्रथम दशक की दशा एवं दिशा के उपन्यासों में आदिवासी,  ‘‘मख्मूर सईदी - हयात और खिदमात - उर्दू ,भारत में कन्या भ्रूण हत्या - सांस्कृतिक संदर्भ, वैश्वीकरण का सामाजिक प्रभाव: महिला उपन्यासकारों के संदर्भ में, समकालीन कथा साहित्य और आदिवासी महिला की अस्मिता - स्त्री विमर्श: कल, आज और कल , उच्च शिक्षा और अनुसंधान में सामाजिक सरोकार और मीडिया ( हिन्दी साहित्य के विशेष संदर्भ में ) , साहित्य सृजन और पर्यावरण संरक्षण, राजस्थानी काव्य में राष्ट्रीय मूल्य - भारतीय भाषाओं के साहित्य में भारतीय मूल्य ,आदिवासियों का आर्थिक विकास और चुनौतियाँ, स्वामी विवेकानन्द का शैक्षिक चिन्तन-विज्ञान, आध्यात्म एवं विवेकानन्द,  प्रेमचन्द के कथा साहित्य पर गाँधी चिन्तन का प्रभाव - महात्मा गाँधी: शिक्षा, संस्कृति और भारतीय भाषाऐं ,  स्वाधीनता संग्राम में राष्ट्र कवि दिनकर का साहित्यिक अवदान ,  राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020: संभावनाएँ और चुनौतियाँ , स्वाधीनता आन्दोलन में हिन्दी भाषा, साहित्य, फिल्म तथा पत्रकारिता का योगदान, भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के नाटकों का योगदान आदि विषयों पर शोध पत्रों और लेखों का प्रस्तुतिकरण किया।

पुरस्कार 

साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्यों और उपलब्धियों के लिए आपको 14 सितम्बर 2021 को साहित्य मण्डल नाथद्वारा द्वारा हिन्दी भाषा विभूषण की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया। प्रयाग में 14 से 16 मार्च 2009 को आयोजित 60 वें अधिवेशन में आपको हिन्दी साहित्य सम्मेलन सम्मान से नवाजा गया। कोटा में 14 सितम्बर 2018 को

संभाग स्तरीय हिन्दी सेवी सम्मान, भीलवाड़ा में 26 दिसंबर 2021 को सरोजनी शर्मा स्मृति राष्ट्रीय साहित्याचंल सम्मान,  महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी मुम्बई द्वारा 21-22 फरवरी 2022 को "स्वाधीनता आन्दोलन और हिन्दी साहित्य" पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में उत्कृष्ट शोध पत्र वाचन हेतु सम्मान, कोटा में 22 जून 2022 को श्री कर्मयोगी साहित्य गौरव शान-ए-हाड़ौती सम्मान से पुरस्कृत और सम्मानित किया गया है।

परिचय 

आपका जन्म 9 मार्च  1970 को अजमेर में पिता स्व. श्री मोहन लाल शर्मा एवं माता प्रसन्न देवी शर्मा के आंगन में हुआ। आपने 1993 में हिंदी विषय से स्नातकोत्तर की डिग्री और 1998 में अजमेर विश्वविद्यालय से " काव्य सृजन और सिद्धान्त" विषय पर पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। आप  राजस्थान लोक सेवा आयोग द्वारा चयनित हो कर नवंबर 1998 से निरंतर कॉलेज शिक्षा में सेवारत हैं। वर्तमान में आप राजकीय कला कन्या महाविद्यालय कोटा के हिंदी विभाग में आचार्य पद पर सेवाएं प्रदान कर रही हैं। हिन्दी कथा साहित्य एवं हिन्दी साहित्य का इतिहास में आप की विशेषज्ञता है। 

     आपके निर्देशन में कश्मीर का विस्थापन साहित्य, स्वामी रामानंद, आदिवासी महिला की अस्मिता, निशक्तजन विमर्श ,हिंदी गजल, कथाकार अमरकांत , शत्रुघ्न प्रसाद सिंह, मृदुला सिन्हा के साहित्य आदि विषयों पर अब तक 9 शोधार्थियों को पीएच.डी. की उपाधि प्रदान करवा चुकी हैं तथा 4 शोधार्थी इनके निर्देशन में शोधकार्य कर रहे हैं।  आप राजस्थान साहित्य अकादमी की 18वीं सरस्वती सभा उदयपुर जून 2017 से 2018 तक मनोनीत सदस्य रही है। रक्तदान के प्रति आपकी गहरी रुचि हैं और 2008 से निरंतर रक्तदान कर रही हैं तथा औरों को भी प्रेरित करती हैं। आप महाविद्यालय की सांस्कृतिक, साहित्यिक और अन्य गतिविधियों में भी सक्रिय रहती हैं।

संपर्क मोबाइल : 9460079048


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