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तपोभूमि लालीवाव मठ में शस्त्र पूजन

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09 Oct 19
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तपोभूमि लालीवाव मठ में शस्त्र पूजन

 

शहर के ऐतिहासिक तपोभूमि लालीवाव मठ में प्रतिवर्ष के भांति इस वर्ष भी मंगलवार को प्रातः  विधी विधान से शस्त्र पूजन प.पू. महामण्डलेश्वर श्री हरिओमशरणदासजी महाराज द्वारा किया गया । इस के साथ-साथ लालीवाव मठ के सभी मंदिरों की पंचरंगी धर्म ध्वजा भी नई लगाई गयी एवं कुंभ के हनुमानजी को बेसन के मोदक का भोग लगाया गया व आरती उतारी गई ।
इस अवसर पर महाराज श्री ने बताया कि -
जो अपने आत्मा को ‘मैं’ और व्यापक ब्रह्म को ‘मेरा’ मानकर स्वयं को प्राणिमात्र के हित में लगाके अपने अंतरात्मा में विश्रांति पाता है वह राम के रास्ते है । जो शरीर को ‘मै’ व संसार को ‘मेरा’ मानकर दसों इन्द्रियों द्वारा बाहर की वस्तुओं से सुख लेने के लिए सारी शक्तियाँ खर्च करता है वह रावण के रास्ते है ।
भोगी और अहंपोषक रुलानेवाले रावण जैसे होते है तथा योगी व आत्मारामी महापुरुष लोगों को तृप्त करनेवाले रामजी जैसे होते है । रामजी का चिंतन-सुमिरन आज भी रस-माधुर्य देता है, आनंदित करता है ।
महाराज श्री ने यह भी बताया कि- ‘दशहरा’ माने दश पापों को हरनेवाला । अपने अहंकार को, अपने जो दस पाप रहते है उन भूतों को इस ढंग से मारो कि आपका दशहरा ही हो जाय । दशहरे के दिन आप दश दुःखों को, दश दोषों को, दश आकर्षणों को जितने की संकल्प करो ।
बिना मुहूर्त के मुहूर्त
विजयादशमी का दिन बहुत महत्त्व का है और इस दिन सूर्यास्त के पूर्व से लेकर तारे निकलने तक का समय अर्थात् संध्या का समय बहुत उपयोगी है। रघु राजा ने इसी समय कुबेर पर चढ़ाई करने का संकेत कर दिया था कि ‘सोने की मुहरों की वृष्टि करो या तो फिर युद्ध करो।’ रामचन्द्रजी रावण के साथ युद्ध में इसी दिन विजयी हुए। ऐसे ही इस विजयादशमी के दिन अपने मन में जो रावण के विचार हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह, भय, शोक, चिंता - इन अंदर के शत्रुओं को जीतना है और रोग, अशांति जैसे बाहर के शत्रुओं पर भी विजय पानी है। दशहरा यह खबर देता है। अपनी सीमा के पार जाकर औरंगजेब के दाँत खट्टे करने के लिए शिवाजी ने दशहरे का दिन चुना था - बिना मुहूर्त के मुहूर्त ! (विजयादशमी का पूरा दिन स्वयंसिद्ध मुहूर्त है अर्थात इस दिन कोई भी शुभ कर्म करने के लिए पंचांग-शुद्धि या शुभ मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं रहती।) इसलिए दशहरे के दिन कोई भी वीरतापूर्ण काम करने वाला सफल होता है ।


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