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यूँ ही जन नायक नहीं बन गए अशोक गहलोत....

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04 May 23
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-गोपेंद्र नाथ भट्ट -

यूँ ही जन नायक नहीं बन गए अशोक गहलोत....

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को यूँ ही जन नायक नहीं कहा जाता। वे युवा अवस्था में राजनीति मेंआए और देखते ही देखते दिग्गजों से भरी कांग्रेस पार्टी में कदम दर कदम आगे बढ़ते हुए अपनी बेजोड़ जादूगरीसे देश एवं प्रदेश की राजनीति में ऐसे छा गए कि आज वे देश की अग्रणी पंक्ति के एक अहम नेता हैं। उनकेसियासती कदमों ने अच्छे -अच्छे राजनैतिक सूरमाओं को धूल चटाई है।

राजनीति के कई दिग्गज पहले तो गहलोत को राजनीति का कच्चा खिलाड़ी मानते थे, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंनेअपनी छुपी प्रतिभा को कुछ इस तरह प्रदर्शित कर दिखाया कि राजनीति के अनुभवी बड़े-बड़े नेता ‘कछुआ औरख़रगोश’ की दौड़ की तरह ठगे हुए तमाशा देखने को मजबूर हो गए।

गहलोत जब पहली बार जोधपुर से सांसद बन कर दिल्ली पहुँचे थे तो किसी ने नहीं सोचा था कि छरहरे शरीरऔर छह फूट लम्बाई वाला तथा बहुत ही शान्त रहने और कम बोलने वाला यह शर्मिला शख़्स नवयुवकप्रियदर्शनी इंदिरा गांधी जैसी कुशल राजनैत्री के मंत्रीमंडल में शामिल होगा और उनकी नृशंस हत्या के बादप्रचण्ड बहुमत से प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी और नरसिम्हा राव जैसे प्रतिभाशाली प्रधानमंत्रियों के मंत्रीमंडल मेंभी मंत्री बनेगा।

केन्द्रीय मंत्री के रुप  में गहलोत ने देश की राजधानी को जहाँ दिल्ली हाट एवं  निफ़्ट जैसे संस्थान के तोहफ़ेदिये वहीं सिविल एवीएशन और पर्यटन के क्षेत्र में भी उन्होंने कई नवाचार किये। साथ ही गहलोत ने अपनेनिर्वाचन क्षेत्र जोधपुर को देश का पहला ऐसा नगर बनवा दिया जिसमें आज हर प्रकार के बड़े राष्ट्रीय संस्थानमौजूद है तथा प्रदेश का यह दूसरा सबसे बड़ा शहर सड़क, रेल और वायुयान की बेहतर सुविधा से जुड़ा हुआहैं।

राजस्थान के दिग्गज राजनेताओं दिवंगत मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखडियाँ एवं बरकतुल्लाह खान के बाद हरिदेवजोशी,नवल किशोर शर्मा, नाथूराम मिर्धा, राम निवास मिर्धा, कुँवर नटवर सिंह, शिवचरण माथुर,जगन्नाथपहाड़िया, हीरालाल देवपुरा, गुलाब सिंह शक्तावत, भीखाभाई, सी.पी.जोशी, कमला बेनीवाल, डा.गिरिजाव्यास, शीशराम ओला, परसराम मदेरणा, राजेश पायलट, बलराम जाखड, बूटा सिंह आदि दिग्गज नेताओं सेभरी राजस्थान कांग्रेस में जब वे पहली बार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बन कर आयें तो किसी को भी यह विश्वासनहीं हुआ था कि वे राजस्थान में अपनी धाक जमा पायेगें लेकिन जादूगर गहलोत ने अपना ऐसा जादू चला दियाकि वे एक बार ...दो बार नहीं...तीसरी बार भी देश के भौगोलिक नक्शे पर सबसे बड़े प्रदेश राजस्थान केमुख्यमंत्री बने है ।

आज राजनीति के सशक्त और सक्षम  खिलाड़ी माने जाने वाले अशोक गहलोत ने यह मुक़ाम अचानक हीहासिल नहीं किया हैं, बल्कि इसके लिए उन्होंने रात-दिन समर्पित भाव से अपनी पार्टी के सिद्धान्तों के प्रतिप्रतिबद्ध रह कर कड़ी लगन एवं मेहनत और कर्मठता के साथ अपनी एक अलग ही हैसियत बनाई है।

राजनीति में एक क्षण भी गंवाना उनकी डिक्शनरी में नहीं लिखा हैं। एक बार अपने गृह नगर जोधपुर में चुनाव मेंपराजित होने के बावजूद वे निराश नही हुए और चुनाव परिणाम आने के तत्काल बाद अपने मतदाताओं कोघर-घर धन्यवाद देने अकेले ही निकल पड़े थे और देखते ही देखते ऐसा कारवाँ बना कि वे फिर कभी जोधपुर सेकोई चुनाव नहीं हारे। उस दिन रात को ही अपने निजी सहायकों से कहा कि चलो कार्यकर्ताओं,परिचितों एवंशुभ चिंतकों की सभी लिस्ट निकालो, हम नए सिरे से नई सूचियाँ बनाते है। उनके वर्षों उनके एक पुराने सहायकसोभागमल वर्मा बताते है कि गहलोत अलग ही मिट्टी के बने हैं। राजनीति उनके खून में रची बसी है, जिसके बूतेवे रोज़ नई राजनीतिक बिसातें बिछाते हैं और उसमें प्रायः विजयी होते हैं।

राजनीति में लम्बी रेस का घोड़ा बनने की दिवंगत हरिदेव जोशी की नसीहत उनके ज़ेहन में इस तरह घर कर गईहै कि उन्होंने आज अपने क़द को चरमोत्कर्ष तक पहुँचाया हैं। उनमें हर वक्त हर विषय को गहराई से समझनेकी जिज्ञासा देखीं जा सकती हैं। चाहें वह मिठाई का डिब्बा हो अथवा कोई मेडिसिन दवाई का नुस्खा ही क्योंनहीं होवें, वे उसकी तासीर को समझे बिना उसका उपयोग कभी नहीं करते। इसी तर्ज़ पर राजनीति में भी फूँक-फूँक कर कदम उठाने का अभ्यास करते-करते वे आज इसमें इतने पारंगत हो गये है कि लोग उन्हें “राजनीतिका चाणक्य”  और “राजनीति का जादूगर"  कहने लगे हैं। 

गहलोत अपनी ज़बर्दस्त संगठन क्षमता के बलबूते पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के गृहप्रांत गुजरात में प्रतिष्ठा की एक चुनावी लड़ाई में अपने वरिष्ठ नेता और सोनिया गांधी के राजनीतिकसलाहकार अहमद पटेल को राज्य सभा का चुनाव जितवाने में सफल रहें थे। उन्होंने गुजरात के विधानसभाचुनावों में भी प्रभारी रहते हुए भाजपा की चूलें हिलाने में कोई कसर बाक़ी नहीं छोड़ी। कांग्रेस अध्यक्षों सोनियागांधी,राहुल गांधी  एवं  कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेताओं ने उन्हें समय-समय पर जो भी जिम्मेदारियाँ सौंपी, वे सारीउन्होंने बहुत ही शिद्दत के साथ निभाई। फिर चाहें केप्टन अमरेन्द्र सिंह के साथ पंजाब का चुनाव जितवाने कीचुनौती ही क्यों नहीं हो ? अथवा कर्नाटक में सरकार का गठन करवाना हो या दिल्ली एवं उत्तरप्रदेश सहित अन्यराज्यों में संगठन के कार्य आदि  हर कसौटी पर उन्होंने अपने आपको साबित किया है। गहलोत के दूसरेमुख्यमंत्रित्व काल में जयपुर में आयोजित हुए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन में राहुल गाँधी कोपार्टी का उपाध्यक्ष घोषित किया गया । इसी प्रकार उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मन मोहन सिंह और कांग्रेस केअन्य दिग्गज नेताओं को राजस्थान से राज्यसभा का सदस्य बनवा संसद में राजस्थान से एक भी कांग्रेसी सांसदनहीं होने के सूखापन को खत्म कराया था । बाद में उन्होंने पार्टी हाई कमान के निर्देश पर पार्टी के अन्य वरिष्ठनेताओं को भी राज्य सभा में भेज कर अपनी राजनीतिक कुशलता का परिचय दिया। इससे पहले प्रदेश मेंमुख्यमंत्री की रेस और मंत्रीमंडल के गठन और संगठन की चुनौतियों को सुलझाने के साथ ही राहुल गाँधी कीभारत जोड़ों यात्रा को उन्होंने जिस ढंग से सफल बनाया ,वह अपने आपमें असाधारण हैं। गहलोत आज सोनियागाँधी ,राहुल गाँधी,मल्लिकार्जुन खड़गे एवं प्रियंका गाँधी सहित कांग्रेस के सभी दिग्गज नेताओं के चहेते एवंप्रदेश के सर्वमान्य नेता हैं। वे संकट की हर घड़ी और परीक्षा की हर कसौटी  में पार्टी नेताओं के साथ चट्टान कीतरह अडिग खड़े दिखाई देते हैं।

जनमानस उन्हें ज़मीन से जुड़े नेता की नज़रों से देखता हैं। उन्हें “राजस्थान का गाँधी” एवं “राजस्थान काजननायक” जैसी कितनी हीं उपमाओं से सम्बोधित करता है। आज राजस्थान कांग्रेस में उनके क़द का कोईनेता नहीं हैं।

लोकसभा चुनावों में प्रदेश की सभी सीटों और मुख्यमंत्री रहते पाँच साल बाद विधान सभा चुनावों में हुई पिछलींपराजयों ने गहलोत के विरोधियों को उनकी आलोचना का मौक़ा दे दिया। अपने गृह नगर जोधपुर से पहली बारचुनाव मैदान में उतरे गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत के पराजित होने से  गहलोत अंदर तक वेदना ग्रस्त हुएथे,लेकिन उन्होंने उसे कभी अपने चेहरे पर प्रदर्शित नहीं होने दिया और धीर गम्भीर होकर चुनाव परिणामों कोस्पोर्ट्समेन की भावना से लेते हुए लोक कल्याण की अपनी योजनाओं को अमलीजामा पहनाने के कार्य में जूटगए। मुक़्क़दर के सिकंदर गहलोत को इसमें अपनी पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं  विशेष कर सोनिया गाँधी का पूरासमर्थन और आशीर्वाद मिला है।अपने मुख्यमंत्री के रूप में तीसरे कार्यकाल में गहलोत ने कोविड-19 कोरोनाका शानदार प्रबन्धन,अपनी कई लोकप्रिय योजनाओं,राज्य कर्मचारियों के लिए पुरानी पेन्शन योजना, राइट टूहेल्थ, मुख्यमंत्री चिरंजीवी योजना में केस लेश इलाज और 25 लाख का बीमा,दस लाख का दुर्घटनाबीमा,शहरी मनेरेगा में रोज़गार,पाँच सौ रु में गैस सिलेण्डर,100  यूनिट घरेलु बिजली और किसानों को 2000 यूनिट कृषि प्रोजनार्थ बिजली मुफ्त देने, महिलाओं को स्मार्ट फोन, प्रदेश में 19 नए जिलों और  3 नए संभागोंका गठन का तुरुप का पत्ता तथा महंगाई राहत शिविरों के माध्यम से करोड़ों लोगों की तकलीफों को दूर करनेआदि अनेक बजट घोषणाओं से इस वर्ष नवम्बर-दिसंबर में होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव से पहलें ऐसावातावरण बना दिया है कि आज राज्य में हर पाँच वर्ष बाद भाजपा और कांग्रेस की बारी-बारी से सरकार बननेकी परम्परा को तोड़ने का दावा भी किया जा रहा है।

वे अपनी पार्टी के गिने चुने नेताओं में से एक हैं जो कि हर मुद्दे पर नरेन्द्र मोदी और अमित शाह को हर रोज़सार्वजनिक रूप से घेरने का साहस प्रदर्शित करते है।समसामयिक विषयों पर बेबाक़ी एवं सटीक टिप्पणियाँकी वजह से वे बहुत चर्चित हो गए हैं। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर वे पिछले कई वर्षों से बोलते रहे है । चुनावी फण्डको लेकर प्रायः उनके बयान राष्ट्रीय स्तर पर गम्भीर चिन्तन चर्चाओं का विषय बनते आयें है।

राजस्थान में पिछलें साढ़े चार वर्षों में हुए विधानसभा के लगभग सभी उप चुनावों के साथ ही और पंचायत  निकाय चुनावों में भी गहलोत को भारी विजय मिलीं हैं।

दिल्ली के पार्टी की रेलियों और प्रदर्शनों की सफलता में भी गहलोत की रणनीतिक अहम भूमिका रहती  हैं।हाई कमान की नज़रों में गहलोत हमेशा  खरे साबित हुए है।गहलोत बहुत हाई साफ़गोई में विश्वास रखते हैऔर हर सकारात्मक आलोचना को सरकार के लिए आई ऑपनर और  कमियों को सुधारने का पैमाना मानतेहै।अपनी तीसरी पारी में गहलोत काफ़ी बदले हुए तेवर दिखाते हुए चीते की चाल से परिणाम दायकउपलब्धियों को पूरा करने में किसी प्रकार की कोताही बर्दाश्त नहीं करते हैं। वे अपनी सरकार के मंत्रजवाबदेही,पारदर्शी एवं संवेदनशील होने के सिद्धान्त पर नहीं चलने वाले अपने मंत्रियों पार्टी नेताओं औरसरकारी कारिंदों को अपना स्पष्ट सन्देश दे कड़ी कार्यवाही से भी नहीं चूकते हैं। 72 वर्षीय मुख्यमंत्री अशोकगहलोत के दृढ़ इरादों से राजस्थान के विकास को नए पंख लग रहें हैं।


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