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आयुव्रेद से भी कर सकते हैं शूगर कंट्रोल

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20 Aug 17
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नई दिल्ली। मौजूदा दौर में जिंदगी की भागदौड़ में लोग लाख कोशिशों के बावजूद अपनी सेहत पर पूरी तरह ध्यान नहीं दे पाते। इसकी वजह से शरीर अनेक ऐसी बीमारियों से पीड़ित हो जाता है कि कई बार ये बीमारियां जान लेवा तक साबित हो जाती हैं।
हाईपट्रेंशन, खानपान पर ध्यान न दिये जाने की वजह से कोलेस्ट्राल और सबसे ज्यादा मधुमेह ऐसे रोग हैं जिनसे तकरीबन हर नौवां-दसवां शख्स पीड़ित है। हाईपट्रेंशन और इसकी वजह से पैदा होने वाला मधुमेह ऐसा रोग है जिसकी वजह से अन्य कई बीमारियां भी जन्म लेती हैं। इसके इलाज के लिए यूं तो एलोपैथ में जहां अनेक गोलियां और इंजेक्शन विकसित किये गए हैं, वहीं आयुव्रेद भी कहीं पीछे नहीं है। लंबे अर्से तक चले वैज्ञानिक परीक्षणों और शोधों के बाद वैज्ञानिक औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) ऐसी दवा खोज ली थी जिससे सफलतापूर्वक मधुमेह रोगियों का इलाज हो रहा है। बहुत से एलोपैथिक डाक्टर भी मधुमेह रोगियों को बीजीआर-34 नामक इस दवा को प्रसक्राइब कर रहे हैं। हाल ही में संसद सौंध में लगी विज्ञान प्रदर्शनी में भी इस दवा ने मंत्रियों, सांसदों और अन्य गण्यमान्य लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है।
बीजीआर-34 (ब्लड गुलोकोज रेगुलेशन) नामक यह दवा सीएसआईआर के लखनऊ स्थित शोध संस्थान नेशनल बॉटनीकल रिसर्च इंस्टीटयूट (एनबीआरआई) और सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर मेडिसिन एंड एयरोमेटिक प्लांट्स (सीमैप) ने पांच साल के अनुसंधान के बाद ईजाद की थी। जिसको एमिल फार्मास्युटिकल्स के माध्यम से बाजार में उतारा था। इस दवा को प्रसक्राइब करने वाले कई डाक्टरों का कहना है कि मधुमेह रोगियों पर यह दवा काफी अच्छा प्रभाव छोड़ रही है। जो मरीज इस दवा का सेवन रेगुलर कर रहे हैं उन्हें शुगर कंट्रोल रखने में काफी मदद मिल रही है और साथ ही उन्हें यह एलोपैथिक दवा के मुकाबले किफायती पड़ रही है। निर्माता कंपनी के प्रबंध निदेशक केके शर्मा ने बताया कि बीजीआर-34 की एक टैबलेट की बाजार में कीमत महज पांच रपए है। इसी वजह से डाक्टरों को गरीब से गरीब मरीजों को प्रसक्राइब करने में कोई दिक्कत नहीं होती।
सीएसआईआर-एनबीआईआर (लखनऊ) के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डा. एकेएस रावत का कहना है कि यह देश में निर्मित आयुव्रेद की पहली ऐसी दवा है जिसे बाजार में लाने से पहले दवा परीक्षणों की आधुनिक कसौटी पर परखा गया है। शोध करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि उन 30 फीसद मधुमेह पीड़ितों के लिए यह वरदान साबित हो सकती है जो एलोपैथिक दवा के महंगा होने की वजह से इलाज नहीं कर पाते हैं। ऐसे लोग भी बचाव के लिए इस दवा का इस्तेमाल कर सकते हैं जिनकी उम्र 35-40 साल है और उनके परिवार में माता-पिता, या दादा-दादी आदि कोई मधुमेह से पीड़ित रहा हो।
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