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संस्कृति के लिए संस्कृत का संरक्षण-संवर्धन जरूरी : कुलपति सारंगदेवोत 

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08 Jun 25
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संस्कृति के लिए संस्कृत का संरक्षण-संवर्धन जरूरी : कुलपति सारंगदेवोत 

 राजस्थान विद्यापीठ के कुलपति प्रोफेसर शिव सिंह सारंगदेवोत ने कहा है कि संस्कृति के लिए संस्कृत का संरक्षण व संवर्धन जरूरी है। संस्कृत भाषा हमारी संस्कृति का स्तंभ, विश्व बंधुत्व और सर्वे भवन्तु सुखिनः के भाव को जागृत करने वाली भाषा है। 

वे शनिवार को यहां संस्कृतभारती के उदयपुर विभाग द्वारा में चल रहे व्यक्तित्व विकास, कार्यविस्तार एवं संस्कृत संभाषण को समर्पित विशेष आवासीय संस्कृत भाषाबोधनवर्ग के उद्घाटन अवसर पर बोल रहे थे।

 विशिष्ट अतिथि प्रमोद सामर ने संस्कृत को भारत की अंतरात्मा, मातृभाषा समान प्रेम का विषय और भारतीय भाषा परिवार की जननी के रूप में संजोने की आवश्यकता पर बल दिया। 

शिविर प्रभारी नरेंद्र शर्मा ने बताया कि रेती स्टैण्ड स्थित किसान भवन में शुरू हुए 7 दिवसीय शिविर में 9वीं कक्षा से लेकर स्नातकोत्तर स्तर तक के विद्यार्थी, शिक्षक, गृहिणियां, उद्योगी वर्ग और संस्कृत प्रेमी भाग ले रहे हैं। इस वर्ग का मुख्य उद्देश्य संस्कृत भाषा को केवल शास्त्रीय भाषा के रूप में नहीं, बल्कि एक आम बोलचाल की भाषा के रूप में सिखाना और इससे संबंधित आत्मविश्वास विकसित करना है।

वर्ग में सवीना संस्कृत विद्यालय के प्राचार्य डॉ. भगवती शंकर व्यास और संस्कृत भारती के महानगर अध्यक्ष संजय शांडिल्य भी अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। मुख्य शिक्षक के रूप में श्रीयांश कंसारा एवं मानाराम चौधरी संस्कृत बोलने की कला सिखा रहे हैं। 

शिक्षण प्रमुख श्रीयांश कंसारा ने कहा कि यह सात दिवसीय वर्ग भाषा के व्यवहारिक प्रयोग को सरल एवं सशक्त बनाने में सहायक होगा। 

संस्कृत गीतों के माध्यम से जिला मंत्री मुकेश कुमावत ने संस्कृत की मधुरता का वर्णन किया, जबकि महिला संयोजक डॉ. रेनू पालीवल ने वर्ग की सफल आयोजन में योगदान के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया। सात दिनों के इस आवासीय वर्ग में संस्कृत संभाषण कौशल का विकास कर प्रतिभागी इसे अपनी दैनिक जीवन की भाषा के रूप में आत्मसात कर सकेंगे।

इस अवसर पर संस्कृत भारती के डॉ यज्ञ आमेटा, मानाराम चौधरी, श्रेयांश कंसारा, नरेंद्र शर्मा, चैनशकर दशोरा, दुष्यंत नागदा, डॉ रेनू पालीवाल, कुलदीप जोशी, विकास डांगी, मेहरान , जय, सोनल , नीलू डांगी आदि का प्रमुख योगदान रहा।


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