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मत्स्य मूल्यसंवर्धित उत्पाद तैयार कर किसान अपना सामाजिक स्तर सुधार सकते हैं-डाॅ. कौशिक

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27 Feb 24
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मत्स्य मूल्यसंवर्धित उत्पाद तैयार कर किसान अपना सामाजिक स्तर सुधार सकते हैं-डाॅ. कौशिक

उदयपुर, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के संघटक मात्स्यकी महाविद्यालय में तीन दिवसीय मूल्यसंवर्धित उत्पाद पर प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्घाटन मात्स्यकी महाविद्यालय के डाॅ. आर. ऐ. कौशिक अधिष्ठाता, मुख्य अतिथि के रूप में  एवं विशिष्ठ अतिथि पूर्व अधिष्ठाता डाॅ. बी. के. शर्मा और डाॅ. आशिष झा, प्रमुख वैज्ञानिक आई.सी.ए.आर.-सी.आई.एफ.टी. की उपस्थिती में सम्पन्न हुआ।
कार्यक्रम में डाया, बांध उदयपुर सहकारी समिति के 60 महिला एवं पुरूष प्रशिक्षणार्थियों ने भाग लिया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में प्रशिक्षणार्थियों को सम्बोन्धित करते हुए डाॅ. कौशिक ने मूल्यसंवर्धित उत्पादों से किसानों की आय को 3 से 4 गुना बढ़ाने एवं सामाजिक स्तर को सुधारने के साथ-साथ सीताफल प्रसंस्करण से दूसरे समुहो की सफलता की कहानी से प्रशिक्षणाथियों को सीखने एवं मत्स्य सह-उत्पादों को तैयार कर जीवन स्तर सुधारने का आह्वान किया। डाॅ. कौशिक ने अपने सम्बोधन में प्रशिक्षणार्थियों को बतलाया की इस प्रशिक्षण से उन्हे एक नए व्यवसाय के रूप में पुरी जानकारी दी जाएगी जिससे किसानों वे अपनी आमदनी को बढ़ाने में सहायता मिलेगी। विशिष्ट अतिथि के रूप में मात्स्यकी महाविद्यालय पूर्व अधिष्ठाता डाॅ. बी. के. शर्मा ने प्रशिक्षणार्थियों को विभिन प्रकार के मत्स्य सह-उत्पाद जैसे-मछली का अचार, पकोड़े, कटलेट, नमकीन, फाफड़े आदि कैसे बनाएगे इसकी बारे में किसानों को अवगत करवाया। साथ ही इससे नए व्यवसाय को कैसे शुरू कर सकते हैं। इसके बारे मे भी जानकारी दी। एवं उनसे होने वाली आय एवं इनको तैयार कर बाजार में भेजने हेतु तैयार करने के साथ-साथ अपने आय बढ़ाने एवं आर्थिक रूप से सामाजिक स्तर को सुधारने पर जोर दिया। डाॅ. शर्मा ने यह जानकारी भी प्रशिक्षणार्थियों के साथ साझा की कि यह प्रशिक्षण कार्यक्रम आई.सी.ए.आर. के केन्द्रीय मात्स्यकी प्रौद्योगिकी संस्थान, (सी.आई.एफ.टी.) द्वारा प्रायोजित किया गया। इस प्रशिक्षण को आयोजित करने के लिए मात्स्यकी महाविद्यालय में सी.आई.एफ.टी. के द्वारा एक छोटी प्रसंस्करण ईकाई की स्थापना की गई। जो यहा के आदिवासी बाहुल्य क्षैत्र के किसानों के लिए बहुत ही उपयोगी एवं सार्थक सिद्ध होगी। डाॅ. शर्मा ने निदेशक, सी.आई.एफ.टी. को ईकाई स्थापित करने के लिए महाविद्यालय परिवार की तरफ से आभार व्यक्त किया।
डाॅ. आशिष झा, प्रमुख वैज्ञानिक भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान-सी.आई.एफ.टी. ने प्रशिक्षणार्थियों को बताया की हम मछली से अनेक प्रकार के उत्पाद एवं सह-उत्पाद बनाकर एक अच्छा व्यवसाय शुरू कर अपने जीवन स्तर को सुधार कर समाज के लिए एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत कर सकते है। उन्होने प्रशिक्षणार्थियों को सी.आई.एफ.टी. द्वारा इस व्यवसाय को शुरू करने के लिए प्रशिक्षण एवं संसाधन उपलब्ध करवाना एवं हर समय उनके लिए तैयार रहने का आश्वासन दिया। डाॅ. झा ने गुजरात राज्य द्वारा समुन्द्री उत्पाद को विदेशों में निर्यात कर करोड़ो रूपये की आय अर्जित करने का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि अगर गुजरात से इस तरह का निर्यात कर सकते है तो राजस्थान के आदिवासी बाहुल्य क्षैत्र में दुर दराज के किसान स्वंय सहायता समुह बनाकर इस व्यवसाय को भी कर सकते है।
महाविद्यालय के सह-आचार्य डाॅ. एम. एल. औझा, ने इस प्रशिक्षण में भाग लेने वाले किसानों को राज्य एवं केन्द्र सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी एवं प्रोजेक्ट के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की और साथ ही कैसे उससे लाभान्वित हो सकेगें इसके बारे में बताया।
भोजन अवकाश के उपरान्त प्रशिक्षणार्थियों ने प्रायोगिक कार्य में बढ़ चढ़कर भाग लिया एवं विभिन्न प्रकार की मछलियों एवं उनकी साफ सफाई और उनसे बनने वाले सह-उत्पादों की रूचि लेकर अपने ज्ञान को बढ़ाया।
प्रशिक्षण कार्यक्रम का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन महाविद्यालय की सहायक आचार्य डाॅ. सुमन ताकर ने दिया।


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