GMCH STORIES

मागी नाव न केवटु आना। कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना 

( Read 16989 Times)

15 Jul 19
Share |
Print This Page
मागी नाव न केवटु आना। कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना 

शहर के ऐतिहासिक तपोभूमि लालीवाव मठ में चल रही श्रीमद् भागवत कथा एवं गुरुपूर्णिमा महामहोत्सव के तहत हजारों भक्त प्रतिदिन यहां आ रहे हैं । इसके तहत भगवान पद्मनाभ के प्रभु श्री राम की श्रृंगारित प्रतिमा में प्रभु श्रीराम को वनवास के दौरान माता सीता और लक्ष्मण के साथ केवट ने अपने नाव में बिठा कर गंगा पार करवाया था। श्रीराम केवट की झांकी ने भक्तों को काफी आकर्षित किया हर कोई देखकर भाव विभोर हो जाता है ।
लालीवाव पीठाधीश्वर महामण्डलेश्वर हरिओमदासजी महाराज ने बताया कि मठ के मुख्य मंदिर भगवान पद्मनाभ का विशेष श्रृंगार किया गया है जिनके दर्शन से मन अत्यंत भाव विभोर हो जाता है । महाराज श्री ने बताया की श्रृंगार लालीवाव मठ के दीपक तेली द्वारा किया गया । महाराज श्री ने कहा की ‘‘जहां भगवान पद्मनाभ की म्हेर है, वहाँ तो लीला लहेर छे’’

पंचम दिवस -
शहर के ऐतिहासिक तपोभूमि लालीवाव मठ में गुरुपूर्णिमा महोत्सव के तहत प.पू. महामण्डलेश्वर हरिओमदासजी महाराज के सानिध्य में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के 5वें दिन शनिवार को पहले व्यासपीठ का पूजन और आरती हुई । श्रीमद् भागवत भगवान की आरती पापियों को पाप से है तारती.... । जैसे ही यह आरती शुरु हुई पण्डाल में उपस्थित श्रद्धालु अपने अपने स्थान पर खड़े होकर गाने लगे । कथा के आंरभ में सुभाष अग्रवाल, महेश राणा, मनोहर मेहता, दीपक तेली, डॉ. विश्वास बंगाली, हर्ष राठौड़, जोगेश्वरी भट्ट आदि भक्तों द्वारा माल्यार्पण किया गया । इसके बाद बाल व्यास पण्डित अनिल कृष्णजी महाराज ने जोर से बोलना पड़ेगा.... राधे-राधे.... चतुर्थ दिन कथा शुरु की ।
भागवत के सभी प्रसंग शिक्षाप्रद: पण्डित अनिलकृष्ण महाराज
श्रीमद् भागवत के सभी प्रसंग शिक्षाप्रद हैं । उन प्रसंगों के द्वारा परिवार, समाज व राष्ट्र का कल्याण हो सकता है । यह बात गुरुवार को तपोभूमि लालीवाव मठ में चल रहीं श्रीमद् भागवत कथा के पांचवे दिन कथा व्यास बाल कृष्ण अनिल कृष्ण महाराज ने कही । उन्होंने कहा कि जो लोग मागंने के लिए भक्ति करते हैं वह सच्चे भक्त नहीं, वो तो व्यापारी हैं । आध्यात्म भी मनुष्य के अन्दर भी भोजन का कार्य करता है यह आध्यात्मक मनुष्य के अंदर की तृप्ति को पूरा करता है यह आध्यात्म ही वैराग्य है । मनुष्य एक अनुकरणशील प्राणी है । जिसमें नकल करने का भी एक स्वाभाव है भक्ति योग, ज्ञान योग, कर्म योग, ये तीन योग मनुष्य को मिल जाये तो मनुष्य का जीवन सार्थक हो जाता है । मनुष्य यदि सत्य का ही अनुसरण करे तो यह सारे योग मनुष्य में समा जाते है । उन्होंने कहा कि भक्ति करो तो मीराबाई की तरह करो मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोय जब भक्ति करो तो उस समय सिर्फ परमात्मा के सिवा कुछ याद न करो ।

मानव सांसारिक वस्तुओं में सुन्दरता ढूंढता है । सुंदर और भोग प्रदान करने वाली वस्तुओं को एकत्रित कर प्रसन्न होता है । भगवद्प्रेमी अपने आराध्य के स्वरूप चिंतन में ही आनंदि होता है । तपोभूमि लालीवाव मठ द्वारा आयोजित सात दिवसीय भागवत कथा के पांचवे दिन शनिवार को कथा सुनाते ये बातें कही । कहा भगवान सवर्त्र व्याप्त हैं लेकिन उन्हें इन भौतिक आँखों से देखा नहीं जा सकता । उन्हें देखने के लिए स्वच्छ हृदय और पवित्र मानसिक आँखे चाहिए । भगवान के स्वरुप के चिंतन के बाद किसी की आवश्यकता नहीं रह जाती । कहा मानव स्वार्थ को इंगित करते हुए कहा कि हम भगवान को सिर्फ मुसीबत में याद करते हैं । हमें सुख व दुख दोनों समय कन्हैया का स्मरण करना चाहिए । पण्डित अनिलकृष्ण ने कहा की हम भगवान से जैसा सम्बंध जोड़ते हैं वे उसी रूप में हमें मिलते हैं । भक्तवत्सल भगवान अपने भक्तों की पुकार पर मदद के लिए दौड़े चले आते है । अपने प्रेमियों के दुख हरने में भगवान को प्रसन्नता होती है ।
पण्डित अनिलकृष्णजी भागवत कथा रस का पान कराते हुए विभिन्न उद्धरणों से कृष्ण की लीलाओं के महत्व का ज्ञान कराया और कथाओं के माध्यम से जीवन में भक्ति रस संचार की आवश्यकता और इसके प्रभावों को समझाया।
देवताओं की प्रार्थना, गौमाताओं की प्रार्थनाओं को परिपूर्ण करने, यमुना माँ की इच्छा पूर्ण करने भगवान श्री कृष्ण गौकुल, मथुरा, वृन्दावन में अपनी लिलाएँ की है ।
वेद शास्त्रों में चरण पूजनीय है क्योंकि पूरी शक्ति चरणों पर केन्द्रित होती है । मस्तक चरणों में टेकने से हमारी ज्ञान शक्ति जागृत होती है ।
कथा व्यापक होती है - भगवान का अवतार सबको जोड़ने के लिए, मनुष्य को उनके आर्दशों को अपनाकर मानव जीवन सार्थक बनाने के लिए होता है । सभी मनुष्य एक हो जाए ।
पूतनावध, भगवान श्री कृष्ण ने आंख बंद करते हुए भगवान शंकर को याद कर जहर पी लीया अर्थात भगवान हर चीज प्रत्येक भावना, इच्छा को भी स्वीकार कर लेती है । 
उन्होंने संतों और गुरुओं के सान्निध्य में पहुंच कर साधना एवं अभ्यास सीखने का आह्वान प्राणीमात्र से किया और कहा कि इसी से भवसागर से व्यक्ति तर सकता है।
पण्डित अनिलकृष्ण ने कहा कि ब्रह्माजी ने सृष्टि निर्माण से पूर्व पहले ‘काल’ अर्थात समय का निर्माण किया और उसके बाद ही मानसिक सृष्टि को उत्पन्न किया तथा ऋषियों को जन्म दिया।
ज्ञान को सदैव प्राप्त करने लायक बताते हुए उन्होंने कहा कि ज्ञान किसी से भी प्राप्त हो, ग्रहण कर लेना चाहिए। चाहे ज्ञान देने वाला अपने से छोटा हो या बड़ा। इसी प्रकार जीवन भर अच्छाइयों को ही ग्रहण करना चाहिए। मनुष्य को अपने या किसी दूसरे के बारे में भी कहीं कोई बुराई सुनने मिले तो उसे पूरी तरह भूल जाना चाहिए।
इसके साथ नामकरण, पूतना वध, गौचारण, माखन चोरी, अधासुर, बकासुर, शकटासुर, तृणावर्त आदि दैत्यों का उद्धार, कालिया नाग का उद्धार, चीरहरण व गोवर्धन पूजा आदि प्रसंग सुनाए गए । इसके साथ ही सायं 6 बजे भागवतजी की आरती उतारी गई एवं प्रसाद वितरण किया गया । संचालन शिषाविद् शांतिलालजी भावसार द्वारा किया गया ।

निति और नियम से रहेंगे तो सुख आपका पीछा करेगा : महामण्डलेश्वर हरिओमदास महाराज
तपोभूमि लालीवाव मठ में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के दौरा आशीर्वचन के रुप महामण्डलेश्वर हरिओमदासजी महाराज ने कहा कि सुखी जीवन जीने के लिए जीवन में निति व नियम से रहने की प्रेरणा देते हुए कहा कि जो व्यक्ति धर्म के पथ पर चलकर निति व नियम से जीवन जीता है । सुख स्वयं उसका पीछे दौड़े चला आता है । बिना निति के घर, परिवार, राजनीति और अर्थनीति नहीं चल सकती । 

 


Source :
This Article/News is also avaliable in following categories : Chintan
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like