GMCH STORIES

काल तो भारत का देवता है, फिर हॉकिन्स हमारा आधार क्यों - ईश्वर शरण

( Read 4519 Times)

30 Sep 23
Share |
Print This Page
काल तो भारत का देवता है, फिर हॉकिन्स हमारा आधार क्यों - ईश्वर शरण

उदयपुर, उत्तरप्रदेश उच्च शिक्षा आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. ईश्वर शरण विश्वकर्मा ने भारतीय इतिहासविदों से सवाल किया है कि काल तो भारत का देवता है। महाकाल हमारा है। ज्योतिष और कालगणना में भारत का कोई सानी नहीं है। फिर स्टीफन हॉकिन्स हमारा आधार क्यों होना चाहिए।

वे गुरुवार रात इतिहास संकलन समिति चित्तौड़ प्रांत की ओर से ‘इतिहास लेखन: दृष्टि एवं प्रविधियां’ विषय पर आयोजित वेबिनार को संबोधित कर रहे थे। मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. विश्वकर्मा ने कहा कि भारतीय इतिहासकारों के लेखन में मनवंतरों का इतिहास कहां है। वेद, पुराण, उपनिषद, महाभारत आदि भी भारतीय इतिहास का अभिन्न अंग हैं, लेकिन भारतीय इतिहास लेखकों ने इन्हें भारतीय इतिहास का आधार नहीं बनाया। भारत के प्राचीन ग्रंथ इतिहास ही हैं, लेकिन लंदन वालों ने इसे स्वीकार नहीं किया। उन्होंने इतिहासकारों से कहा कि हमें भी इतिहास का समग्र बोध नहीं है। हमारी दृष्टि बाहरी इतिहासकारों के लेखन के सापेक्ष है, जबकि भारतीय प्राचीन पाण्डुलिपियों में भारत का गौरवशाली इतिहास छिपा है। उन्होंने कहा कि मेवाड़ की पाण्डुलिपियां मेवाड़ से ज्यादा मेवाड़ से बाहर रखी हुई हैं, जिन पर समग्र शोध कर लेखन की आवश्यकता है।

प्रो. विश्वकर्मा ने इतिहास लेखन में दृष्टि को स्पष्ट करते हुए कहा कि लेखन के दौरान मानसिकता स्पष्ट होनी चाहिए। इतिहास का क्षेत्र बहुत व्यापक है जिसे हमें सीमित परिप्रेक्ष्य में नहीं देखना चाहिए। वसुधैव अर्थात वैश्विक स्वरूप में हमें इसे देखना होगा तभी इतिहास मानवता के सार्वभौमिक पक्ष को उजागर कर पाएगा। उन्होंने आरसी मजूमदार जैसे इतिहासकारों के कार्यों के महत्व पर प्रकाश डाला तथा बताया कि प्राचीन भारत का अपना गौरवपूर्ण इतिहास रहा है। यही वजह थी कि चीन का एक यात्री ह्वेनस्वांग हजारों किलोमीटर की लम्बी यात्रा कर नालंदा पढ़ने आता है। यह दृष्टांत उस समय के वैश्विक गुरु भारत की तस्वीर को प्रस्तुत करता है।

वेबिनार के मुख्य अतिथि इतिहास संकलन समिति राजस्थान क्षेत्र के क्षेत्रीय संगठन मंत्री छगनलाल बोहरा ने कहा कि अंग्रेजों को सिकंदर के आक्रमण से पहले के इतिहास से गुरेज था, क्योंकि इससे भारत की श्रेष्ठता साबित होती। उन्होंने आज के भारत नहीं, अपितु इतिहास के अखण्ड भारतवर्ष के परिप्रेक्ष्य में वेद-पुराणों, महाभारतकालीन समय के शिक्षा, चिकित्सा, अर्थव्यवस्था, राजनीति आदि क्षेत्रों के समग्र इतिहास लेखन की आवश्यकता पर बल दिया।

कार्यक्रम के अध्यक्षता मंगलायतन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. परमेंद्र दशोरा ने की। उन्होंने कहा कि इतिहास अतीत और भविष्य के बीच एक सेतु का कार्य करता है। इतिहास का अंतर अनुशासनात्मक अध्ययन आवश्यक है। इतिहास केवल पढ़ने के लिए नहीं है, बल्कि उसके दर्शन को स्पष्ट करना भी आवश्यक है, तभी वह मानवता के कल्याण में सहायक हो पाएगा। इतिहास लेखन में दृष्टि का बड़ा महत्व है क्योंकि कहा भी गया है जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि।

वेबिनार के आयोजन सचिव डॉ. मनीष श्रीमाली ने बताया कि प्रारंभ में चित्तौड़ प्रांत के संगठन सचिव रमेश शुक्ला ने समिति के कार्यक्रमों की रूपरेखा प्रस्तुत की। चित्तौड़ प्रांत के संरक्षक डॉ, मोहनलाल साहू ने अतिथियों का स्वागत किया। चित्तौड़ प्रांत के महासचिव डॉ. विवेक भटनागर ने सहभागियों का धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम में तकनीकी सहयोग कौशल मूंदड़ा का रहा तथा संचालन मनोहर दान चारण ने किया। कार्यक्रम में अखिल भारतीय शिक्षा संकलन योजना के उपाध्यक्ष वी. किशन राव, प्रो. मीना गौड़, प्रो. अंबिका ढाका, प्रो हेमेंद्र चौधरी, डॉ. जगदीश खटीक, चैन शंकर दशोरा, मंगल जैन, ओम प्रकाश शर्मा आदि की उपस्थिति रही। कार्यक्रम के संचालन में युवा इतिहासकार परिषद की महत्वपूर्ण भूमिका रही। परिषद के प्रताप दान, महेंद्र सिंह, ओम प्रकाश भट्ट, दिव्यांग सक्सेना, नागराज जोगी आदि की उपस्थित रहे।


Source :
This Article/News is also avaliable in following categories :
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like