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पीताम्बरा आश्रम में सोमवती अमावास्या पर हुए कई अनुष्ठान

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14 Nov 23
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पीताम्बरा आश्रम में सोमवती अमावास्या पर हुए कई अनुष्ठान

बांसवाड़ा / गायत्री मण्डल के तत्वावधान में सोमवती अमावास्या पर पीताम्बरा आश्रम में सोमवार को आयोजित पंचवक्त्र महापूजा एवं विष्णु यज्ञ में श्रद्धालुओं ने भक्तिभाव से हिस्सा लिया व विभिन्न अनुष्ठानों को करने के साथ ही वैदिक ऋचाओं एवं पौराणिक मंत्रों से हवन किया। इससे सम्पूर्ण परिसर में धार्मिक-आध्यात्मिक सुगंध कई घण्टों तक प्रवाहमान रही।

गायत्री मण्डल के वरिष्ठ उपाध्यक्ष ब्रह्मर्षि पं. दिव्यभारत पण्ड्या एवं मण्डल के कार्यकारिणी सदस्य पं. प्रदीप शुक्ला के आचार्यत्व में हुए इस अनुष्ठान के अन्तर्गत पुरुष सूक्त एवं विष्णु सहस्रनामावली से हुए यज्ञ में दस सहस्र आहुतियां दी गई। इसके साथ ही गणेश, भैरव, हनुमान, श्रीसूक्त, कुबेर यज्ञ हुआ और षोड़शोपचार से पंचवक्त्र शिवार्चन किया गया। 

इन अनुष्ठानों और यज्ञ विधान में मण्डल के कोषाध्यक्ष पं. विनय भट्ट, कार्यकारिणी सदस्य पं. राजेश त्रिवेदी, पं. नरेन्द्र आचार्य, पं. मनोहर जोशी, पं. देवेन्द्र प्रेमदत्त शुक्ल, पं. सुशील त्रिवेदी, पं. जय रणा, पं. मधुसूदन व्यास, पं. मनोज नरहरि भट्ट, पं. विनोद भट्ट, पं. यज्ञनारायण व्यास आदि पण्डितों ने भाग लेकर विभिन्न देवी-देवताओं की प्रसन्नता और लोक कल्याण की भावना से विधि-विधान से पूजन-अर्चन किया।

मुख्य साधक के रूप में यज्ञ पूर्णाहुति थाईलैण्ड में सेवारत बांसवाड़ा मूल के श्री तनय डिण्डोर एवं श्रीमती गरिमा डिण्डोर ने दी और आरती का क्रम पूर्ण किया। इस अवसर पर शिव-शक्ति अनुष्ठान में सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग की उप निदेशक श्रीमती कल्पना डिण्डोर एवं श्रीमती चार्वी ने महारूद्र, देवी एवं अन्य देवताओं का पूजन-अर्चन किया। पितरों की प्रसन्नता के निमित्त दीपदान एवं पितर पूजा के अनुष्ठान भी संपादित किए गए।

यज्ञ के उपरान्त श्रद्धालुओं एवं क्षेत्रवासियों ने श्रीमन्नारायण संकीर्तन एवं यज्ञ परिक्रमा की और यज्ञनारायण से लोक मंगल की प्रार्थना की।

उल्लेखनीय है कि गायत्री मण्डल द्वारा वैदिक संस्कृति एवं परम्पराओं के संरक्षण-संवर्धन तथा प्राच्यविद्याओं के क्षेत्र में साधकों एवं साधिकाओं को पारंगत करने के उद्देश्य से दैनंदिन सामूहिक गायत्री जप एवं गायत्रीयज्ञ तथा अन्य सम सामयिक अनुष्ठानों एवं यज्ञों के आयोजन की परम्परा सप्ताह भर पूर्व से आरंभ की गई है और इसमें उत्साही एवं समर्पित साधक-साधिकाओं की संख्या एवं श्रद्धालुओं की भागीदारी उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है।


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