जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के संघटक साहित्य संस्थान की ओर से हिन्दी दिवस पर ‘‘वैश्विक परिप्रेक्ष्य में हिन्दी का महत्व ’’ विषयक पर एक दिवसीय संगोष्ठी के मुख्य अतिथि जोईंट सेक्रेटरी मिनिस्ट्री ऑफ साईंस एण्ड टेक्नोलॉजी चन्द्र प्रकाश गोयल ने कहा कि वर्तमान मे विश्व के 150 से अधिक देशों के विश्वविद्यालयों में हिन्दी अध्ययन, अध्यापन व अनुसंधान की भाषा बन चुकी है। उन्होने कहा कि डिजिटल तकनीक हिन्दी भाषा केा बडे जन समुदाय तक पहुंचाने में अपना अहम रोल निभा रही है। किताबे, फिल्मे, गीत, संगीत सूचनाओ आदि का प्रवाह सरल और सुगम हुआ है। सांस्कृतिक विकास से नये रचनात्मक व व्यवसायिक आयाम खुल रहे है। शिक्षा और साक्षरता में बढत तथा सुचनाओं और मनोरंजन का बढता हुआ आग्रह भी इस विस्तार के पहलू है। अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि संस्थापक जनार्दनराय नागर ने हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए 1937 में हिन्दी विद्यापीठ की स्थापना की जो आगे चल कर राजस्थान विद्यापीठ के नाम से जानी गई। उन्होने कहा कि हिन्दी भाषा के संवर्धन के लिए जन जन को सहयोग करना होगा। हमे राष्ट्र ध्वज व राष्ट्र गान की तरह हिन्दी भाषा का भी सम्मान करना होगा। हिन्दी विश्व की प्राचीनम भाषा है हिन्दी का समृद्ध व्याकरण , सहज सुबोध शैली, विशाल शब्दकोष और उपलब्ध दुर्लभ साहित्य इसकी जडो को मजबूती प्रदान करता है। हिन्दी 130 करोड लोगो की भाषा होने से हमारे सम्बधों में भी आत्मीयता प्रदान करती है। मुख्य वक्ता सुखाडिया विवि के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. विजय कुलश्रेष्ठ ने कहा कि भाषा का सम्बंध स्पष्ट रूप से लोक से है। भाषा किसी व्याकरण और शास्त्र से बनती जरूर है परन्तु जीवित तो व्यवहार से रहती है। राजभाषा और राष्ट्र भाषा के पद प्रत्यय ने हिन्दी को ओर अधिक उलझा दिया है। हिन्दी का विस्तार उसके अधिक से अधिक प्रयोग पर निर्भर करता है। संगोष्ठी को विशिष्ठ अतिथि आईआरएस वित्त मंत्रालय भारत सरकार के अनिश गुप्ता, प्रो. जीवनसिंह खरकवाल, प्रो. मलय पानेरी, डॉ. कुल शेखर व्यास, विशेषाधिकारी डॉ. हेमशंकर दाधीच ने भी अपने विचार व्यक्त किए।