मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर के परीक्षा नियंत्रक डॉ. राजेश चंद्र कुमावत आज से औपचारिक रूप से सेवानिवृत्त हो गए। डॉ. कुमावत का विश्वविद्यालय के शैक्षणिक और प्रशासनिक विकास में योगदान अत्यंत उल्लेखनीय एवं प्रेरणादायक रहा है। उन्होंने अपने तीन दशक से भी अधिक के सेवाकाल में विश्वविद्यालय की परीक्षा प्रणाली को आधुनिक स्वरूप प्रदान करने की दिशा में कई महत्वपूर्ण पहलें कीं।
डॉ. कुमावत ने विश्वविद्यालय में कार्य करते हुए विभिन्न प्रशासनिक पदों की जिम्मेदारियाँ निभाईं और हर भूमिका में दक्षता एवं दूरदर्शिता का परिचय दिया। उनके नेतृत्व में परीक्षा प्रणाली में अनेक व्यापक बदलाव किए गए—चाहे वह प्रश्नपत्रों के प्रारूप में संशोधन हो, मुख्य परीक्षा की उत्तरपुस्तिकाओं की संरचना में सुधार हो या पुनर्मूल्यांकन पद्धति में नवाचार। उनके प्रयासों से विश्वविद्यालय में सूचना तकनीकी का सफलतापूर्वक समावेश किया गया, जिससे परीक्षा संचालन अधिक पारदर्शी, संगठित और तकनीक-सम्मत बना।
डॉ. कुमावत के कार्यकाल में अंकतालिका प्रारूप को आधुनिक बनाया गया, परीक्षा परिणामों की ऑनलाइन प्रक्रिया विकसित की गई, और प्रश्नपत्रों के सुरक्षित ट्रांसपोर्टेशन के लिए नई प्रणाली को लागू किया गया। इन सभी परिवर्तनों के पीछे उनकी दूरदर्शिता, नेतृत्व क्षमता और तकनीकी समझ रही है।
*नैक रैंकिंग में विशेष योगदान*
विश्वविद्यालय की नैक रैंकिंग प्रक्रिया में भी डॉ. कुमावत ने अहम भूमिका निभाई। नैक द्वारा गठित पियर टीम के समक्ष तीन बार परीक्षा विभाग का प्रस्तुतिकरण सफलतापूर्वक कर विश्वविद्यालय को उच्च रैंकिंग दिलवाने में उनका सक्रिय सहयोग रहा। यह उनके प्रशासनिक कौशल और सूझबूझ का प्रमाण है कि विश्वविद्यालय ने नैक मूल्यांकन में परीक्षा से संबंधित सभी मापदंडों को सफलतापूर्वक प्रस्तुत किया।
*राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के प्रभावी क्रियान्वयन में नेतृत्व*
डॉ. कुमावत ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को विश्वविद्यालय में सफलतापूर्वक लागू करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके क्रियान्वयन हेतु समय-समय पर विभिन्न कार्यशालाओं एवं सेमिनारों का आयोजन भी उन्होंने सुनिश्चित किया, जिससे विश्वविद्यालय के शिक्षक, अधिकारी व कर्मचारी नई नीति से भलीभांति परिचित हो सकें।
*अन्य प्रमुख दायित्व एवं राज्यस्तरीय योगदान*
परीक्षा नियंत्रक के पद के साथ-साथ पिछले लगभग दो वर्षों से वे महाविद्यालय विकास परिषद् के निदेशक का कार्यभार भी कुशलतापूर्वक संभाल रहे थे। इस दौरान उन्होंने परीक्षा सुधार को लेकर कई राज्यस्तरीय सेमिनार आयोजित किए, जिनमें राजस्थान के विभिन्न विश्वविद्यालयों के वरिष्ठ अधिकारी और कर्मचारी शामिल हुए।
उनकी विशिष्ट सेवाओं को देखते हुए राजस्थान के राज्यपाल एवं कुलाधिपति द्वारा उन्हें राजऋषि भर्तृहरि विश्वविद्यालय, अलवर की शैक्षणिक परिषद् में दो वर्षों के लिए सदस्य के रूप में मनोनीत किया गया। विश्वविद्यालय परीक्षाओं के संचालन के दौरान वे ‘उड़नदस्ता प्रभारी’ के रूप में भी अपनी भूमिका निभाते रहे और परीक्षा की निष्पक्षता सुनिश्चित की।
राज्य स्तर पर आयोजित प्रमुख प्रवेश परीक्षाओं जैसे पी.टी.ई.टी., बी.एस.टी.सी. आदि के सफल आयोजन में भी डॉ. कुमावत का योगदान उल्लेखनीय रहा। वे सदैव अनुशासन, नवाचार और पारदर्शिता के पक्षधर रहे, और परीक्षा प्रणाली में इन मूल्यों को आत्मसात करने हेतु लगातार कार्य करते रहे।
डॉ. राजेश चंद्र कुमावत का सेवानिवृत्त होना न केवल विश्वविद्यालय के लिए बल्कि समस्त शिक्षा जगत के लिए एक युग का समापन है। उनकी विदाई के साथ एक ऐसी कार्यशैली और प्रतिबद्धता की विरासत पीछे छूटती है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी।
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