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बुद्धिजीवी परेशान हिन्दू क्यों आये साथ

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19 Mar 17
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विधानसभा चुनाव परिणाम ने देश के कई बुद्धिजीवियों की नींद उड़ा दी है और उनकी संगत में रहते नेताओं को तो अपने अस्तित्व को ही बचायें रखने में मुश्किल हो रही है। पेरेशानी इस बात से है कि हिन्दू साथ क्यों आ गये। जब तक वे बटें हुये थें उनकी बाते सुनी जा रही थी सरकारें उन्हे मान्यता दे रही थी अब हिन्दू के एक होने से उनकी बातों की निरर्थकता दिखाई देने लगी है। तृष्टीकरण की राजनीति करने वालों के पिठू अपने लेखों और मंचों में व्यख्यानों को देकर यह सिद्ध करने में जुटे रहते है कि हिन्दू हमेशा मूर्ख बनाया जा सकता है अतः धर्म के नाम पर उसे बाटों और खुद उसके रहनुमा बन जाओ। पर इस बार जैसे ही वे कुछ उगलते एक नई बहस शुरु हो जाती। लगातार वे एक ही बात का ढींढोरा पिटते रहे और जनता उनकी बातों को मूखर्तापूर्ण मान आगे बढ़ चली उन्हे दिखा भी नही।
पिछले कुछ सालों में लगातार खुल कर कुछ लोग हिन्दू संगठनों के इस कदर विरोधी बन गये जैसे कोई आंतकी हो। शंातप्रिय हिन्दंुओ को लगने लगा था कि अब वे साथ नही रहे तो उन्हे बेवजह ही आतंकी बना दिया जायेगा और जो आंतकी है उनके डर से बुद्धिजीवी तो विदेश में स्थान पा लेगा पर वह मारा जायेगा। खुलेआम नेताओं के अल्पसंख्यकों को अपने दल को वोट के लिये कहना और उस पर बुद्धिजीवियों का चुपचाप रहना कही न कही खल सा गया। हर हिन्दू संगठनों को ज्ञान देते फिरते बुद्धिजीवियों की हिम्मत नही कि वे मुस्लिम धर्म की बुराईयों पर एक शब्द कह पाये। मुस्लिम महिलाओं की दुर्दशा पर भी कुछ न कहते बुद्धिजीवियों का एक बड़ा वर्ग जब हिन्दू संगठनों की उग्रता पर भड़क जाता है तो कही न कही यह बात चुभने लगी।
विकास के नाम पर अगर प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी पहचान अगर विश्वव्यापी बनाई है तो बुद्धिजीवियों की जलन को जनता समझने लगी है। आपसी लडाई और फुट डाल कर राज करने की कला को दरकिनार कर इस बार हिन्दुओं का एक साथ होकर देश को आगे लेजाने का जो जज्बा दिखाया गया है वह कई बुद्धिजीवी परेशान कर रहा है।
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