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कटी पतंग - "क्या है औरत की जिंदगी ,...

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23 Jul 16
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"क्या है औरत की जिंदगी ,... मै आज तक नही समझ सकी , जिसका कोई अस्तित्व नही, कोई वजूद नही, जो ना तो घर की चारदिवारी के अंदर सुरक्षित है और ना घर के बाहर" .....
"कई बार मुझे लगता है स्त्री की जिंदगी आसमान में उड़ती हुई उस रंग बिरंगी
पतंग की तरह है जिसे ना जाने कब कोई काट दे ....और जिस पर सैकड़ो लोगो की निगाहें लगी रहती है लूटने के लिए" ...
"जब तक वो ऊंचाइयों पर है कोई उसे छु नही सकता... जरा सा भी डोर के टाइट होते ही सबको उस पतंग को काटने की लगती है... और अगर बदकिस्मती से वो पतंग कट गई , तो सभी उस कटी पतंग पर अपना अधिकार जताने लगते है" ...
"सैकड़ो हाथों के द्वारा छीनाझपटी में नोच ली जाती है... उस पतंग के चीथड़े कर वहीँ पड़ी छोड़ दी जाती है... कागज रुपी वस्त्रों का हरण कर लिया जाता है ... और मात्र कुछ तीलियाँ अस्थि पञ्जर के रूप में वहां पड़ी रह जाती है सड़क पर, जिसका कोई मालिक नही होता कोई कहने को अपना नही होता" ...
"मात्र कुछ देर के कुत्सित आनंद के लिए जिसे नोच नोच कर खत्म कर दिया गया है, जो पतंग कुछ समय पहले तक खुले आसमान में विचरण कर रही थी , अब निर्जीव हालत में सड़क पर पड़ी अपनी किस्मत पर आँसू बहा रही है"....!!!
"गिद्ध निगाहें.. ही काफी हैँ
नारी अस्मिता.....
को चीर जाने के लिए".....
Source : रश्मि डी जैन के कथा संग्रह से...
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