GMCH STORIES

किशन प्रणय की ‘अंतरदस’  काव्य संग्रह का विमोचन

( Read 3049 Times)

29 May 23
Share |
Print This Page
किशन प्रणय की ‘अंतरदस’  काव्य संग्रह का विमोचन

कोटा  | कोटा के राजस्थानी और हिन्दी भाषा के चर्चित कवि और उपन्यासकार किशन प्रणय की सातवीं पुस्तक और राजस्थानी भाषा की चौथी पुस्तक ‘अंतरदस’ का विमोचन शनिवार 27 मई को  हिमाचल प्रदेश के 14000 फीट की ऊँचाई पर स्थित सर पास दर्रे में -10 डिग्री में किया गया।

    किशन प्रणय इससे पहले भी अपनी राजस्थानी की तीसरी पुस्तक पंचभूत का विमोचन उत्तराखंड में स्थित 4000 मीटर ऊपर चन्द्रशीला पर कर चुके है।

यह किशन प्रणय की एक नई मुहिम ‘शिखरों पर राजस्थानी भाषा’ के तहत दूसरा पुस्तक विमोचन है। 

     उन्होंने बताया कि पुस्तक अंतरदस की कविताएँ गहन अंतरदृष्टि और भारतीय दर्शन से ओतप्रोत है। इस काव्य संग्रह में 69 काव्य रचनाओं को शामिल किया गया है। इस विमोचन में उनके मित्र और साथी रुपेश गुप्ता, मुकेश आज़ाद, जयप्रकाश आर्य, गाइड सुनील नेगी, आदित्य नेगी और दिल्ली के डॉ आयुष गुप्ता आदि लोगों ने भी उनके साथ सर पास दर्रे तक सफ़र किया। यह सफ़र हिमाचल प्रदेश के बर्फ के तूफ़ान के अलर्ट के दौरान किया गया और 40 किलोमीटर की चढ़ाई बर्फ के तूफ़ानो को पार  राजस्थानी भाषा को इतनी ऊँचाई तक पहुँचाया।

    काव्य संग्रह  के बारे में समीक्षक और कथाकार विजय जोशी ने कहा आपणा परिवेश ईं खँगाळतो मनख जद असल रूप ईं सामै पावै छै तो ऊँ का अंतस में एक खींचाव होवै छै अर ऊ खींचाव का कारण ईं खोजबा चाल पड़ै छै एक अथक जातरा पै ज्याँ कतना ई पड़ावाँ पै ऊँई 'अबखाया का रींगटां' दीखै छै अर असल सूँ टसळ लेतो मनख बी ज्यो आस की तासीर सूँ कदी बी सुन्न नीं पड्यो। 

   अस्या ई भावाँ को सारथी कवि किशन 'प्रणय' की पोथी 'अंतरदस ' काव्य की असी पोथी छै ज्यो सामाजिक संवेदना अर संस्कृति का कतना ई आयाम अर कैई पहलू असल रूप में तो धरै ई छै साथ ई मन के भीतर चालती द्वन्द्व की धारा ईं बी एक दिसा दै छै। जदी तो कवि की आध्यत्मिक  संचेतना भौतिक जगत् का व्यवहारिक रूप ईं उजागर क'र मनख की वैचारिक कड़ियाँ ईं तो जोड़ै ई छै साथ ई ऊँ की प्रवृत्ति का छिप्या भावाँ ईं बी उभारै छै।

     'तरपति' की चार लाइणा सूँ लैर 'आंटै-सांटै ' की तिरेपन लाइणा तांईं विस्तार पाता 'विचार' जद 'तरक्की ' करै छै तो 'लोकतंतर' में रमै छै, 'रचना' में उभरै छै, 'दुविधा' में रै'र 'औकात' पै आ जावै छै 'फैर' 'ठाम' पै पूग'र 'सोच' में डूब जावै छै अर 'परख' करबा लागै छै 'किताबां' की अर हो जावै छै 'समालोचक' अर 'भरम' सूँ 'प्रेम' ईं निकाल'र 'आस' बंधावै छै। ईं कै बाद धीरां-धीरां 'इगसा' का बादळ हटावै छै अर आपणा 'अंतस' में दबी 'हूंस' ईं 'बिसवास' कै साथ 'व्हाँ' लै जावै छै 'ज्हाँ तांईं' 'पिरथवी' का हरैक 'खुण्या' पै 'संसकार' डालबा को 'बारीक काम' होवै छै। य्हाँ सूँ ई 'हाँको' पड़ै छै अर  'उघाड़ो' मनख आपणी 'पिछाण' ईं छिपा'र 'अबखो गेलो' ऊंघाल'र आपणी 'मायड़ भासा' में 'बात' करता थंका 'चक्कर' लगातो जावै छै। 'सगपण कै समरपण' का भावाँ में जकड्या ऊँ का 'खाली हाथ' सूँ  'छूटती कलम' आपणी 'तासीर' को 'असर' दिखाती पाछी 'माटी' सूँ जुड़ै छै तो आपणा 'सत' ईं रखाण 'सबद' की जातरा में 'एक दस' सूँ 'बोध' लै'र 'आतमा' आड़ी चाल पड़ै छै हेरेबा 'अंतरदस'... 'मुगती' कै लेखै... बिना 'चूक' करयाँ...।

    आखीर में या ई कै उपन्यासकार- कवि किशन 'प्रणय'  की 'अंतरदस ' की कवितावाँ दार्शनिक भावाँ कै साथ सामाजिक यथार्थ ईं सामै लाती असी कवितावाँ छै ज्यो मनख जीवन की संवेदना अर ऊँ का बदळता विचारां की परिवेदना ईं आस अर विस्वास कै बीच जातरा करावै छै। असी जातरा जीं में मनख कै भीतर की अंतरदसा ऊँ कै बाहरै की दसों दिसावाँ का उजास में मिलती जावै छै अर ऊ आगै ई आगै बढ़तो जावै छै। आगै बढ़बा की दिसा देती याँ संदी कवितावाँ में मनख अर ऊँ का विचारां में असी जुगलबन्दी होवै छै कै ऊँ का सुर आखो मलख सुणबा कै लेखै एक-दूजा मनख ईं हेरतो दिखै छै। मनख में मनखपण ईं हेरबा की दिसा में या "अंतरदसा" एक दिसा देती पोथी छै।  

 


Source :
This Article/News is also avaliable in following categories : Headlines
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like