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कोटा में क्या टूटेगी परंपरा, बिरला और गुंजल के बीच कड़ी टक्कर

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22 Apr 24
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कोटा में क्या टूटेगी परंपरा, बिरला और गुंजल के बीच कड़ी टक्कर

कोटा चुनावों का इतिहास रहा है कि कोई भी लोकसभा स्पीकर चुनाव से दोबारा लोकसभा में नहीं पहुंचा। कोटा - बूंदी लोकसभा क्षेत्र से स्पीकर बिड़ला भाजपा के उम्मीदवार है। कांग्रेस के उम्मीदवार प्रह्लाद गुंजल  बिड़ला को कड़ी टक्कर दें रहे हैं। ऐसे में यह चर्चा जोरों पर है की रिकार्ड टूटेगा या परंपरा होगी खत्म।
उल्लेखनीय है की  प्रहलाद गुंजल ओम बिरला के पुराने साथी रहे और उनकी पार्टी में ही थे लेकिन गुंजल ने हाल ही में कांग्रेस का दामन थामा और कांग्रेस के टिकट पर उनके प्रतिद्वंदी के रूप ओम बिरला को चुनौती दे रहे हैं। दोनों का भाग्य 26 अप्रैल को ई वी एम में बंद हो जाएगा। यह तो 4 जून को ही पता चलेगा  कि रिकॉर्ड बनेगा या परंपरा कायम रहेगी।
जो दोबारा लोकसभा नहीं पहुंच पाए.....
जीएमसी बालयोगी : हेलिकॉप्टर दुर्घटना जीएमसी बालयोगी बलराम जाखड़ के बाद दो बार लोकसभा अध्यक्ष बनने वाले आखिरी सांसद थे। उनके बाद कोई सांसद दो बार लोकसभा अध्यक्ष नहीं बन पाया।
1998 में हुए 12वीं लोकसभा के चुनावों के बाद केंद्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार बनी। इस सरकार को तेलगुदेशम पार्टी का भी समर्थन प्राप्त था।
अमलापुरम से सांसद चुनकर आए तेलगुदेशम पार्टी के नेता जीएमसी बालयोगी को लोकसभा अध्यक्ष बनाया गया। इसके बाद 13वीं लोकसभा में वे 22 अक्टूबर 1999 को लोकसभा अध्यक्ष बने। बालयोगी अपना कार्यकाल पूरा कर पाते इससे पहले ही 2 मार्च 2002 में आन्ध्र प्रदेश में एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में उनकी मौत हो गई।
      जीएमसी बालयोगी के निधन पर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी उन्हें श्रद्धांजलि व परिवार को सांत्वना देने पहुंचे थे। मनोहर जोशी : 2004 में हार गए
जीएमसी बालयोगी की मौत के बाद शिवसेना के नेता और मुंबई नॉर्थ सेंट्रल से सांसद मनोहर जोशी को लोकसभा स्पीकर बनाया गया। वे 2004 तक इस पद पर रहे। 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में जोशी कांग्रेस प्रत्याशी एकनाथ गायकवाड़ से हार गए। इसके बाद वे 2006 में राज्यसभा के सदस्य निर्वाचित हुए।
सोमनाथ चटर्जी : चुनाव ही नहीं लड़ा........
2004 में 14वीं लोकसभा के चुनाव के बाद केंद्र में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की सरकार बनी। यूपीए सरकार को वामपंथी दल सरकार में शामिल नहीं होकर बाहर से समर्थन कर रहे थे। ऐसे में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) के वरिष्ठ नेता और बोलपुर से सांसद सोमनाथ चटर्जी 4 अगस्त 2004 को लोकसभा अध्यक्ष बने और 16 मई 2009 तक इस पद पर रहे। 2008 में वामपंथी दलों ने यूपीए से समर्थन वापस ले लिया लेकिन चटर्जी अपने पद पर बने रहे। ऐसे में उन्हें पार्टी से बाहर निकाल दिया गया।
चटर्जी 2009 के लोकसभा चुनाव में मैदान में नहीं उतरे और सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया। सोमनाथ चटर्जी 4 अगस्त 2004 से 16 मई 2009 तक लोकसभा अध्यक्ष रहे।
मीरा कुमार : हार का सामना करना पड़ा
2009 में 15वीं लोकसभा के चुनाव के बाद यूपीए की दोबारा सरकार बनी। इसमें कांग्रेस नेता और सासाराम से सांसद मीरा कुमार को लोकसभा अध्यक्ष बनाया गया। वे इस पद पर 18 मई 2014 तक रहीं। 2014 में 16वीं लोकसभा के चुनाव में वे सासाराम से ही फिर मैदान में उतरीं। उन्हें हार का सामना करना पड़ा और वे लोकसभा नहीं पहुंच पाईं।
सुमित्रा महाजन : राजनीति से संन्यास
2014 में 16वीं लोकसभा के चुनाव के भारतीय जनता पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी तो बीजेपी नेता और इंदौर से सांसद सुमित्रा महाजन को लोकसभा अध्यक्ष बनाया गया। सुमित्रा महाजन 6 जून 2014 से 17 जून 2019 तक लोकसभा अध्यक्ष रहीं।
2019 में 17वीं लोकसभा के चुनाव हुए तो सुमित्रा महाजन ने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया।
बलराम जाखड़ सबसे ज्यादा और बलिराम भगत सबसे कम समय लोकसभा अध्यक्ष रहे
सबसे ज्यादा समय लोकसभा अध्यक्ष बने रहने का रिकॉर्ड बलराम जाखड़ के नाम है। बलराम जाखड़ 9 साल 329 दिन इस पद पर रहे। वे 22 जनवरी 1980 से 18 दिसंबर 1989 तक इस पद पर रहे। वहीं बलिराम भगत सबसे कम समय तक इस पद पर रहे। वे 15 जनवरी 1976 से 25 मार्च 1977 तक 1 साल 69 दिन लोकसभा अध्यक्ष रहे।
पहले अध्यक्ष मावलंकर 1 बार, अयंगर, ढिल्लो और रेड्डी दो-दो बार अध्यक्ष बने जीवी मावलंकर लोकसभा के पहले अध्यक्ष बने। वे इस पद पर 15 मई 1952 से 27 फरवरी 1956 तक रहे। वहीं जीएमसी बालयोगी, एमए अयंगर, गुरुदयाल सिंह ढिल्लो,नीलम संजीव रेड्डी, बलराम जाखड़ दो -दो बार लोकसभा अध्यक्ष चुने गए।
कोटा सीट का चुनावी समीकरण
आजादी के बाद इस सीट पर हुए कुल 17 लोकसभा चुनाव में  4 बार कांग्रेस , 7 बीजेपी और 3 बार भारतीय जनसंघ का कब्जा रहा।
एक-एक बार जनता पार्टी, भारतीय लोकदल और एक बार निर्दलीय जीते। 2023 में हुए विधानसभा चुनावों में कोटा-बूंदी लोकसभा के अंतर्गत आने वाली 8 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस और बीजेपी ने 4-4 सीटों पर जीत दर्ज की।


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