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मक्का के नये कीट, फॉल आर्मीवर्म, स्पोडोप्टेरा फ्रुजीपरेडा की पहचान एवं प्रबंधन

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12 Apr 19
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मक्का के नये कीट, फॉल आर्मीवर्म, स्पोडोप्टेरा फ्रुजीपरेडा की पहचान एवं प्रबंधन

फॉल आर्मीवर्म मुख्य रूप से अमेरिका में मक्का व अन्य फसलों पर पाया जाने वाला कीट है जिसका वैज्ञानिक नाम स्पोडोप्टेरा फ्रुजीपरेडा है जो की लेपिडोप्टेरा गण में नोक्टयुडी परिवार का कीट है। सन् २०१५ तक यह कीट अमेरिका के अलावा कहीं पर भी नहीं था। जो जनवरी २०१६ में वेस्ट अफ्रीका में पहचा और २०१७ के अंत तक ५४ अफ्रीकी देशों मे से ४४ देशों में फैल चुका है। अफ्रीकी देशों में मक्का वहां के लोगो का प्रमुख भोजन है। अकेले इस कीट ने वहां पर मक्का में काफी नुकसान किया है। भारत में सर्वप्रथम फॉल आर्मीवर्म जुन २०१८ में कृषि महाविद्यालय शिवामोगा (कर्नाटका) में मक्का की फसल पर पहली बार देखा गया और सुनिश्चित किया गया की यह वहीं कीट है जो अमेरिका में पाया गया था। इसके बाद कर्नाटका के कई अन्य जिलों मे जैसे हसन, बेंगलुरू, चिकबालापुर आदि जिलों में देखा गया है। इसके अलावा आन्ध्रप्रदेश, गुजरात एवं राजस्थान में पाया गया।

राजस्थान में यह कीट सर्वप्रथम उदयपुर जिले के राजस्थान कृषि महाविद्यालय के अनुसंधान क्षेत्र में देखा गया जो डॉ. एम.के. महला, विभागाध्यक्ष कीट विज्ञान विभाग, राजस्थान कृषि महाविद्यालय उदयपुर की सर्वे टीम डॉ. अशोक कुमार, कैलाश चन्द्र अहीर और कुलदीप शर्मा ने रबी मक्का में देखा जो की मक्का की फसल को काफी हद तक नुकसान पहचाता है।

पहचानः इस कीट में सुण्डी की ६ अवस्थाये होती है। प्रथम अवस्था की सुण्डी हल्के हरे रंग की जिसका सिर काले रंग का होता है। अन्तिम अवस्था की सुण्डी के सिर पर उल्टे ष्ल्ष् आकार का सफेद चिन्ह एवं शरीर पर काले धब्बे होते है। उदर के ८ वें खण्ड पर चार काले रंग के धब्बे वर्ग के रूप में तथा १ से ७ वें एवं ९ वें खण्ड पर धब्बे समलम्ब चतुर्भुज रूप में होते है। विकसित हो रही सुण्डी गहरे भूरे रंग की एवं शरीर दानेदार होता है।

जब एक ही पौधे पर एक से अधिक सुण्डियों का आक्रमण होता है तो भोजन की कमी के कारण आपस में भोजन के लिये प्रतिस्पर्धा हो जाती है। जिससे उन में पाये जाने वाले एक विशेष प्रकार के लक्षण ष्केनाबोलिज्म प्रवृतिष् के कारण वो एक दूसरे को आपस में खा जाती है। इसकी सुण्डियॉ दिन की बजाय रात्रि में ज्यादा नुकसान करती है। लगभग १४ दिनो में सुण्डी अपनी सभी अवस्थाये पूरी करके जमीन पर गिर कर अन्दर चली जाती है तथा अपनी शंकू अवस्था जमीन के अन्दर ही पूर्ण करती है।

इस कीट की नवजात सुण्डी मक्का के पौधे के तने में छेद करके अन्दर घुस जाती है, जैसे-जैसे पौधा बडा होता जाता है, पतियों पर एक पक्ति में कुछ छेद दिखाई देते है, जो की इसके शुरूआती लक्षण के तौर पर देखे गये है। जैसे-जैसे सूण्डी बडी होती जाती है, पौधे के अन्दर के भाग को खाती रहती है। जिससे पतियॉ कटी-फटी दिखाई देती है तथा जिस जगह सुण्डी खाती है उस जगह बहुत सारी विष्ठा एकत्रित हो जाती है, जो इस कीट से ग्रसित पौधों की पहचान का लक्षण है। खेत में सुण्डियों की संख्या बढ जाने पर यह मक्का के भुटटो में भी छेद कर दानों को खाती है। अधिक आक्रमण के कारण पौधा छोटा रह जाता है, जिससे मक्का के उत्पादन में लगभग १५ से ७५ प्रतिशत कमी हो जाती है।

डॉ. एम.के. महला, कीट वैज्ञानिक एवं विभागाध्यक्ष एवं पीएच.डी. शोधार्थी, कीट विज्ञान विभाग, राजस्थान कृषि महाविद्यालय उदयपुर ने इस कीट के नियत्रण के लिये समन्वित नाशीकीट प्रबंधन तकनीकी के बारे में बताया। जिससे फसल में हो रहे नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है तथा इससे किसानों को आर्थिक नुकसान से बचाया जा सके। जिसके निम्न उपायः

गर्मीयो के दिनों में खेत की गहरी जुताई करके खेत को १०-१५ दिन के लिये छोड दे।

फसल की अगेती बुवाई करे।

जल्दी पकने वाली किस्मों की बुवाई करे।

प्राकृतिक शत्रुओं जैस कोटेशिया मारजिनेटस, ओरियस इनसीडीयोटस इत्यादि का खेतों में संरक्षण करे।

कीट की निगरानी के लिये खेत में फीरोमोन ट्रेप लगाये।

खेत में प्रकाश प्रपंच का प्रयोग करे।

जैविक नियंत्रण हेतु बैसीलस थ्यूरिजियेन्सिस का प्रयोग करे।

रासायनिक नियंत्रण ः मिथोमाईल ४० एस.पी. की ६०० मि.ली. या क्लोरफेनपायर १९२ ग्राम सक्रिय तत्व या स्पाईनटोरम १२ ग्राम सक्रिय तत्व का प्रति हैक्टर की दर से खेत में छिडकाव करे या कार्बोफ्यूरॉन ३ जी. १० से १२ किलोग्राम प्रति हैक्टर की दर से पौधे के ग्रसित भाग में डाले।

 

 

 

 

 

 

 


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