कोटा | चम्बल नदी घाटी परियोजना से कोटा का छोटा सा शहर पहले राजस्थान के कानपुर की संज्ञा से जाना जाता था और आज कोंचिंग नगर से विभूषित है। इससे जहां लाखों हैक्टेयर भूमि में सिंचाई सुविधा बढ़ने से कृषि उत्पादन में आशातीत व्रद्धि हुई वहीं यहां उद्योग धंधो का जाल बिछाने में इस परियोजना ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसी का परिणाम है कि कोटा एशिया की सबसे बड़ी सेठ भामाशाह कृषि उपज मंडी है। रास्ट्रीय चम्बल नदी घड़ियाल संरक्षण परियोजना का कोटा में भी प्रमुख भाग आता है।
कोटा शहर के लिए चम्बल पेयजल का प्रमुख श्रोत है। साथ ही रामगंजमंडी एवं बोराबास क्षेत्र में जलापूर्ति करती है। कोटा से चम्बल का जल भीलवाड़ा एवं बूंदी सहित आसपास के गांवों को पहुचाया गया है।
कृषि उत्पादन बढ़ाने,पेयजल उपलब्ध कराने,विद्युत उत्पादन में योगदान करने एंव उद्योगों के विस्तार के बाद अब चम्बल पयर्टन विकास का भी महत्वपूर्ण आधार बनने जा रही है। भीतरिया कुण्ड, चम्बल उद्यान एवं हाड़ौती यातायात पार्क चम्बल नदी के किनारे बनाये गये हैं। चम्बल की अथाह जलराशि से जल क्रीडायें विकसित करने की योजनायें बनाई जा रही हैं। हाल ही में करीब 500 करोड़ रुपये व्यय कर कोटा बैराज से आगे कोटा की ओर चम्बल रिवर फ्रंट योजना बनाई गई है।चम्बल पर्यटन विकास का मजबूत आधार बनने से यह कोटा के लिए एक और वरदान होगा तथा पर्यटन व्यवसाय से रोजगार का नया मार्ग प्रशस्त होगा।
आइये देखते है किस प्रकार चम्बल नदी को बांध कर विकास के सपने संजोए गए। चम्बल नदी देश की एक मात्र ऐसी नदी है जो देक्षिण से उत्तर की ओर बहती हैं। यह उत्तरी-पश्चिमी मध्यप्रदेश एवं दक्षिण-पूर्वी राजस्थान के बहुत बडे़ भाग से होकर उत्तर प्रदेश के इटावा के समीप यमुना नदी में मिलती हैं। अपने उद्गम स्थल से 225 मील की यात्रा कर यह नदी राजस्थान की सीमा में चौरासीगढ़ के निकट प्रवेश करती है। इस जगह पर गहरी तंग घाटी हैं, यहां से 60 मील की दूरी पर कोटा में प्रवेश करती है। कोटा से आगे लगभग 190 मील का मार्ग राजस्थान राज्य में तय कर उत्तर प्रदेश के पठार एवं दर्रा में प्रवेश करती है। इससे पूर्व काली सिन्ध, पार्वती, बनास एवं मेज नदियां इसी में समा जाती हैं।
नदी के उद्गम से लेकर कोटा नगर तक नदी का पाट 2050 फीट के लगभग नीचा है जहां से मैदानों में बहना शुरू करती है। चौरासीगढ़-कोटा के बीच के भाग में नदी का पाट केवल 400 फीट रहता है इसलिये यह भाग बांधो के निर्माण के लिये उपयुक्त पाया गया। बांधों की योजना इस प्रकार बनाई गई कि इस 400 फीट के पाट से विद्युत उत्पादन कर उसका भरपूर उपयोग किया जा सके।
चम्बल नदी घाटी परियोजना मध्यप्रदेश एवं राजस्थान की संयुक्त परियोजना है। परियोजना के अन्तर्गत तीन बांध एवं एक बैराज बनाने क निर्णय लिया गया तथा इसे क्रियान्वित करने के लिए तीन चरणों में योजना बनाई गई। पहले चरण में जवाहर सागर बांध का निर्माण किया गया।
प्रथम चरण में कोटा से करीब सौ किलोमीटर दूर राजस्थान एवं मध्यप्रदेश की सीमा पर चम्बल नदी घाटी योजना का पहला बांध गांधीसागर बनाया गया। यह बांध 1685 फीट लम्बा है तथा ऊँचाई 209 फीट है। इस बांध पर 23-23 मेगावाट विद्युत उत्पादन वाले 4 जेनरेटर एवं 27 मेगावाट का एक जेनरेटर लगाये गये है। प्राकृतिक जलाशय की जल भराव क्षमता 6.28 लाख एकड़ फीट है इस बांध का निर्माण सन् 1953 में प्रारम्भ किया गया तथा नवम्बर 1960 में पूर्ण हुआ।
चम्बल घाटी नदी परियोजना का आखरी बांध कोटा बैराज है। इसे भी सितम्बर 1953 मं बनाना प्रारम्भ कर नवम्बर 1970 में पूर्ण किया गया हैं। इसे देश के प्रथम प्रधानमंत्री स्व. जवाहरलाल नेहरू ने 20 नवम्बर 1960 को लोकार्पित किया था। सिंचाई के लिये बनाये गये कोटा बैराज की लम्बाई 552 फीट एंव धरातल से ऊँचाई 37 मीटर है। बांध के जलाशय की क्षमता 0.08 लाख एकड फीट एवं जलग्रहण क्षेत्र 16.600 वर्गमील है। जल निकासी के लिये 40*40 फीट आकार के 19 दरवाजे बनाये गये हैं। इनसे 7 लाख 50 हजार क्यूसेक पानी एक साथ निकाला ला सकता है। बांध का अधिकतम जलस्तर 857 फीट है। कोटा बैराज का मुख्य ध्येय पानी के स्तर को ऊँचा करके इसके दोनों ओर बनाई गई दांयी एवं बांयी नहरों द्वारा मध्य प्रदेश एवं राजस्थान की 14 लाख एकड़ भूमि को सिंचाई जल उपलब्ध कराना है। दांयी मुख्य नहर 372 किलोमीटर लम्बी है इससे राजस्थान एवं मध्यप्रदेश दोनों राज्यां में सिंचाई होती है। बांयी मुख्य नहर केवल राजस्थान की भूमि को सिंचती है। दोनों मुख्य नहर 124 किलोमीटर राजस्थान में एवं 248 किलोमीटर मध्यप्रदेश में बहती है। बांयी मुख्य नहर एवं इसकी शाखा 170 किलोमीटर हैं। कोटा बैराज के समीप राजस्थान की गौरवमयी कोटा थर्मल पावर परियोजना की 7 इकाइयों से 1241 मेगावाट विद्युत का उत्पादन किया जा रहा है।
चम्बल नदी घाटी परियोजना के दूसरे चरण में गांधीसागर बांध एवं कोटा बैराज के बीच चित्तौड़गढ़ जिले में रावतभाटा के समीप राणाप्रताप सागर बांध एवं विधुत गृह का निर्माण कराया गया। इस बांध का निर्माण बिजली उत्पन्न करने की दृष्टि से कराया गया। विद्युत केन्द्र का निर्माण कनाड़ा सरकार के सहयोग से किया गया है। वर्ष 19़60 से प्रारम्भ बांध एवं विद्युत गृह का निर्माण 1970 में पूरा किया गया। विद्युत उत्पादन के लिये 43 मेघावाट क्षमता की चार इकाईयां लगाई गई। इनमें स्थापित प्रत्येक टरबाईन की क्षमता 52 मेगावाट है। बांध 110 मीटर लम्बा एवं 36 मीटर ऊँचा है। बांध की जलाशय की जलग्रहण क्षमता 3.1 लाख हैक्टर जल रखने की है। इसके साथ ही रावतभाटा में देश के दूसरे बड़े परमाणु बिजली घर की स्थापना चम्बल का ही वरदान है। आज यहां 6 इकाइयों से--1240 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जा रहा है। परियोजना में 700 -700 मेगावाट उत्पादन की इकाई न.7-8 का निर्माण तेजी पर चल रहा है।
परियोजना के तीसरे चरण में जवाहर सागर बांध का निर्माण कराया गया। इस बांध की लम्बाई 1102 फीट एवं ऊँचाई 25 मीटर है। जल संग्रहण क्षमता 18 हजार घन मीटर है। यहां 33 मेगावाट क्षमता के तीन जेनरेटर लगाये गये हैं। जवाहर सागर से भी दो सिंचाई की नहरें निकाली गई हैं। यह बांध एंव विद्युत केन्द्र सितम्बर 1962 में बनना प्रारंभ हुआ एंव 1973 में पूर्ण हुआ। बांध में जल निकासी के लिये 50 *44 फीट आकार के 12 दरवाजे बनाये गये हैं।
ये है चम्बल नदी के विकास उत्तरोत्तर विकास की कहानी । चम्बल राजस्थान को बिजली , पीने का पानी,प्यासे खेतों को जीवनदान , उद्यगों का जाल बिछा कर एवं, कोटा को महत्वपूर्ण नगर बना कर देश और विदेश में ख्याति प्रदान कर आगे बहती चली गई।