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अशोक गहलोत कांग्रेस के नए संकट मोचक बन कर उभरेंगे?

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01 Mar 21
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अशोक गहलोत कांग्रेस के नए संकट मोचक बन कर उभरेंगे?

 राज्य सभा में प्रतिपक्ष के पूर्व नेता ग़ुलाम नबी आजाद की पहल पर जम्मू कश्मीर में आयोजित हुए कार्यक्रम में  कांग्रेस के जी -23 समूह के भगवा पगड़ी पहने नेताओं के बग़ावती सूर और कांग्रेस में विभाजन के आसन्न खतरे के मध्य राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कांग्रेस की कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी से शनिवार सायं हुई मुलाक़ात को बहुत ही महत्वपूर्ण बताया जा रहा है।
विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार सोनिया गांधी ने गहलोत को पार्टी में पैदा हुए इस संकट से निपटने की ज़िम्मेदारी देने के लिए चर्चा पर बुलाया था।सोनिया के राजनैतिक सलाहकार और पार्टी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष की ज़िम्मेदारी सम्भाल रहें अहमद पटेल के असामयिक निधन के बाद पैदा हुई शून्यता में गहलोत सोनिया,राहुल और प्रियंका गांधी के सबसे भरोसेमन्द और वफ़ादार नेता बन कर उभरें हैं।वर्तमान में पार्टी के पास गहलोत ही एक मात्र ऐसे अनुभवी और विश्वस्त नेता है जिनमें पार्टी के सभी ख़ेमों के नेताओं को साधने की क्षमता है क्योंकि उनके सभी वरिष्ठ नेताओं के साथ मधुर सम्बन्ध रहें है । गहलोत दोनों पक्षों के मध्य सन्तुलन बैठा कर विपत्ति में पड़ी पार्टी को संकट से उबारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है।

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नई दिल्ली में शनिवार और रविवार को कांग्रेस और भाजपा में दो महत्वपूर्ण घटनाक्रम हुए । एक ओर गहलोत की सोनिया से मुलाक़ात हुई और दूसरी और भाजपा में पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे और प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया,प्रतिपक्ष के नेता गुलाब चन्द कटारिया तथा उप नेता राजेन्द्र राठौड़ समर्थकों में मचे घमासान के बीच भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा से प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया की भेंट हुई। पूनिया को पिछलें सप्ताह में दूसरी बार दिल्ली तलब किया गया।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने शनिवार को कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी से उनके दस जनपथ स्थित निवास पर करीब आधे घण्टे की मुलाकात में नाराज कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की जम्मू में हुई जी-23 बैठक को लेकर चर्चा हुई। इसके अलावा गहलोत ने सोनिया को प्रदेश के सियासी हालतों की जानकारी भी दी। इस मुलाकात के बाद ऐसी चर्चा की जाने लगी है कि राज्य में शीघ्र ही मंत्रिमंडल का विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियां भी की जा सकती है। 
गहलोत चित्तौड़ की किसान रैली के बाद प्रदेश प्रभारी अजय माकन एवं प्रदेश अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा के साथ उदयपुर से सीधे दिल्ली पहुंचे थे ।

बाद में वे नदबई से कांग्रेस के विधायक योगेंद्र सिंह अवाना और कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणजीत सुरजेवाला के  बेटे की शादी में शरीक हुए। इस शादी मे पूर्व केन्द्रीय गृहमंत्री सुनील कुमार शिंदे, राष्ट्रीय प्रवक्ता मनु सिंघवी, कर्नाटक के पूर्व सीएम और सचिन पायलट आदि विभिन्न नेता भी  मौजूद थे।
नई दिल्ली के जोधपुर हाउस में ठहरे गहलोत से मुलाकात करने कांग्रेस कोषाध्यक्ष पवन बंसल भी पहुंचे। करीब आधा घंटे दोनों के बीच बातचीत हुई। इससे पहले यूपीऔर राजस्थानके कुछ नेताओं ने भी गहलोत से मुलाकात की।
कांग्रेस में जो घमासान मचा है,उसका समय बहुत नाज़ुक है क्योंकि देश के पाँच राज्यों में विधानसभा चुनावों की घोषणा हो गई है। हालाँकि केरल को छोड़ अन्य राज्यों में कांग्रेस की उम्मीदें कुछ ख़ास नहीं लगती फिर भी बग़ावती नेताओं द्वारा राहुल गांधी के ख़िलाफ़ खोले गए मोर्चे को सोनिया गाँधी किसी भी हालत में समाप्त करना चाहती है ।ऐसे में मुश्कील में पड़ी कांग्रेस को संकट से बचाने की ज़िम्मेदारी गहलोत के कंधों पर आना उनके लिए किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है।गहलोत संगठन और  ज़मीन से जुड़े नेता है।युवा अवस्था से ही वे पार्टी के अनुशासन, नीतियों,कार्यक्रमों और सिद्धांतों को अक्षरत मानने वाले गांधीवादी सोच के खाटी नेता हैं। उन पर केरल में होने वाले विधानसभा चुनावों में पार्टी प्रभारी का दायित्व भी है। केरल से राहुल गाँधी के सांसद होने से इस ज़िम्मेदारी का महत्व और बढ़ जाता हे। इसके अलावा राजस्थान में भी विधानसभा के चार उप चुनाव होने है। इनमें तीन उप चुनावों वाली सीटों सहाड़ा,वल्लभनगर और सुजानगढ़ पर कांग्रेस के दिवंगत विधायक थे। जबकि राजसमन्द सीट भाजपा की विधायक के निधन से रिक्त हुई है। गहलोत को अपने विधायकों वाली सीटों को बचाने के साथ ही राजसमन्द की सीट पर चुनाव जीतने की चुनौती को भी पार करना हैं। 

गहलोत हमेशा अपने हाई कमान के रूख के अनुसार चलने वाले नेता है इसलिए प्रदेश और देश में चल रहीं राजनैतिक हालातों की नाजुकता को देखते हुए उन्होंने हाईकमान के कहने पर उनकी सरकार को भाजपा के साथ मिल कर गिराने के लिए आमादा हुए सचिन पायलट से टकराव छोड़ कर न केवल सुप्रीम कोर्ट में उनके ख़िलाफ़ लगी याचिका को वापस लिया है वरन क़रीब दो तीन साल के बाद सचिन पायलट के साथ एक ही हेलिकोप्टर में बैठ उदयपुर के मेवाड़ अंचल में उप चुनावों का आग़ाज भी किया है।

इधर भाजपा में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के समर्थक विधायकों द्वारा विधानसभा की कार्यवाही में उन्हें महत्व नहीं देने के मामले को लिखे पत्र को लेकर पार्टी में घमासान अभी थमा नहीं है। इस पत्र की गूंज दिल्ली तक सुनाई दी और भाजपा प्रदेशाध्यक्ष डॉ.सतीश पूनियां को दिल्ली जाकर स्पष्टीकरण देना पड़ा है। इस पत्र की वजह से अब नेताओं के बीच अदावत भी देखने को मिल रही है। बताते है कि ऐसा ही नजारा भाजपा मुख्यालय पर रविवार को अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष एम. सादिक के पदभार ग्रहण कार्यक्रम में भी देखने को मिला।कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए जैसे ही डॉ.पूनियां भाजपा मुख्यालय पहुंचे तो नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया और उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ उठकर चले गए।  दोनों नेताओं के अचानक चले जाने के राजनीतिक हलकों में अलग-अलग मायने निकाले जा रहे हैं।वसुंधरा समर्थक विधायकों के पत्र के बाद  प्रतिपक्ष नेता कटारिया और  उप नेता राठौड़ संगठन से नाराज दिख रहे हैं।
बताते है कि डॉ.पूनियां दो घंटे बाद उक्त कार्यक्रम में शामिल हुए। ऐसे में दोनों  नेताओं ने यह समझ लिया कि डॉ. पूनिया उन्हें अहमियत नहीं दे रहे हैं। अब एक मार्च को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा प्रदेश के दो दिवसीय दौरे पर आ रहे हैं। इस कार्यक्रम में किस प्रकार का माहौल रहेगा इसे लेकर अब कई सवाल खड़े हो रहे है !  
दो साल बाद भी भाजपा विधायक दल का पूरी तरह से गठन नहीं होना और उन पर वसुंधरा समर्थक विधायकों द्वारा भेदभाव के आरोप से अब संगठन में एक नई लड़ाई शुरू हो गई है। उपचुनाव में प्रतिपक्ष नेता कटारिया और उप नेता राजेंद्र राठौड़ की अहम भूमिका रहने वाली है। वही भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. पूनिया  इस चुनौती को किस प्रकार से संभाल पाते हैं यह तोआने वाला समय ही बतायेंगा ।  पार्टी की गतिविधियों से यह लग रहा है कि संगठन में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। अब क्या होगा ? यह तो राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के दौरे के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा।


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