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झारखण्ड - संस्कृतियों एवं धर्मों के संगम स्थल

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17 Mar 18
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झारखण्ड - संस्कृतियों एवं धर्मों के संगम स्थल भारत भ्रमण की यात्रा के अगले पडाव पर आपको ले चलते हैं विभिन्न भाषाओं, संस्कृतियों एवं धर्मों के संगम स्थल झारखण्ड राज्य की यात्रा पर। खनिज सम्पदा से मालामाल यह राज्य विशाल वन क्षेत्र एवं वन्य जीवों के साथ-साथ आदिवासियों की संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। भारतीय गणराज्य में २ नवम्बर २००० को २८ वें राज्य के रूप में जुडा तथा रांची को इसकी राजधानी बनाया गया। यह राज्य उत्तर की ओर बिहार, पश्चिम की ओर उत्तर प्रदेश एवं छत्तीसगढ, दक्षिण की ओर ओडिशा तथा पूर्व की ओर पश्चिमी बंगाल राज्यों की सीमाओं से जुडा हुआ हैं। राज्य का सबसे बडा एवं प्रमुख नगर जमशेदपुर है। राज्य का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल ७४६७७ वर्ग किमी तथा जनसंख्या ३२९८८१३४ है। राज्य की साक्षरता दर ७५.६० प्रतिशत है। प्रशासनिक दृष्टि से राज्य को ५ संभाग एवं २४ जिलों में बांटा गया है। वनस्पति एवं जैव विविधता का भण्डार प्रदेश के छोटा नागरपुर के पठार पर देखने को मिलता है। हिन्दी के साथ-साथ बंगाली, उर्दू, मुंडारी, नागपुरी, खाडया आदि भाषाएं बोली जाती हैं। सुवर्ण रेखा, कोयल, दामोदर एवं बरकर, यहां की प्रमुख नदियां हैं। शिक्षा के क्षेत्र में धनबाद में आईआईटी स्थापित की गई है।
अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में झारखण्ड राज्य खनिज सम्पदा में सम्पन्न होने से देश के सबसे अधिक औद्योगिक क्षेत्रों में आता है। यहां कोयला, तांबा, लोहा, अभ्रक, बॉक्साइड, क्वाटर्ज और चीनी मिट्टी आदि खनिज प्रचुरता से पाये जाते हैं। बोकारो में इस्पात का सबसे बडा संयंत्र है। खनिज प्रधान राज्य की ८० प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर रोजगार प्राप्त करती है। कृषि क्षेत्र में चावल यहां की प्रमुख पैदावार है, इसके साथ गेहूँ व दालें भी उगाई जाती हैं।
सांस्कृतिक दृष्टि से इस राज्य की संस्कृति आदिवासियों के उत्सवों एवं त्यौहारों के रंगों में रंगी है। यहां मुण्डा एवं संथाल प्रमुख जनजाति के साथ-साथ ३३ जनजातियां निवास करती हैं। जनजातियों में रॉक पेन्टिंग बनाने की कला ५ हजार वर्ष से भी अधिक समय से प्रचलित है। संगीत व नृत्य इनकी जीवन शैली का अभिन्न हिस्सा हैं। सार्वाधिक लोकप्रिय नृत्य ”सरहुल“ है जो बसन्तोत्सव के अवसर पर विशेष रूप से किया जाता है। इस नृत्य का संगीत भी नृत्य के साथ अपनी छंटा बिखेरता है। सरहुल का अर्थ साल पेड के खिलने से लिया जाता है तथा आदिवासी समुदाय उनकी आत्माओं की शान्ति के लिए इस वृक्ष की पूजा करते हैं। अन्य नृत्य छऊ, पाईका, नाचनी, नटुआ, चौकारा एवं घटवारी प्रमुख हैं। टुसूपर्व, बांदना पर्व, करमा एवं मागों पर्व भी यहां मनाये जाते हैं। राज्य में सभी धर्मों के लोग उन सभी उत्सवों व त्यौहारों को मनाते हैं जो भारत के अन्य क्षेत्र में मनाये जाते हैं।
आवागमन की दृष्टि से रांची में स्थित हवाई अड्डा देश के विभिन्न शहरों तक हवाई सेवा उपलब्ध कराता है। बोकारो, जमशेदपुर, चाकुलिया, दुमका, धनबाद में निजी एवं चार्टर फ्लाइट्स की हवाई सेवाएं उपलब्ध हैं। राज्य में बेतला राष्ट्रीय अभ्यारण्य ;पलामूद्ध तथा हजारीबाग वन्यजीव अभ्यारण्य वन्य जीवों के महत्वपूर्ण स्थल हैं। पलामू को प्रोजेक्ट टाईगर के तहत संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है। इनके अतिरिक्त देवघर, पारसनाथ, नेटरहाट आदि दर्शनीय स्थल है।
रांची
झारखण्ड की राजधानी रांची राज्य का एक मात्र बडा हिल स्टेशन है। पश्चिम में रांची पहाड एवं उत्तर में टैगोर हिल्स के मध्य स्थित रांची झील पर २१४० फीट की ऊँचाई पर स्थित है रांची शहर। यहां प्रकृति ने खुलकर अपना सौन्दर्य लुटाया है। अपने खूबसूरत प्राकृतिक एवं अन्य दर्शनीय स्थलों के कारण रांची विश्व के पर्यटन मानचित्र पर अपनी पहचान बनाता है। यहां गोंडा हिल और रॉक गार्डन, मछली घर, बिरसा जैविक उद्यान, टैगोर हिल, मैक क्लुस्किगंज एवं आदिवासी संग्रहालय दर्शनीय स्थल हैं।
रांची के झरनों में पाँच गाघ झरना सबसे लुभावना है जो पाँच धाराओं में गिरता है। गोंडा हिल एवं रॉक गार्डन चट्टानों का काटकर बनाया गया है। इसी हिल पर मछली घर एवं मगरमच्छ प्रजजन केन्द्र देखे जा सकते हैं। यह दोनों ही स्थल पर्यटकों की पसन्द हैं। टैगोर हिल को यहां के प्रमुख पर्यटक स्थलों में माना जाता है। पहाडी पर पूरे रांची का मनोरम दृश्य दिखाई देता है। पहाडी पर रविन्द्रनाथ टैगोर के बडे भाई द्वारा निर्मित शांतिधाम एवं नीचे की ओर स्थित रामकृष्ण मिशन आश्रम दर्शनीय है। मैक क्लुस्किगंज एवं आदिवासी संग्रहालय स्थानीय निवासियों के साथ सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र है। संग्रहालय में आदिवासियों के इतिहास एवं संस्कृति की अच्छी जानकारी प्राप्त होती है। रांची से ३५ कि.मी. दूरी पर दशम जल प्रपात जहां १० धाराएं गिरती हैं, ४३ कि.मी. उत्तर-पूर्व में हुडू में ३२० फीट की ऊँचाई का जल प्रपात जो स्वर्णरेखा नदी में गिरता है एवं ३८ कि.मी. दूरी पर १४० फीट की ऊँचाई से गिरने वाला गौतम धारा जल प्रपात तथा इसके समीप बना बुद्ध का मंदिर रांची के आस-पास के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।
नेतरहाट
प्रकृति का अनमोल तोहफा तथा छोटा नागपुर की रानी के नाम से विख्यात लातेहर जिले में स्थित नेतर हाट हिल स्टेशन झारखण्ड का एक प्रमुख पर्यटक स्थल है। यह ३६२२ फीट की ऊँचाई पर घने जंगलों से घिरा खूबसूरत पहाडी स्टेशन है जो रांची से १५० कि.मी. की दूरी है। यहां से सूर्यादय एवं सूर्यास्त के दृश्य देखने के लिए सैलानियों का अच्छा खासा जमघट लगा रहता है। इस स्थल की प्राकृतिक सौन्दर्यता को बढाने में यहां पाये जाने वाले खूबसूरत झरनों का बडा योगदान है। प्राकृतिक सुन्दरता के साथ पिकनिक मनाने के लिए ४ कि.मी. पर स्थित है ऊपरी घाघरी झरना। करीब १० कि.मी. पर ३२ फीट की ऊँचाई से गिरने वाला निचली घाघरी झरना है। यहां से ६० कि.मी. दूरी पर स्थित बुरहा नदी के पास ४६६ फीट से गिरने वाला लोधा झरना राज्य का सबसे ऊँचा झरना है। झरने के गिरने की अवाज काफी दूर तक सुनाई देती है। यहां पर अनुमति प्राप्त कर शूटिंग की जा सकती है। झारखण्ड की यात्रा पर जाने वाले सैलानियों को नेतरहाट दर्शन का कार्यक्रम अवश्य बनाना चाहिए। नेतरहाट का निकटतम रेलवे स्टेशन रांची है।
वन्यजीव अभ्यारण्य
झारखण्ड जिल में वन्यजीवों के दर्शन के लिए कई अभ्यारण्य हैं। पलामू का बेतला राष्ट्रीय उद्यान देश की प्रमुख बाघ एवं हाथी परियोजना के रूप में प्रसिद्ध है। छोटा नागपुर पठार के लातेहर जिले में १९७४ ई. में स्थापित किये गये इस राष्ट्रीय पार्क का सम्पूर्ण क्षेत्रफल १०२६ वर्ग कि.मी. है। इसमें से २२६ वर्ग कि.मी. कोरक्षेत्र को बेतला राष्ट्रीय उद्यान के रूप में अधिसूचित किया गया है तथा ९८० वर्ग कि.मी. में पलामू वन्यजीव अभ्यारण्य क्षेत्र है। यहां कई प्रकार के वन पाये जाते हैं। सुन्दर वन, घाटियां, पहाडयां एवं जीवजन्तु पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। बेतला पार्क में बाघ, हाथी, तेन्दुआ, गौर, सांभर एवं चीतल आदि पशु पाये जाते हैं। यहां ४७ प्रजातियों के स्तनधारी जीव तथा १७४ प्रजाति के पक्षी देखने को मिलते हैं। छोटे जीवधारियों की असंख्य प्रजातियां मिलती हैं। यहां १३९ प्रकार की जडी-बूटियां एवं ९७० प्रकार के पौधों की प्रजातियां पाई जाती हैं। परिक्षेत्र मंी चेरो राजाओं द्वारा निर्मित २ किलों के खण्डर भी दर्शनीय हैं।
यहां से १९ कि.मी. दूरी पर तथा रांची से १३५ कि.मी. दूरी पर बाघों के लिए प्रसिद्ध हजारीबाग नेशनल पार्क स्थित है। इसे १९७६ ई. में स्थापित किया गया। पार्क में जीव जन्तुओं को देखने के लिए कुछ वाच टॉवर बनाये गये हैं। यहां १८६.२५ वर्ग कि.मी. में फैले उद्यान में बाघ, चीतल, सांभर, नीलगाय, पेंथर एवं चितकबरे हिरन आदि पशु देखने को मिलते हैं।
झारखण्ड जिले में इन प्रमुख वन्यजीव उद्यानों के साथ-साथ बेतिया से ८० कि.मी. दूर बाल्मिकी नगर में बाल्मिकी नगर राष्ट्रीय उद्यान एवं बाघ अभ्यारण्य, दलाम अभ्यारण्य तथा ओरमाझी का बिरसा जैविक उद्यान भी वन्य-जीवों की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान हैं।
आरा
पटना से ३७ मील पश्चिम में बिहार राज्य के भोजपुर जिले में अतिप्राचीन शहर आरा जिला मुख्यालय है। आरा में अनेक मंदिर धार्मिक दृष्टि से दर्शनीय हैं। यहां आरण्य देवी एवं मढया का राम मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध है। शहर में बुढवा महादेव, पातेलेश्वर मंदिर, महावीर मंदिर, सिद्धनाथ मंदिर, बडी मठिया मंदिर एवं मानस मंदिर श्रद्धालुओं की पूजा-अर्चना का केन्द्र ह। शहर के बीच बडी मठिया रामानंद सम्प्रदाय का प्रमुख केन्द्र है। आरा शहर के कई लोगों ने यहां शिक्षा, साहित्य, संस्कृति एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
वैद्यनाथ मंदिर, देवधर
झारखण्ड के देवधर ग्राम में स्थित वैद्यनाथ मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में एक है।पवित्र तीर्थ होने के कारण इसे वैद्यनाथ धाम भी कहा जाता है। देवधर का अर्थ देवताओं के घर से लिया गया है। यहां स्थित ज्योतिर्लिंग सिद्धपीठ है। इस कारण लिंग को कामना लिंग कहा जाता है। मुख्य मंदिर के चारों ओर अनेक देवी-देवताओं के मंदिर परिसर में बनाये गये हैं। यहां छठ के अवसर पर दर्शनार्थियों की विशेष भीड रहती है। लोग बडी संख्या में कावड लेकर भजन-कीर्तन करते हुए तथा भोले के जयकारे लगाते हुए सुल्तानगंज से पवित्र गंगा का जल लेकर यहां आते हैं और बाबा को चढाते हैं। मंदिर के समीप एक विशाल तालाब भी बना है।
देवधर में ज्येातिर्लिंग स्थापित होने के पीछे कथानक के अनुसार रावण ने हिमालय पर जाकर शिव जी को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की ओर अपने सिर काट-काट कर शिवलिंग पर चढाने शुरू कर दिये। जब वह नौ सिर चढाने के बाद १० वां सिर काटने को था तब ही शिव जी प्रकट हो गये और प्रसन्न होकर उससे वरदान मांगने को कहा। रावण ने इस शिवलिंग को लंका में ले जाकर स्थापित करने का वरदान मांगा। शिव ने इस शर्त के साथ कि रास्ते में शिवलिंग को कह भी धरा पर नहीं रखोगे, ले जाने की अनुमति दे दी। रास्ते में रावण को लघु शंका निवारण की आवश्यकता हुई तो वह इसे एक अहीर को देकर लघुशंका निवृत्ति के लिए चला गया। इधर अहीर को जब इसका वजन महसूस हुआ तो उसने इसे पृथ्वी पर रख दिया। लौटने पर रावण जब इसे उठा नहीं सका तो निराश होकर मूर्ति पर अपना अपना अंगूठा गडाकर लंका चला गया। अब यहां ब्रह्मा एवं विष्णु आदि देवों ने आकर शिवलिंग की पूजा की तथा शिव जी के दर्शन होते ही सभी देवताओं ने शिवलिंग की यहां शिव स्तुति के साथ स्थापना की और स्वर्ग को लौट गये। तब से आज तक यह स्थान शिव के ज्योतिर्लिंगों में शामिल होकर पूजा जाता है। भगवान शिव के मंदिर के साथ माँ पार्वती का मंदिर भी बना है। महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां विशाल मेला आयोजित किया जाता है, जिसमें पंच शूल की पूजा की जाती है। मंदिर परिसर के शिव, पार्वती, लक्ष्मी-नारायण व अन्य मंदिरों के शीर्ष पर पंच शूल लगे हैं। इन्हें प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि से दो दिन पूर्व उतारा जाता है और एक दिन पूर्व विशेष रूप से पूजा की जाकर फिर से मंदिरों पर यथा स्थान रख दिय जाता है। देवधर के मुख्य बाजार में बने तीन ओर मंदिर हैं जिन्हें बैजू मंदिर कहा जाता है। इन मंदिरों का निर्माण वैद्यनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी के वंशजों ने करवाया था। सभी मंदिरों में शिवलिंग स्थापित हैं।
वासुकिनाथ
देवधर से ४२ कि.मी. दूर जरमुण्डी गाँव के समीप स्थित है भगवान शिव को समर्पित वासुकीनाथ मंदिर। बताया जाता है कि वैद्यनाथ मंदिर के दर्शन की यात्रा तब ही पूर्ण मानी जाती है जबकि वासुकिनाथ के दर्शन भी करें। इस मंदिर परिसर में कई अन्य छोटे-छोटे मंदिर भी बने हैं।
श्री सम्मेद शिखरजी (मधुवन)
श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र श्री सम्मेद शिखरजी, झारखण्ड राज्य के गिरडीह जिले में मधुवन नामक स्थान पर स्थित है। यह क्षेत्र जैन धर्मावलम्बियों के लिए विशेष महत्व रखता है तथा देश में सर्वाधिक चर्चित जैन धार्मिक स्थल है। सम्मेद शिखरजी शाश्वत निर्वाण भूमि है। यहां अनेक जैन मुनियों ने निर्वाण प्राप्त किया। बताया जाता है कि करीब बीस तीर्थकरों को मोक्ष मिला। यहां पर्वत पर दो मंदिर निर्मित हैं। मंदिरों के साथ-साथ पर्वत पर म्यूजियम एवं धर्मशालाएं निर्मित हैं। तलहटी पर सडक के दोनों ओर भी अनेक धर्मशालाएं व दर्शनीय स्थल हैं। इस क्षेत्र पर मध्य लोक शोध संस्थान, दिगम्बर जैन चौपडा कुण्ड मंदिर, श्री त्रियोग आश्रम, सम्मेदाचल पार्श्व मंदिर, श्वेताम्बर म्यूजियम, पार्श्वनाथ मंदिर एवं आश्रम, श्वेताम्बर मंदिर-भूमियां, धर्म मंगल विद्यापीठ, तेरापंथी कोठी, बीस पंथी कोठी, कल्याण निकेतन आश्रम, माताजी का तिमंजिला मंदिर, चन्द्रसागर मंदिर, अणिंदा पार्श्वनाथ मंदिर, बाहुबली मंदिर, नंदीश्वर मंदिर, तीन लोक मंदिर, तीस चौबीसी मंदिर तथा अन्य मंदिर दर्शनीय हैं। मधुवन से पहाड की यात्रा पैदल करना धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां वर्ष भर यात्री आते हैं।





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