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कौशल प्रशिक्षण को स्कूली शिक्षा में शामिल करना है जरूरी

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16 Dec 17
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उदयपुर। इण्डिया सेंटर फाउन्डेशन द्वारा आयोजित ग्लोबल पार्टनरशिप समिट 2॰17 में एक विशेष पैनल चर्चा का आयोजन किया गया। चर्चा का विषय था ‘क्या शिक्षण एवं कौशल की मौजूदा प्रथाएं बडी संख्या में लोगों को सशक्त बनाकर विश्वस्तरीय मांगों को पूरा कर सकती हैं।’पैनल की शुरूआत करते हुए कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय के संयुक्त सचिव एवं सीवीओ राजेश अग्रवाल ने कहा कि भारत एक युवा देश है, जिसके नागरिकों की औसत उम्र 29 वर्ष है। कौशल प्रशिक्षण सबसे महत्वपूर्ण है। देश की आबादी को इस तरह कौशल प्रदान किया जाना चाहिए कि वह सकल घरेलू उत्पाद एवं आर्थिक विकास में योगदान दे सके। कई देशों ने अप्रवास संबंधी नीतियां बनाई हैं और हम भारतीय प्रमाणपत्र मानकों को विश्वस्तर के समकक्ष लाना चाहते हैं। अगर एक मजदूर काम की तलाश में सिंगापुर जाता है तो उसके पास इस बात का प्रमाणपत्र होना चाहिए। भारत के जनसांख्यिकी लाभांश का लाभ उठाने के लिए हमें अपने युवाओं को कौशल में सक्षम बनाना होगा, राष्ट्रीय कौशल विकास निगम इसी दिशा में प्रयासरत है। उद्योग जगत को प्रशिक्षण एवं कौशल की आवश्यकता को समझना होगा। उद्योग जगत को कम श्रम लागत की मानसिकता बदलकर उच्च उत्पादकता की ओर रुख करना होगा। पैनल पर चर्चा करने वाले सभी दिग्गजों ने इस बात पर जोर दिया कि हमें इस बात का इंतजार नहीं करना है कि छात्र स्कूल या कॉलेज छोडकर कौशल प्रशिक्षण प्राप्त करें, इसके बजाए कौशल प्रशिक्षण उनकी स्कूली शिक्षा का अभिन्न हिस्सा होना चाहिए। हमें प्रशिक्षकों को भी प्रशिक्षित करना होगा। कौशल विकास प्रमाणीकरण पाठ्यक्रम एवं प्रशिक्षण द्वारा ही मौजूदा परिवेश में बदलाव लाया जा सकता है। सरकार ने ऐसे कई अभियान शुरू किए हैं जिनके माध्यम से छात्र कौशल प्राप्त कर उस पाठ्यक्रम में प्रमाणपत्र भी हासिल कर सकते हैं। भारत इसके लिए जर्मनी, यूके, यूएसए सहित कई देशों के साथ मिलकर काम कर रहा है।


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