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सुविचार: पुरुषों की गलत सोच को आईना दिखाती - पिंक

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21 Sep 16
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सुविचार: पुरुषों की गलत सोच को आईना दिखाती - पिंक ऋतु सोढ़ी-वर्षों से पुरुष प्रधान समाज स्त्रियों को छोटे कपड़ों और खुली सोच से परहेज़ रखने की सलाह देता नज़र आता है। अमिताभ बच्चन की हाल ही में रिलीज़ हुई फिल्म पिंक ऐसी सोच को करारा जवाब है।
हमारा समाज पुरुषों को देर रात सड़कों पर घूमने की इजाज़त देता है। वे नशा कर सकते हैं, लड़कियां घुमा सकते हैं। पर लड़की के हंसकर बात करने या छोटे कपड़े पहन लेने से वो चरित्रहीन हो जाती है। पिंक तीन आधुनिक लड़कियों की कहानी है जो अन्जान लड़कों के साथ खाना खाने जाती हैं और एक मुसीबत में फंस जाती हैं। बाद में लड़के उन पर केस कर देते हैं। फिल्म की कहानी आम लड़कियों की मजबूरी तो बयां करती ही है साथ ही उनके साथ हो रहे मानसिक और शारीरिक शोषण की पूरी दास्तान कह जाती है।
आज इक्कीसवीं सदी में भी हम अपने बच्चों खासकर लड़कों को सभ्य नहीं बना पाये हैं। एक बड़ी उम्र के सज्जन अक्सर महिलाओं से भद्दे मजा़क करते हैं तथा एतराज़ जताने पर तुरन्त माफी मांग लेते हैं। उनका मानना है कि जो हंसी सो फंसी। आम घरों की यही धारणा है कि जो लड़की रात देर से घर आती है वो कुछ गलत काम करके ही आती होगी। दफ्तर में मर्द खुलेआम मज़ाक कर सकते हैं , बेमतलब ठहाके मार सकते हैं परन्तु औरत अगर हंसती दिख जाये तो अवश्य ही बुरी होगी। समाज सबके लिए अलग पैमाने तय करता है। औरतें शराब नहीं पी सकती, पी लें तो अवश्य खुली तबियत की होंगी जिन्हें जैसे चाहे इस्तेमाल किया जा सकता है।
पिंक अपने अंदर झांकने पर मजबूर करती है। मर्द को कोई हक़ नहीं कि औरत पर अंगुली उठाये। दो साल की बच्ची का रेप करने का साहस एक मर्द ज़रूर कर सकता है। उस पर उसे कभी शर्म महसूस नहीं होती। दूसरी औरतों को बिना इजाज़त छू सकता है। कपड़े सुखाती या दूध पिलाती स्त्री को घूरने की इजाज़त कोई भी पुरुष सीधा स्वर्ग से लाया है। सभी औरतों को घर से बाहर रात को नहीं जाना चाहिये यह पाठ वह सबको पढा़ता आया है। कोई पुरुषों को क्यों नहीं सिखाता कि आप आंखों पर पट्टी बांध लीजिये। रात को कोई पुरुष सड़क पर ना निकले ऐसा हम भूल से भी नहीं कह सकते हैं। पर मर्द है कुछ भी कह सकता है। पर्दे में ना बैठने पर स्त्री गलत, पर्दे में बैठने पर भी गलत। आदमी रेप करता है तो औरतों के कपडे़ दोषी हो जाते हैं। मतलब क्या निकाला जाये कि आप किसी भी सूरत में गुनहगार नहीं।
कब तक चलता रहेगा यह व्यर्थ प्रलाप?
छेड़खानी, रेप ऐसे गुनाह हैं जहां को गुनहगार सही और पीड़ित को दोषी करार दिया जाता है। सैंकड़ों बार पीड़ित महिला का मानसिक बलात्कार किया जाता है।
अब बस करो। अपनी मानसिकता बदलो।
फिल्म के अंत में महिला सिपाही अमिताभ (वकील)से हाथ मिलाती है और अपनी आंखों से स्त्री होने का दर्द बयां करते हुए उन्हें धन्यवाद देती है। यह सीन बहुत ही बेहतरीन है।समाज को औरतों के कपडे़ नहीं खुद को बदलने की ज़रूरत है। मैं ये नहीं कहती कि हर पुरुष खराब है पर इतना समर्थन हर कोई देता ही है कि बुरी घटना के पीछे लड़कियों के कपडे़ या खुली सोच जि़म्मेदार है। लड़कियों को सिखाना छोड़कर मर्दों को आंख झुकाना सिखाइये। हर औरत अबला नहीं जैसे वैसे ही हर पुरुष असभ्य नहीं।
पर आज छोटी बड़ी हर लड़की का एक ही प्रश्न है कब सुधरोगे, वक्त का तमाचा खाकर या सच में किसी नयी महाभारत के बाद?
सभी पुरुष कृपया पिंक देखें और चलते चलते एक और काम की सलाह है की सोशल मीडिया पर लड़की का लाइक मिलते ही सपने बुनना बंद कर दें । वो लाइक आपकी सोच को था आपको दिल के अंदर लाने की इजाज़त नहीं। बार बार फोटो पर लाइक करने व लड़की की खूबसूरती की तारीफ़ करना फुकरापंती है क्योंकि फोटो उसने अपने लिये लगाई हो सकती है आपको उत्तेजित करने के लिये नहीं। समाज सुधारक मत बनिए पर कम से कम स्त्री अगर ना कहे तो आप एसिड मत फेंकिये। उसे कुछ नहीं तो कम से कम ना कहने का हक़ ही दे दीजिए। एक पत्नी को भी ना कहने का हक होता है चलिए बस इतना समझ जाइये और इस ना शब्द पर कुछ नहीं तो मौन रहकर दिखाइये। मर्दानगी शोर करने या डराकर चुप बिठा देने से नहीं आती। कम से कम शेर जैसे जानवर से ही सीख लीजिए जो शेरनी की ना सुनकर लौट जाता है। जंगल में भी कानून है जबकि शेरनी पर्दा नहीं करती और वहां एसिड की दुकानें भी नहीं लगतीं। बस कभी कभी सभ्य लोग उन्हें कैमरे में कैद कर घर ले आते हैं पर आज़ादी का मतलब फिर भी नहीं समझते।
ऋतु।
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