GMCH STORIES

महान व्यक्ति वह लोग बनते हैं जो अपनी गलतियों को साहस पूर्वक स्वीकार करते हैं और उन गलतियों को सुधारने का महान प्रयास करते हैं: आचार्य आशीष दर्शनाचार्य

( Read 11560 Times)

15 Feb 17
Share |
Print This Page
वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून में आर्य शिक्षण संस्थाओं के बालक व बालिकाओं को आर्य संस्कारों से दीक्षित करने के लिए 3 दिवसीय शिविर आयोजित किया गया है जिसका आज दूसरा दिन था। इस शिविर में स्वामी सत्यपति जी के शिष्य आचार्य आशीष दर्शनाचार्य जी दो आर्य शिक्षण संस्थाओं की कक्षा 7 से 9 तक के विद्यार्थियों को आर्य संस्कारों में दीक्षित कर उनके अध्ययन को उच्चतम स्थिति तक पहुंचाने के लिए प्रशिक्षण दे रहे हैं। कल इन विद्यालयों की शिक्षिकाओं को बच्चों को संस्कारित करने हेतु प्रशिक्षित किया गया था जो प्रातः 10.00 बजे आरम्भ होकर सायं 4.00 बजे तक चला। आज के शिविर में इन विद्यालयों की उपर्युक्त तीन कक्षाओं के बालक-बालिकाओं को शिक्षा में अपनी योग्यता बढ़ाने के लिए शिक्षित किया गया।

प्रातःकालीन सत्र में आचार्य आशीष जी ने बच्चों से पूछा कि दुनियां की सबसे शक्तिशाली चीज क्या है? एक बच्चे ने उत्तर दिया कि ज्ञान संसार की सबसे शक्तिशाली चीज है। उन्होंने बताया कि दूसरी शक्तिशाली चीज है दिमाग और मन। जो व्यक्ति इनका उपयोग करना सीख लेता है वह पावरफूल, प्रभावशाली व जीनीयस होता है। आचार्य जी ने कहा कि जब बालक पढ़ने बैठते हैं तो उनका मन भटकता है। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति अपने मन को नियंत्रित कर लेते हैं वह बहुत शक्तिशाली बन जाते हैं। ऐसे व्यक्ति ही मन को नियंत्रण में रखकर महान भी बन जाते हैं। उन्होंने बच्चों से कहा कि मन को नियंत्रित करने की कला सबको सीखनी चाहिये। आचार्य जी ने बताया कि भगवान का मुख्य व निज नाम ओ३म् है। उन्होंने बच्चों को कहा कि मुख्य व निज शब्द ओ३म् के विशेषण हैं। ईश्वर के मुख्य नाम से इतर उसके सभी नाम गौणिक या सेकेण्डरी होते हैं। आचार्य जी ने कहा कि हम जो काम करते हैं उसे मन से पूर्णतया महसूस करने से हमारा मन एकाग्र हो जाता है। मन को कनसनट्रेट करना या फोकस करना मन को एकाग्र करने को ही कहते हैं। उन्होंने बताया कि जब हम लम्बी श्वांस भरे तो मन को श्वांसों पर केन्द्रित कर उसे अनुभव करें। आचार्य जी ने कहा कि मन को एकाग्र करने का नियम यह है कि जो काम करें उसे महसूस करते हुए ध्यान लगाकर करें। उन्होंने कहा कि यदि ओ३म् बोलें तो ओठों के खुलने पर ध्यान करेंगे या ओठों के मूवमेंट पर अपना ध्यान व मन केन्द्रित रखेंगे। आचार्य जी ने बच्चों को समझाते हुए कहा कि जब हम किसी विषय का ध्यान करें और हमारा मन भटक जाये तो हमें उन भटकावों को गिनना चाहिये। उन्होंने बताया कि इसे काउंटिंग मैथड (Counting Method) कहते हैं। जितनी देर ध्यान करें और हमारा मन भटके, एक, दो, तीन, चार व अधिक बार तो उसे गिन लें। बार बार अभ्यास करने से जब यह भटकाव बन्द हो जाता है तो वह ध्यान की अच्छी स्थिति होती है।

इसके बाद आचार्य आशीष जी ने गहरा श्वांस भर कर उसे लम्बी श्वांस के साथ बाहर छोड़ते हुए साथ में ओ३म् का उच्चारण करने का अभ्यास करने का बच्चों को निर्देश किया। उन्होने कहा कि ऐसा करते हुए हमारा मन व ध्यान हमारी श्वांस, ओठों के खुलने व ओ३म् के उच्चारण पर रहेगा। यदि मन भटकता है तो वह जितनी बार जिसका भटके, उसकी गणना व काउंटिंग करे। इसके बाद सभी ने गहरी सांस भरकर सांस छोड़ने हुए ओ३म् का लम्बा उच्चारण किया और मन के भटकाव की गणना की। यह प्रक्रिया पूरी होने पर आचार्य जी ने सबसे पूछा कि किसका मन कितनी बार भटका। इसके उत्तर में किसी ने एक बार, किसी ने दो, तीन व चार बार और एक ने ग्यारह बार मन भटकने की बात बताई। इस पर टिप्पणी करते हुए आचार्य आशीष जी ने कहा कि महत्वपूर्ण बात यह थी कि आप लोगों ने अपने मन के भटकावों को गिनने का काम किया। उन्होंने बच्चों को कहा कि आपने अपने मन के भटकावों की गिनती करके हिमालय पर विजय पाने का यह काम कर दिया है। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति जीवन में अपनी प्रमुख बातों का हिसाब रखता है वह व्यक्ति आगे बढ़ने वाला होता है। अगली बार वह न्यूवता रहने वाले काम को और अधिक सतर्क होकर करता है। बच्चों को आचार्य जी ने बताया कि पढ़ाई अच्छी तरह करने के लिए हमारे सामने लक्ष्य या टारगेट होना चाहिये। टारगेट यह हो कि हमें परीक्षा में कितने प्रतिशत नम्बर लाने हैं। उन्होंने बच्चों से पूछा और बताया कि कम्पटीशन दूसरों से नहीं अपने से ही किया जाता है। उन्होंने कहा कि कम्पटीशन सभी को अपनी अन्तिम परफारमेंस से करना होता है। बच्चा जब पढ़ने बैठता है तो वह काउन्टिंग मैथड का उपयोग करता है। वह पढ़ाई में अपने मन की भटकने की स्थिति को निरन्तर कम करता जाता है। ऐसा करके वह कम समय में अपना पाठ्यक्रम पूरा कर लेता है। आचार्य जी ने बच्चों को कहा कि पढ़ाई के समय में पढ़ाई करें। मन को भटकने न दें। यदि मन भटकता है तो काउंटिंग मैथड का उपयोग करें।

इसके बाद आचार्य आशीष जी ने बच्चों से पूछा कि महान व्यक्ति कौन बनते हैं? इसका उत्तर उन्होंने बच्चों से भी पूछा और उसके बाद कहा कि महान व्यक्ति वह लोग बनते हैं जो अपनी गलतियों को साहस पूर्वक स्वीकार करते हैं और उन गलतियों को सुधारने का महान प्रयास करते हैं। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति ऐसा करता है वह महान बन जाता है। दुनियां उसे सदियों तक याद करती है। इस पाठ को उन्होंने सभी बच्चों को सुनाने को कहा। अन्त में उन्होंने इन वाक्यों को सभी बच्चों को मिलकर कई बार दोहराने को कहा जिससे वह उन्हें स्मरण हो जाये। कक्षा चलते हुए डेढ़ घंटा हो गया था। इसके बाद बच्चों को फलाहार कराया गया और फिर नये विषयों पर चर्चायें की गई। यह कार्यक्रम वैदिक साधन आश्रम तपोवन के सचिव ई. प्रेम प्रकाश शर्मा जी की प्रेरणा का परिणाम है। शर्मा जी से पृथक से भेंट करने पर उन्होंने बताया कि मेरे मन में इस प्रकार के विचार उठते रहते हैं जिन्हें वह क्रियान्वित करने का प्रयास करते हैं। आश्रम में चल रहा यह कार्यक्रम कल सायं समाप्त होगा।

वैदिक साधन आश्रम तपोवन के मंत्री श्री प्रेमप्रकाश शर्मा ने बताया है कि आश्रम के 5 दिवसीय ग्रीष्मोत्सव की तिथियां निर्धारित हो गयीं है। यह आयोजन बुधवार 10 मई से रविवार 14 मई, 2017 तक होगा। इस अवसर पर आश्रम में वेद पारायण यज्ञ होगा। प्रवचनों के लिए आगरा के प्रसिद्ध आर्य विद्वान श्री उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी को आमंत्रित किया गया है। श्री कुलश्रेष्ठ जी पहले भी आश्रम के आयोजनों में मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित रहे हैं। आप वैदिक विषयों पर बहुत प्रभावशाली विचार प्रस्तुत करते हैं जिनमें वर्तमान काल की देश व समाज स्थिति को भी केन्द्र में रखते है। यूट्यूब पर भी आपके दो तीन प्रवचन उपलब्ध हैं जो हमने डाले हैं। इसे यूट्यूब पर सर्च कर सुना जा सकता है।
-मनमोहन कुमार आर्य
पताः 196 चुक्खूवाला-2
देहरादून-248001
फोनः09412985121



Source :
This Article/News is also avaliable in following categories : Chintan
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like