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जीवन मूल्यों, सांस्कृतिक परिवेश और मानवीय सन्दर्भों के सशक्त रचनाकार डॉ. प्रभात कुमार सिंघल

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07 Sep 23
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- विजय जोशी, कोटा

जीवन मूल्यों, सांस्कृतिक परिवेश और मानवीय सन्दर्भों के सशक्त रचनाकार डॉ. प्रभात कुमार सिंघल

रचनाकार अपने परिवेश और संस्कार के साथ अर्जित अनुभवों से सृजन सन्दर्भों को विकसित ही नहीं करता वरन् उसे संरक्षित भी करता है। यह भाव और स्वभाव ही एक रचनाकार के सामाजिक सरोकारों को परिलक्षित करता है। इन्हीं सन्दर्भों को अपने भीतर जागृत करते हुए अपने रचनाकर्म में सतत् रूप से सक्रिय हैं राजस्थान सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और शैक्षिक नगरी कोटा के निवासी लेखक, पत्रकार और पूर्व वरिष्ठ जन संपर्क कर्मी डॉ.प्रभात कुमार सिंघल।
      विद्यार्थी जीवन और सेवा काल से ही इनके कला, संस्कृति और साहित्यिक विचारों, व्यवहार, कार्यशैली और लेखन के साथ कुशल आयोजन और प्रबंधन को देखने–समझने का अवसर मिला है। सामाजिक समरसता और समन्वय को समर्पित  सिंघल अपने समभाव और दृष्टिकोण से अपने सृजन कर्म और व्यवहार के प्रति सजग और चेतन होकर निरन्तर सृजन यात्रा कर रहैं हैं।
     अपने सरकारी सेवा काल में सभी वर्ग के सहकर्मियों को साथ लेकर चलने तनाव मुक्त वातावरण में विकसित कार्य शैली की प्रवृत्ति विकसित की और सतत् रूप से इसे अपने व्यवहार में संरक्षित और पल्लवित रखा इसीलिए प्रत्येक व्यक्ति इनके कार्य- व्यवहार से प्रभावित रहा और आगे बढ़ने का मार्ग भी प्रशस्त हुआ। अपने कार्य-व्यवहार से इन्होंने सभी वर्ग के व्यक्तियों की हर संभव मदद की, उनकी समस्या और पीड़ा में भागीदार बने और सभी से पूरा सादर एवं स्नेह भाव रखते हुए अपने सहज स्वभावानुरूप अपने कार्य को समर्पित रहे। 
आप सेवाकाल के पश्चात् निरन्तर सृजन रत तो हैं ही, समाज के सभी क्षेत्रों के प्रतिभाशाली और विशेषज्ञ व्यक्तियों, महिलाओं, बच्चों इत्यादि पर लिखते समय उन्हें प्रोत्साहन देने और प्रेरित करने का भाव सदैव मन में रखते हैं। आज सत्तर वर्ष की उम्र में भी जिंदा दिल रहने की मुख्य वजह लेखन से प्राप्त ऊर्जा को मानने वाले डॉ.प्रभात कुमार सिंघल निस्वार्थ भाव से लेखन को ही अपनी पूजा, धर्म और कर्म मानते हैं और सेवा काल एवं अपने पद के अनुरूप लेखन के क्षेत्र में विभिन्न विषयों कला- संस्कृति, पुरातत्व, इतिहास और पर्यटन पर हजारों आलेख, फीचर, सफलता की कहानियाँ, साक्षात्कार आदि लिखे जो राज्य और राष्ट्रीय पत्र - पत्रिकाओं में बहुतायत से प्रकाशित हुए। यही नहीं विभागीय और अन्य विभागों के पत्र - पत्रिकाओं का लेखन और प्रकाशन भी करवाया वहीं निजी स्तर पर कुछ पुस्तकें भी लिखी और प्रकशित हुई। इसी समर्पण और लगन का परिणाम रहा कि आप सेवा निवृति तक राजस्थान में विख्यात लेखक के रूप में स्थापित हो गए। 
सेवा निवृत्ति के दस वर्ष के काल - खंड में आपने कला - संस्कृति और पर्यटन को अपने लेखन का प्रमुख आधार बनाते हुए इन पर आधारित सैंकड़ों लेख लिखने के साथ - साथ 28 पुस्तकें केवल पर्यटन की विविध विधाओं पर लिखी हैं। आपकी देश की क्षेत्रीय सांस्कृतिक विरासत के आधार पर 6 पुस्तकें, एक भारत के पर्यटन उत्सवों पर और दूसरी आपके अनुभूत संस्मरणों पर प्रकाशनाधीन हैं। देश के इतिहास, भूगोल, संस्कृति और पर्यटन को समझने में इनका पर्यटन साहित्य महत्वपूर्ण तो है ही साथ ही शोध पुस्तकों के रूप में शोधार्थियों के लिए भी अत्यंत उपयोगी है। आपने लेखक के साथ - साथ आज देश में "पर्यटन लेखक" की पहचान स्थापित करने में विशेषज्ञता अर्जित की है। विभिन्न विषयों के साथ - साथ खास तौर पर पर्यटन पर लिखने की वजह से ही इन्हें विभिन्न संस्थाओं द्वारा कई अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय पुरस्कार और सम्मान से सम्मानित किया गया है। लेखन के प्रति समर्पण का ही परिणाम है कि वर्तमान में आप हाड़ोती अंचल के साहित्यकारों, इतिहासकारों और कलाकारों पर पुस्तक लिख रहे हैं।
        इनके प्रारंभिक जीवन का परिवेश कभी भी उत्साहवर्धक नहीं रहा, परिस्थितियां हमेशा विषम बनी रही। जीवन में उत्साह के परिवेश का उजास आपको जन्म के 24 साल बाद प्राप्त होने आरम्भ  हुआ जब एक निजी कंपनी में कार्य करते हुए 1977 में इतिहास विषय से स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की तथा पीएच.डी. के लिए पंजीकरण करवाया। हालांकि बीच में नौकरी लग जाने से इनका यह सपना 1996 में पूरा हुआ। ये राजस्थान के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में 1979 में सहायक जनसंपर्क अधिकारी के पद पर आए और अक्टूबर 2013 में संयुक्त निदेशक पद से सेवा निवृत हुए। इस दौरान इनको उत्कृष्ट सेवाओं के लिए विभिन्न पदों पर तीन बार कोटा जिला प्रशासन द्वारा सम्मानित किया गया और अनेक जिला कलेक्टर और विभागीय निदेशकों ने व्यक्तिगत पत्रों के माध्यम से इनके कार्यों और लेखन का सम्मान किया।
अपने आप को सृजनात्मकता में लीन करने वाले डॉ. प्रभात कुमार सिंघल ऐसे विचारशील लेखक हैं जो समाजिक और सांस्कृतिक सन्दर्भों को सतत् रूप से संस्कारित, पल्लवित और संरक्षित रखने की दिशा में प्रयासरत हैं।
 


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