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जनजाति समाज सामाजिक सौहार्द्र-समरसता का प्रतीक-पण्ड्या

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15 Nov 22
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जनजाति समाज सामाजिक सौहार्द्र-समरसता का प्रतीक-पण्ड्या

 

भगवान बिर

सा मुंडा जयंती एवं जनजातीय गौरव दिवस पर माणिक्यलाल वर्मा आदिम जाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान एवं जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय के संघटक साहित्य संस्थान के संयुक्त तत्वावधान मंगलवार को प्रतापनगर स्थित आईटी सभागार में ‘राजस्थान के जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी‘ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी शुरू हुई।




संगोष्ठी के मुख्य वक्त कोटा विवि के इतिहास विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष एवं इतिहासविद् प्रो. बी.के. शर्मा ने कहा कि इतिहास ज्ञान की महत्वपूर्ण शाखा है जिससे किसी भी राष्ट्र के बारे में उन तथ्यों की समझ पैदा होती है जिससे वहां के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक वातावरण को जाना जा सके। उन्होंने कहा कि वर्तमान दौर में इतिहास को प्रदूषित होने से बचाने और उसकी पवित्रता बनाए रखने के लिए हमें संकीर्णता छोड़ कर निष्पक्ष इतिहास लेखन की दिशा में कार्य करना होगा। उन्होंने कहा कि राजस्थान के इतिहास में यहां की जनजातियों का महत्वपूर्ण स्थान है। जनजाति आंदोलनों में राज्य की विभिन्न जनजातियों द्वारा स्वतंत्रता हेतु शहीद होने और राष्ट्र प्रेम हेतु सर्वस्व त्याग का इतिहास है। आवश्यकता है जनजातियों के उत्थान करने वाले गोविन्द गिरी, भोगीलाल पंड्या, माणिक्यलाल वर्मा, मोतीलाल तेजावत जैसे अग्रगामियों के दर्शन को समझने की।
जनजाति समाज सामाजिक सौहार्द्र-समरसता का प्रतीक-पण्ड्या
मुख्य अतिथि राजस्थान अनुसूचित जनजाति परामर्शदात्री परिषद राजस्थान सरकार के सदस्य लक्ष्मीनारायण पण्ड्या ने कहा कि आदिवासी समाज और हमारी जनजातियों ने अपने सामाजिक सौहार्द्र और समरसता से देश भक्ति का न केवल पोषित किया वरन उसके माध्यम से हमारे समाज को भाईचारे व प्रेम का पाठ भी पढाया। पण्ड्या ने कहा कि आदिवासी स्वतंत्रता सैनानियों के इतिहास को आमजन तक पहुंचानें की आवश्यकता है।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि भारत का अतीत, वर्तमान एवं भविष्य तीनों ही आदिवासी समुदाय के बिना कभी पूरा नहीं हो सकता। इसी प्रकार स्वतंत्रता संग्राम आदिवासी जनजातियों की वीरता के बिना पूरा नहीं है। जनजातियों के संस्कारों व रिवाजों को अपनाने की जरूरत है। ये सहकारिता तथा भाईचारे सहयोग की वो मिसाल है जो हमारे सभ्य समाज मेें भी आसानी से देखने को नहीं मिलती। प्रारंभ में निदेशक प्रो. जीवन सिंह खरकवाल ने अतिथियों का स्वागत करते हुए दो दिवसीय संगोष्ठी की जानकारी दी।
संगोष्ठी में सीसीआरटी के निदेशक ओपी शर्मा, टीआरआई के निदेशक महेश चन्द्र जोशी, उपनिदेशक प्रज्ञा सक्सेना ने भी विचार रखे। संगोष्ठी में सहायक आचार्य डॉ.़ सीता गुर्जर द्वारा सम्पादित ‘पंचायती राज संस्थानों में महिलाओं की भागीदारी‘ पुस्तक का विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया। संचालन डॉ. कुल शेखर व्यास ने किया जबकि आभार डॉ. हेमेन्द्र चौधरी ने जताया। इस अवसर पर प्रो. गिरीश नाथ माथुर, डॉ. जेके ओझा, डॉ. राजेन्द्र नाथ पुरोहित, डॉ. जीएल मेनारिया, प्रो. प्रतिभा पाण्डेय, डॉ. दिग्विजय भटनागर, प्रो. सुशीला शक्तावत, डॉ.़ प्रियदर्शी ओझा, डॉ. मनीष श्रीमाली, डॉ. विवेक भटनागर, डॉ. महावीर प्रसाद जैनर, डॉ. मदन लाल मीणा, प्रो. मंजू मांडोत, डॉ. अवनीश नागर, डॉ. लाला राम जाट, डॉ. हीना खान, डॉ. नीरू राठौड़, डॉ. मानसिंह  सहित शहर के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
125 से अधिक विषय विशेषज्ञ एवं शोधार्थी कर रहे मंथन
दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में बिहार, मध्यप्रदेश, गुजरात व महाराष्ट्र आदि राज्यों सहित झालावाड़, बांसवाड़ा, पाली, भीलवाड़ा, सीकर, डूंगरपुर, जयपुर, जोधपुर के 125 से अधिक विषय विशेषज्ञ एवं शोधार्थी भाग ले रहे हैं।
इन विषयों पर हुई चर्चा:
शोध अधिकारी डॉ. कुल शेखर व्यास ने बताया कि संगोष्ठी में जनजाति वर्ग के सहयोग से प्रजामंडल आंदोलन, जनजाति लोक गीतों में स्वतंत्रता आंदोलन, स्वतंत्रता आंदोलन में जनजाति की भूमिका, साहित्य में जनजातीय स्वतंत्रता आंदोलन, राजस्थान में एकीकरण में जनजातियों की भूमिका, मानगढ़ धाम पर विषय विशेषज्ञों ने अपने अपने विचार व्यक्त किए।


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