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"सुनो --पत्थरों के भीतर नदी बहती है " का लोकार्पण -

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29 May 23
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स्नेहलता शर्मा की पुस्तक

"सुनो --पत्थरों के भीतर नदी बहती है " का लोकार्पण -

  कोटा / स्नेहलता शर्मा की कृति " सुनो-पत्थरों के भीतर नदी बहती है" का भव्य लोकार्पण समारोह उनके श्वसुर शिक्षा विद शिवप्रकाश शर्मा के शताब्दी वर्ष समारोह के साथ एक होटल में  सम्पन्न हुआ।
           इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि देश के जाने-माने समालोचक दिल्ली से पधारे डॉ सुधांशु शुक्ल आचार्य हिन्दी हंसराज कॉलेज दिल्ली थे। विशिष्ट अतिथि देश के नामवर साहित्यकार जितेन्द्र निर्मोही , प्रमुख वक्ता प्रोफेसर मनीषा शर्मा तथा समारोह की अध्यक्षता दिल्ली से पधारे जाने माने साहित्यकार रामकिशोर उपाध्याय ने की , समारोह में सरस्वती वंदना सुमन शर्मा बूंदी द्वारा की गई अतिथियों का परिचय पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी रीता  गुप्ता द्वारा दिया गया । संचालन कीर्ति पराशर द्वारा किया गया ।
           स्वागत वक्तव्य के बाद शिक्षा विद शिव प्रकाश शर्मा के कृतित्व और व्यक्तित्व पर उनके पुत्र राकेश शर्मा ने प्रकाश डाला । उन्होंने कहा शिव प्रकाश शर्मा ने संस्कारित विद्यार्थियों को समाज को दिया ,वो जहां रहते शिक्षण संस्था का कायाकल्प कर देते थे।
           विशिष्ट अतिथि जितेन्द्र निर्मोही ने कहा यह कृति लोकार्पण समारोह इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि इसे शिक्षा विद शिव प्रकाश शर्मा के शताब्दी वर्ष से जोड़ दिया गया है । कोई भी परिवार यदि अपनी अगली पीढ़ी के  साहित्यकार को इस तरह याद करता है तो उससे श्राद्ध और सारस्वत यज्ञ हो ही नहीं सकता वह भी ऐसे अवसर जबकि यहां इस समारोह में शिक्षा अधिकारियों की भव्य उपस्थिति है। कोई भी कृति साहित्यकार की अनुकृति होती है ,वो आईना और अपना है साहित्यकार की जब साहित्यकार शब्द से अपना नाता जोड़ता है तो वह घनीभूत संवेदना को सामने लाता है शकील बदायूंनी कहते हैं" पायल के गमों का इल्म नहीं झंकार कि बातें करते हैं,ऐ इश्क ये दुनिया वाले सब बेकार की बातें करते हैं" । स्नेहलता का कृतिकार पत्थरों में संवेदना ढूंढकर नदी को प्रवाहित करता है ।एक शायर का फलक बहुत व्यापक होता है साहिर लुधियानवी कहते हैं" ये वादियां ये घटाएं बुला रही है तुम्हें"।वो अपने महबूब से कहता है" वादियां मेरा दामन रास्ते मेरी बाहें ,तुम मुझे छोड़कर अब कहां जाओगे "। कुछ इसी ढंग से कृतिकार ने आत्मकथ्य में अपने  महबूब को कृति के माध्यम से याद किया । दिल्ली से पधारे दो विद्वान साहित्यकार बंधुओं और डॉ मनीषा शर्मा की उपस्थिति ने इस मंच को महत्वपूर्ण बना दिया है।
         कृति पर बोलते हुए प्रोफेसर मनीषा शर्मा ने कहा कि यह कृति भारतीय संस्कृति, भारतीय जीवन मूल्यों, संवेदनशील घटनाओं और नारी विमर्श का दस्तावेज है। एक कृतिकार अपने समय के संघर्षों के साथ लोक मंगल की भावना से इसलोक को देवलोक बनाने की कोशिश करता है।ऐसी भावना से ही कृतिकार ने इस कृति का सृजन किया है। मैं इसलिए भी अभिभूत हूं की समृद्ध मंच इस पर खुलकर बात करेगा ।
            आयोजन के मुख्य अतिथि डॉ सुधांशु शुक्ल ने कहा किसी भी कृति में कृतिकार का देशप्रेम , बुजुर्ग पीढ़ी के संस्कार, अपने समय का अतिक्रमण होता है वह श्रेष्ठ कृति होती है। समारोह के उपस्थित बुद्धिजीवियों का दायित्व हो जाता है कि वो ऐसी श्रेष्ठ को  न केवल पढ़ें बल्कि उसकी भावना को आम जनों तक पहुंचाएं।इस अवसर पर उन्होंने पोलेंड और अमरीका के वासियों के हिन्दी प्रेम के उदाहरण भी प्रस्तुत किये। उन्होंने कहा कृतिकार स्नेहलता जी ने कृति में अधिकृत रुप से उर्दू शब्दों को पीरोया है वो  प्रशंसा योग्य है। अपनी पहली कृति को समाज अपने परिवार के अग्रज और शिक्षाविदों को जोड़ना अनूठा कार्य है । ऐसे समारोह कम देखने को मिलते हैं।
         इस अवसर पर कृतिकार स्नेहलता शर्मा द्वारा विस्तार से अपना रचना कर्म बताते हुए। संग्रह की कुछ रचनाएं भी पढ़ी , उन्होंने कहा यह कृति मेरे जीवन संघर्षों की कहानी है।
        समारोह की अध्यक्षता करते हुए दिल्ली से आए रामकिशोर उपाध्याय ने कविता क्या है पाश्चात्य विद्वानों के विचार रखे। उन्होंने कहा कि यह संग्रह अपनी जीवन यात्रा को घनीभूत अनुभूतियों के अहसास के साथ सामने लाया गया है। मैंने अपना काव्य संग्रह पचपन की उम्र में लिखा था जो मैथिली शरण गुप्त पुरस्कार से समादृत हुआ है। उन्होंने कृति के बिम्ब प्रतीक, शब्द संयोजन पर विस्तार से जानकारी देते हुए कहा कि यह कृति धैर्य पूर्वक सृजित की गई है ,जिस पर व्यापक चर्चा की जानी चाहिए।कृतिकार को अशेष बधाईयां।
         इस अवसर पर कृतिकार स्नेहलता शर्मा का कोटा महानगर की संस्थाओं और संभाग से पधारे शिक्षा अधिकारियों द्वारा सम्मान किया गया। धन्यवाद कृतिकार की ज्येष्ठ पुत्री द्वारा किया गया। समारोह का संचालन कीर्ति पराशर द्वारा किया गया।


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