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पूरी तरह से नही जला रावण का पुतला, मेला अधिकारी पर महापौर ने लगाए आरोप

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09 Oct 19
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पूरी तरह से नही जला रावण का पुतला, मेला अधिकारी पर महापौर ने लगाए आरोप

126वां राष्ट्रीय दशहरा मेला 2019 में इस बार इतिहास बन गया। करीब सवा सौ साल में पहली बार रावण का पुतला पूरी तरह से नहीं जल सका और वह मंच के पीछे धराशाही हो गया। रावण के पुतले के धराशाही होते ही अधिकारी व कर्मचारी दौड़कर मंच के पीछे गए, जहां रावण के पुतले का कुछ हिस्सा जल रहा था, लेकिन रावण के पांच सिर नहीं जल सके जिन्हें कुल्हाड़ी से काटकर बाद में जलाया गया। 

          इस पूरे मामले में महापौर महेश विजय व मेला समिति के अध्यक्ष राम मोहन मित्रा बाबला ने प्रशासनिक जांच कर दोषियों पर कार्रवाई की मांग की है। मेला समिति अध्यक्ष व महापौर ने मेला अधिकारी पर आरोप लगाए हैं कि अधिकारियों ने न तो मेला समिति के निर्णयों को लागू किया और न ही उनके सुझावों पर अमल किया। पुराने अनुभवी अधिकारियों व रावण बनाने वाले को प्राथमिकता नहीं देने से ये हादसा हुआ है। बाबला ने इस पूरी घटना पर कहा कि ये शर्म की बात है कि इतिहास में पहली बार रावण का पुतला गिर गया।

टेंडर में मेला अधिकारी ने अनुभवी को नहीं दी प्राथमिकता
महापौर महेश विजय ने कहा कि पुतले बनाने के टेंडर में अनुभव को प्राथमिकता नहीं दी गई, इसके लिए अधिकारियों को पहले ही कहा था कि अनुभव को प्राथमिकता देनी चाहिए थी। रावण के पुतले को बनाने में अनुभव को नहीं देखा गया। यहां पैसे की बात नहीं है ये विषय श्रद्धा से जुड़ा हुआ है। आयुक्त नए हैं, मेला समिति के साथ गहनता से चर्चा नहीं हुई। तीन सदस्य कमेटी बनाकर जांच कराई जाएगी। नई भू

रस्सियां हटने से तो नहीं बिगड़ा बैलेंस?
तकनीकी जानकारों के अनुसार एक दिन पहले मुड़े पाइप पर रावण का पुतला तो निगम ने जैसे-तैसे टांग दिया लेकिन हर पल इसे लेकर चिंता रही। इसे बैलेंस करने के लिए जब तक रस्से बंधे रहे तब तक रावण भी खड़ा रहा लेकिन जब जलाने की बात आई तो रस्से हटा लिए गए और जैसे ही रस्से हटे रावण का आगे का हिस्सा जला और वो भी पीछे की तरफ दबा, इससे पूरा वजन पीछे की तरफ हो गया और पाइप फिर से मुड़ गया और पीछे का हिस्सा बिना जले ही गिर गया।

वजन बढ़ने का कारण मौसम तो नहीं?
इस वर्ष बरसात ने भी रावण के निर्माताओं को परेशान किया। बरसात के कारण पाण्डाल गिर गया। इसके बाद भी बरसात का दौर लगातार जारी रहा। रावण दहन के तीन दिन पहले तक बरसात हुई। ऐसे में रावण को सुखाना भी चुनौती हो गई थी, इसके लिए हीटर तक का इस्तेमाल किया गया। यह भी संभव है कि रावण गले नहीं इसके लिए कागज पर ज्यादा कलर और जाडी लुग्दी का इस्तेमाल किया गया हो, जिससे वजन बढ़ा हो। रावण परिवार के तीनों पुतलों का वजन 5 टन था यानी करीब पांच हजार किलो। इसमें रावण का वजन करीब ढाई टन से ज्यादा था। ऐसे में अब तक 72 फिट के रावण के लिए बने लोहे के पाइप के स्टैंड को भी मजबूती की दरकार थी। बढ़े हुए वजन को इस पर लादने से पहले स्ट्रेंथ जांची या नहीं यह भी बड़ा सवाल है।

जलाने का क्रम क्यों बिगड़ा ?
इस बार रावण को जलाने का क्रम भी बिगड़ा रहा। गत वर्षों तक रावण जलने में सबसे पहले दस सिरों को फोड़ा जाता था। इसमें हर सिर को अलग-अलग फोड़ा जाता था। इसके बाद पुतला जलना शुरू होता था। इस बार रावण मुंह और मुकट से जलना तो शुरू हुआ लेकिन उसके सिर नहीं जले। रावण के सिर बिना जले ही गिर गए, जिन्हें बाद में काटकर अलग किया गया और जलाया गया।
जलने से गिरा?
रावण का पुतला हर वर्ष एक से तीन मिनट के बीच पूरी तरह राख में बदल जाता है। हर बार पुतला जलकर गिरता भी है लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। रावण के पुतले में आग लगी और वो करीब 12 मिनट तक चली। ऐसे में रावण के आस-पास तापमान बहुत अधिक बढ़ गया। इससे भी संभव है कि जिस पाइप पर यह खड़ा है वो कमजोर हो गया हो, जहां वेल्डिंग की गई है वो हट गई हो।


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